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सुषमा मुनीन्द्र

कोरोना के साइड इफैक्ट



अत्‍यन्‍त सूक्ष्‍म खतरनाक विषाणु कोरोना का कुटिल चक्र।

ओली, बरीक्षा, रिंग सेरेमनी, तिलक, हल्‍दी, मेंहदी, सप्‍तपदी जैसे दिल में लहरी जगाने वाले शब्‍द सुनते हुये अहम तीस अप्रैल दो हजार बीस में होने जा रहे अपने गठबंधन को लेकर प्रफुल्‍ल था कि दृश्‍य में अचानक कोविड 19, क्‍वारेन्‍टीन, सोशल डिस्‍टेन्सिंग, भाप, काढ़ा, संक्रमण, मास्‍क, हैण्‍ड सैनीटाइजर, लॉक डाउन, नाइट कर्फ्यू, वेतन कटौती, छँटनी जैसे शब्‍दों ने नौबत में उसे उलझा दिया। कयास लगाये जा रहे थे यह विषाणु प्राकृतिक है या मानव निर्मित लेकिन उसे यह प्राकृतिक या मानव निर्मित नहीं मायावी लगता है। तभी तो धोखा न देने वाली उसकी सूर्य रेखा धोखा दे गई।

ज्‍योतिषी ने जोर देकर कहा था – जातक की सूर्य रेखा प्रबल है। तरक्‍की दिलायेगी।

आनंदमार्गी की तरह प्रसन्‍न रहने वाला अहम हँसा था – मेरे साथ जन्‍म से ही सब अच्‍छा हो रहा है।

बाद में पापा ने समझाया था - अहम मुगालते में न रहना। ज्‍योतिषी हस्‍त रेखा देख कर कम, आसामी की आर्थिक–सामाजिक स्थिति देख कर अधिक गणना करते हैं।

ज्‍योतिषी पर नहीं पापा मुझे अपने आप पर भरोसा है। आप जैसे आबकारी विभाग के ऑफीसर और खूबसूरत माँ के इस अच्‍छी सूरत, अच्‍छे कद और मकर राशि वाले अकेले आत्‍मज के साथ सब अच्‍छा होगा।

अहम को प्रकृति ने प्रसन्‍नचित्‍त बनाया। परिस्थिति ने अपनी शर्तों पर जीने के मौके दिये। पुणे के सिम्‍बॉयसिस जैसे उत्‍तम महाविद्यालय में एम.बी.ए. की प्रवेश परीक्षा अच्‍छे रैंक से पास की। खड़की इलाके के छात्रावास का लोकप्रिय छात्र रहा। रैगिंग, फ्रेशर पार्टी, प्रेजेन्‍टेशन, सेमिस्‍टर, समर्स, इण्‍डस्ट्रियल ट्रेनिंग, फेयरवेल ......... हर कहीं उसका असर दिखता। सहपाठी उसे प्रशंसा से देखते। उसके अंदाज में प्रभुत्‍व होता – मुझे सब कुछ अच्‍छा चाहिये। मैं तभी तक सहनशील हूँ जब तक मुझे असुविधा नहीं होती। असुविधा होगी तो मैं विरोध करूँगा। आंदोलन का माहौल बनाऊँगा। जिंदगी मौज करने के लिये है, गारद होने के लिये नहीं ....... तीर से या तुक्‍के से मेरे साथ अद्भुत ही होता है ........... ऑबियसली आ‘एम लकी गाइ ........।

