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सुधीर सक्सेना 'सुधि'

अन्नपूर्णा



सुबह का समय था। शेरू कुत्ता आंगन में बैठा था। वह इन दिनों बोरियत महसूस कर रहा था। सूनी गली में कोई भी ऐसा नहीं दिखता था जिसे देखकर वह भौंक सके। कभी-कभी कोई पड़ोसी दिख जाता था। पड़ोसियों पर क्या भौंकना। वह बस बैठा-बैठा देखता रहता। तभी उसने देखा मालकिन घर में झाड़ू लगाकर मुख्य द्वार तक आ गई थीं। वह उठा। अपनी मालकिन के पीछे-पीछे घर के मुख्य द्वार तक आ गया। मालकिन ने गेट खोला तो शेरू बाहर निकला। उसने सोचा, कोई अनजान व्यक्ति दिख जाए तो वह थोड़ा भौंक ले। तभी उसने देखा कि गली के बाएं छोर पर पांच कुत्ते सड़क पर कुछ ढूंढ़ रहे हैं। उसे मौका मिल ही गया। वह भौंकता हुआ उनकी ओर लपका। समीप जाकर गुर्राया और बोला - 'यह गली मेरी है। भागो यहां से।'

एक कुत्ते ने कहा - 'भाई, पेट की भूख हमें यहां ले आई है। हम तो कई दिन से गली-गली भटक रहे हैं। हमें खाने को कुछ भी नहीं मिल रहा। किसी का भी ध्यान नहीं है हमारी भूख पर। आजकल तो इंसान भी बहुत ही कम दिखाई दे रहे हैं। सड़कें सूनी-सूनी हैं।‘

दूसरा कुता बोला - 'पता नहीं क्या हो गया है सबको। पहले तो हमें कुछ न कुछ खाने को मिल ही जाता था। किन्तु अब तो लगता है कि हमें भूख से ही दम तोडऩा होगा।'

'अरे लॉकडाउन है, लॉकडाउन! '

शेरू ने अपना ज्ञान बघारा। सारे कुत्ते उसकी ओर देखने लगे। शेरू ने उन्हें कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बारे में वो सब कुछ बता दिया जो वह अपने मालिक, मालकिन और उनके बच्चों से सुनता रहा था।

'हैंऽऽऽ!’ सारे कुत्ते आंखें फाड़े शेरू को देख रहे थे।

'हां, अब समझे! चलो भागो यहां से।‘

सारे कुत्ते वहां से जाने लगे।

'अच्छा रुको!’ शेरू की आवाज सुनकर सभी के पंजे थम गए।

'बोलो भाई, अब क्या और अपमान करने का इरादा है?’ एक कुत्ते ने कहा।

'नहीं, लेकिन तुम सब यहीं रुको। मैं कुछ करता हूं।'

कुत्तों में आशा की किरण जगी। शेरू दौड़ा अपने घर की ओर। मालकिन आंगन में ही मिल गई। वह उनके समीप आता, भौंकता और फिर गली के छोर की ओर देखता।

'क्या है?’ कहती हुई मालकिन बाहर आईं। देखा कि दूर कुछ कुत्ते खड़े थे।

'तूने उन्हें भगाया नहीं? लपका तो ऐसे था जैसे कि उन्हें दूर तक खदेड़ देगा।'

मालकिन हंसते हुए बोलीं।

जवाब में शेरू आंगन में रखी अपनी खाने की प्लेट मुंह में दबा कर ले आया और नीचे रख दी।

‘भूख लगी है तुझे?’ मालकिन ने कहा।

शेरू कभी मालकिन की ओर, कभी दूर खड़े कुत्तों की ओर देख रहा था। शेरू दौड़ कर वहां गया और उन सबसे बोला - 'आओ, शायद तुम्हारी भूख मिट सके।'

भूख से व्याकुल कुत्ते उसके पीछे-पीछे चले आए। शेरू ने आंगन में रखी अपनी प्लेट लाकर बाहर रख दी। सभी उस खाली प्लेट को देख रहे थे। कुत्तों की आंखों में आंसू आ गए।

एक कुत्ते ने कहा - 'हमारी भूख, हमारी लाचारी का मजाक न बनाओ दोस्त!’

