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सम्पादक के शब्द: अक्तूबर 2025

  • ई-कल्पना
  • 4 दिन पहले
  • 1 मिनट पठन
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गाँव की हवा, घर की धूल, और माँ-बेटी के बीच के टूटे-जुड़े सपनों की गूँज है दिव्या शर्मा की ये कहानी.

माँ के डर की खाई जितनी गहरी है, उतना ही ऊंचा बेटी का आत्मविश्वास है.

‘सात सितारों वाली चुनरी’ में दोनों मिल कर उस पूरी स्त्री-पीढ़ी की आवाज़ें हैं जो अब भी संघर्ष से अपनी इज़्ज़त बुन रही है। जब तक 50 % आबादी का यह संघर्ष रहेगा, देश महान छोड़िये आज़ाद भी नहीं कहलाया जाएगा.

“सपने” कभी भी छोटे नहीं होते हैं - चाहे वे किसी मिट्टी के घर से शुरू हों या किसी पुराने करवे की थाली से - ये बात हमें यह कहानी बताती है।

ई-कल्पना को गर्व है कि यह कथा हमारे पाठकों तक पहुँच रही है - उस धरती की गंध और उस बेटी के संकल्प के साथ जिसने अपने हिस्से का आसमान खुद तय किया।


लेखिका: दिव्या शर्मा

कहानी: सात सितारों वाली चुनरी

प्रकाशन तिथि: 31 अक्तूबर 2025

ई-कल्पना पत्रिका पर


-- मुक्ता सिंह-ज़ौक्की


संपादक, ई-कल्पना पत्रिका




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-- संपादक, ई-कल्पना पत्रिका





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