सहपाठिनों की नजर में यह लकी गाइ ऐसा चढ़ा कि अब तक पाँच ब्रेकअप हो चुके हैं। उल्‍लेखनीय यह रहा कि इनीशियेटिव सहपाठिनों की ओर से आये। तेज गति वाले जमाने में अलग किस्‍म की तोड़–मरोड़ देखने को मिल रही है। जिस बंदे के जितने ब्रेकअप वह उतना माइंड ब्‍लोइंग माना जाता है। लड़कियाँ प्रपोज करने जैसी रचनात्‍मकता दिखाने लगी हैं। सहपाठिनें जैसे ही इश्‍क को लेकर गम्‍भीर होतीं यह शराफत से खुद को अलगा लेता कि इश्‍क अच्‍छी शै है लेकिन शादी माँ–बाप की मर्जी से करनी चाहिये। थर्ड सेमेस्‍टर में हुये कैम्‍पस सलेक्‍शन में उसे देश की अच्‍छी फिनान्‍स कम्‍पनी में आकर्षक पैकेज वाला प्‍लेसमेंट मिल गया। पाँच साल से जॉब करते हुये यह उसकी अट्ठाईस की उमर है। तीस के पहले विवाह के जाल में फँसना नहीं चाहता पर वैवाहिक प्रस्‍ताव की अच्‍छी संख्‍या ने पापा और माँ को हुलहुला रखा है। पाँच ब्रेकअप वाले अहम को प्रस्‍ताव जंच नहीं रहे थे। आखिर सर्जना को लेकर उत्‍साहित हुआ। सर्जना को जाँचने–परखने के लिये अपने साथ काम करने वाले आसव को लेकर मुम्‍बई से पुणे पहुँचा। स्‍टेट बैंक में कार्यरत सर्जना अपनी मित्र साँची के साथ ई स्‍क्‍वेयर में मिलने आई। मध्‍यप्रदेश के जतारा जैसी छोटी जगह के नागरिक अहम की समझ में नहीं आ रहा था क्‍या बात करे। कुछ मामूली बातें की जबकि सर्जना ने बेझिझक पूछा – ड्रिंक करते हैं?

नहीं पर पार्टीज में बियर पीने को मैनेरिज्‍म मानता हूँ।

सिगरेट?

ट्राई नहीं की।

ड्रग्‍स?

कोई लत न लगा लूँ, इसलिये पापा जरूरत से कम पैसे भेजते थे।

अफेयर?

अफेयर नहीं दोस्‍ती कहूँगा। आपके?

न अफेयर, न दोस्‍ती।

नाइस।

आपने पुणे से एम.बी.ए. किया है?

हाँ। खड़की एरिया को बहुत मिस करता हूँ। वे अच्‍छे दिन थे।

अहम कॉफी और स्‍नैक्‍स का पेमेन्‍ट करने लगा। सर्जना ने नहीं करने दिया – पेमेन्‍ट मैं करूँगी। आप मेरे शहर में हैं।

पूना को अपना शहर मानता हूँ।

मैं कभी मुम्‍बई आऊँ तो पेमेन्‍ट आप करना।

सर्जना साँची के साथ तेज गति से स्‍कूटी चलाती हुई चली गई। अहम रफ्तार पर चकित हो गया – आसव, मुझे सर्जना पसंद है। बहुत खूबसूरत नहीं पर बहुत स्‍मार्ट है। लम्‍बी भी।

आसव ने आतंक फैला दिया - ड्रिंक, ड्रग, सिगरेट सब पूछ लिया लड़की ने।

स्‍मार्ट है।

फिदा हो रहे हो। अहम, मेट्रो कल्‍चर वाली लड़कियाँ समझौता नहीं करतीं। तुनक मिजाज होती हैं। अपना फायदा देखती हैं। इन्‍हें घाटा पसंद नहीं। छोटी सी बात पर फेंटा कस लेती हैं – तलाक, तलाक, तलाक। एम.एन.सी., बी.पी.ओ. में जिस तेजी से जॉब अपारच्‍युनिटी बढ़ी है, उसी तेजी से तलाक बढ़ रहा है। पति का पैकेज पत्‍नी से कम है या पति के वर्किंग आवर्स अधिक हैं या पत्‍नी क्‍यों तबादला कराये या जॉब छोड़े जैसे मुद्दों पर तलाक हो जाता है। और जब बच्‍चा हो? भारी मुसीबत। बच्‍चे के लिये पत्‍नी जॉब क्‍यों छोड़े? बच्‍चे की केयर के लिये सास–ससुर को क्‍यों अपने माँ–बाप को क्‍यों नहीं बुला सकती .......... भारी मुसीबत। अहम तुम जतारा के आस–पास लड़की देखो।