सभी ने डबडबायी आंखों से शेरू की ओर देखा। शेरू की तो स्वयं की आंखों में पानी था।

'मुझे माफ करना दोस्तो, मैं शर्मिंदा हूं।' शेरू सिर झुकाए बोला।

'नहीं ऐसा मत कहो। तुमने हमारे लिए सोचा, हमारी भूख को महसूस किया, हमारे लिए यही बहुत है।' वे वापिस जाने को मुडे ही थे कि तभी उन्होंने सुना - 'ले शेरू खिला अपने दोस्तों को भोजन।‘

पांच दोनों में भोजन की ट्रे लेकर आईं शेरू की मालकिन में उन्हें अन्नपूर्णा दिखाई दी। उन्होंने पांचों दोने नीचे रख दिए और भीतर चली गईं। सभी अपने-अपने दोनों पर टूट पड़े। वे दोना भी चाट गए। अन्न का एक भी कण दोनों में नहीं था। उनकी आंखों में चमक आ गई।

'पेट भर के खाना खिलाने के लिए तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद दोस्त।'

शेरू बोला - 'धन्यवाद मुझे नहीं, मेरी मालकिन को दो। वे बहुत दयालु हैं।‘

फिर शेरू बोला - 'एक बात कहूं?’

शेरू ने उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में भी बताते हुए कहा - 'यदि तुम झुंड में चलने के बजाय एक-दूसरे से दूरी बनाकर चला करो और अलग-अलग गलियों में जाआगे तो संभव है, तुम्हें कोई न कोई भोजन अवश्य ही दे दिया करेगा। मेरी मालकिन जैसी दयालु महिलाओं की कमी नहीं है इस देश में।'

तभी मालकिन वापिस आईं। उन्हें देखकर सभी कुत्तों ने सोशल डिस्टेंसिंग को अपनाते हुए सिर झुकाकर उनका आभार व्यक्त किया और चले गए।

मालकिन ने स्नेह से शेरू को देखा। शेरू और मालकिन दोनों एक-दूसरे की सद्भावना को समझ गए।

‘चल अब तू भी खाना खा ले।'

शेरू अपनी प्लेट मुंह में लेकर अंदर आ गया।


 

लेखक परिचय: सुधीर सक्सेना 'सुधि'




जन्म 11 जुलाई, 1959 को अजमेर, (राज.)

बारह वर्ष की आयु से ही इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। छात्र जीवन से ही बाल साहित्य में रचना कर्म। विद्यार्थी काल में स्कूल की भित्ति-पत्रिका व हस्तलिखित पत्रिका का संपादन व प्रचार-प्रसार में सक्रिय भागीदारी। हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में अनेक रचनाएं देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। बच्चों की पाक्षिक पत्रिका बालहंस (राजस्थान पत्रिका समूह) में 20 वर्ष तक संपादकीय कार्य। बाल साहित्य के विकास में बालहंस के माध्यम से कार्य। शिक्षा विभाग, राजस्थान के सृजनशील शिक्षकों एवं कर्मचारियों के बाल साहित्य की पुस्तक (बस्ते से बाहर आकाश) का संपादन। विविध संकलनों में आलेख कविताएं, कहानियां आदि सम्मिलित।


सम्मान/ पुरस्कार

राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा सत्र-1995-96 का शंभूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार से बाल कथा संग्रह 'हिरनी' पुरस्कृत।

राजस्थान पाठक मंच, भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर, नागरी बाल साहित्य संस्थान, बलिया (उ.प्र.) बाल कल्याण परिषद् लाडनूं से श्यामादेवी कहानी पुरस्कार।

बाल गंगा (बाल साहित्यकारों की राष्ट्रीय संस्था, जयपुर), चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट के अलावा अन्य अनेक पुरस्कारों से सम्मानित 'सुधि' की अब तक (काव्य संग्रह-सूरज का लह: पोस्टर ) सहित बीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अंतर्जाल की विभिन्न पत्रिकाओं में भी प्रकाशन।

संपर्क: 75/ 44, क्षिप्रा पथ, मानसरोवर, जयपुर-302020

मो. 9413418701


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