अहम ने दाहिनी हथेली फैला दी - मेरी सन लाइन देखो। मेरे साथ अच्‍छा ही होता है।

अच्‍छा ही हो रहा था। उभय पक्ष की सहमति से तीस अप्रैल दो हजार बीस को विवाह होना तय हो गया। इन दिनों डेस्‍टीनेशन वेडिंग पर जोर है। आसामियों के पास पैसा है। प्रदर्शन की ललक है। विवाह जैसा संस्‍कार नातेदारों से उत्‍कृष्‍ट बनने का मौका होता है कि हमारा जलाव तुम्‍हारे जलवे से बड़ा है। खजुराहो के पाँच सितारा होटेल में ओली, बरीक्षा, रिंग सेरेमनी, तिलक, मेंहदी, हल्‍दी, विवाह का चार दिवसीय आयोजन होना है। उभय पक्ष आधा–आधा भुगतान करेंगे। अहम के पापा ने भुगतान का कुछ भाग अग्रिम जमा कर दिया। माँ का उत्‍साह उराव शीर्ष पर – अहम डांस सीखना चाहती हूँ। तुम्‍हारी शादी में नाचूँगी।

वह अकबका गया - माँ मैंने हमेशा तुम्‍हें शालीन देखा है। मुझसे तुम्‍हारा डांस न सहा जायेगा। ताली बजा देना, मैं नाच लूँगा।

घर में मांगलिक तैयारियाँ। भावी दम्‍पति मोबाइल पर मुब्तिला।

सर्जना खजुराहो अच्‍छा डेस्‍टीनेशन है।

पहली बार देखूँगी। महाराष्‍ट्र से बाहर कम ही गई हूँ।

मुम्‍बई ट्रान्‍सफर की कोशिश करो।

अलग मकान लो। क्‍या आसव और प्रसन्‍नजीत के बीच रहूँगी?

मकान ढूँढ़ रहा हूँ।

मेरा ट्रान्‍सफर न हुआ तो तुम पुणे आ जाना। यहाँ तुम्‍हारी कम्‍पनी की ब्रांच है।

अलग मकान लेना। क्‍या तुम्‍हारे मम्‍मी-पापा के बीच रहूँगा?’

रिझाने के दिन थे। दिन मन्‍नतों के। सपनों के दिन थे। दिन योजनाओं के। अहम को कतई अनुमान नहीं था चीन के वुहान से होते हुये संक्रमण विश्‍व की ओर अग्रसर हो जायेगा। उसकी छँटनी होगी। ग्रुप डिस्‍कशन में मुखर होकर बोलने वाला वह विचारशून्‍य होकर रह जायेगा। ख्‍याल न आयेगा वह तब तक ही सहनशील है जब तक असुविधा न हो। न विरोध न संघर्ष करने की ताब रहेगी। ताकत खोकर अपने दायरे में सिमट जायेगा।

सबसे तेज होने का दावा करने वाले न्‍यूज चैनल कोविड 19 की खबरें घर–घर पहुँचा रहे थे। प्रधान मंत्री जनता को सम्‍बोधित करने टी.वी. पर आये। एक दिन का जनता कर्फ्यू, फिर इक्‍कीस दिन का लॉक डाउन ........ फिर इक्‍कीस दिन का लॉक डाउन ..........। तीस अप्रैल लॉक डाउन की भेंट चढ़ गयी। दफ्तर बंद, बाजार बंद, यातायात बंद, टिफिन सेंटर बंद। दुश्‍वारियों में कई दिन रहने के बाद मध्‍य प्रदेश के मुख्‍य मंत्री के द्वारा भेजी गई स्‍पेशल बस से वह जतारा आ सका। लगा मौत को झांसा देकर सलामत लौटा है। दफ्तर, मित्र, सर्जना से टेलीफोनिक वार्ता में दिन पल में खत्‍म हो जाता था। पल, पहाड़ बनने लगे। छत पर जाता, बगीचे में आता, आंगन में डोलता, टीवी देखता, विविध भारती सुनता, सर्जना को कॉल करता।

क्‍या कर रही हो?

ड्यूटी। तुम जतारा में आराम फरमा रहे हो।

मास्‍क, हैण्‍ड सैनीटाइजर का उपयोग करती हो न?

हाँ। बैंक में प्रोटोकॉल का पालन हो रहा है। दूरी के लिये गोल घेरे बनाये हैं, पर लोग भीड़ लगाते हैं।

इतने लोग बैंक में क्‍यों आते हैं?

सरकार गरीबों के खाते में पाँच सौ रुपये डाल रही है। उसी की मारामारी है। बहुत काम है।

अपना ख्‍याल रखना।

अहम को लग रहा था वक्‍त थम गया है लेकिन वक्‍त नहीं थमता। वह बीतने के लिये बना है। लॉक डाउन खत्‍म होने लगा। सड़क यातायात शुरू हुआ। पचास प्रतिशत उपस्थिति के साथ दफ्तर खुलने लगे। मृत्‍यु में दस, विवाह में बीस लोग भागीदारी करें जैसी सख्‍ती के साथ सामाजिक आयोजनों की अनुमती दे दी गई। अखबार और न्‍यूज चैनल सेंसेक्‍स में जबर्दस्‍त गिरावट, शेयर मार्केट भूलुंठित, इनसेन्टिव बंद, रिक्रूटमेन्‍ट बंद, राजस्‍व घाटा, मुद्रा स्‍फीति, औद्योगिक विकास दर, वेतन कटौती, छँटनी जैसी निर्मम खबरों से अहम को नित्‍य अवगत करा रहे थे कि सूचना मिली कई एम्‍प्‍लॉइज के साथ उसकी छटनी कर दी गई है। वह हतप्रभ रह गया। दौड़ में पिछड़ा नहीं है, दौड़ से बाहर कर दिया गया है। सामूहिक आपदा एक अर्थ में उसकी व्‍यक्तिगत आपदा बन गई है। नौकरी नहीं गई है परिणय पर विराम लग गया है। सर्जना हालिया बेरोजगार से गठबंधन करने जैसी बेवकूफी नहीं करेगी। न्‍यूज चैनल पता नहीं कहाँ-कहाँ के फुटेज दिखा कर उसकी वितृष्‍णा और विचलन को बढ़ा रहे थे। नकारात्‍मकता उसे इस तरह घेर रही थी कि न वह सर्जना को अभिव्‍यक्ति दे सकता था न पापा को। उसके चेहरे का भाव खत्‍म हो गया, भूख खत्‍म हो गई, नींद खत्‍म हो गई, हँसने का अभ्‍यास खत्‍म हो गया। पापा–माँ से दूर भागता पर डिनर साथ करने का पुराना नियम है। डिनर के साथ माँ बात को विवाह पर केंद्रित कर देती हैं – कोरोना को इसी साल फैलना था। तीस अप्रैल के लिये कितनी तैयारी कर रही थी। मरने, जीने, शादी करने में संख्‍या गिनी जा रही है। गुड्डे–गुडि़या की शादी नहीं है जो बीस लोगों को न्‍योत लें। नातेदार नाराज हो जायेंगे।

पापा प्रत्‍येक नौबत में सहज रहते हैं - क्‍यों नाराज हो जायेंगे? प्रोटोकॉल हमने नहीं बनाया है।

एक ही बेटा है। धूमधाम चाहती हूँ। इस साल शादी नहीं करूँगी। जब सब ठीक हो जायेगा धूमधाम से होगी।

लड़की वाले शादी जल्‍दी करने को कह रहे हैं। मुझे भी ठीक लग रहा है। सर्जना अच्‍छी लड़की है, अगले साल तक वे लोग इंतजार करें न करें। लड़की वालों पर तमाम दबाव होते हैं।

हम शादी कैंसिल नहीं कर रहे हैं, थोड़ा रुकने को कह रहे हैं।

सिर्फ इसलिये कि धूमधाम नहीं होगी?

अरमान भी कुछ होता है।

यही कि अगले ने बीस लाख खर्च किया तो हम पच्‍चीस करेंगे? मैंने खजुराहो बात की थी। होटेल वाला एडवांस नहीं लौटा रहा है।

क्‍या कहता है?

बुकिंग बंद है। कर्मचारियों की संख्‍या आधी कर दी है। एडवांस कहाँ से लौटाये? शादी कर दीजिये। एडवांस एडजस्‍ट हो जायेगा।

आधे कर्मचारी हटा दिये। जिधर देखो उधर छँटनी।

छँटनी।

अहम ने चौंक कर माँ को देखा। उसका संदर्भ समझ तो नहीं गई हैं? उसकी उदासी को हमेशा ताड़ लेती हैं। एक-दो बार पूँछ चुकी हैं, तुम्‍हारा दफ्तर कब खुलेगा? क्‍या कहे? छँटनी वह शब्‍द है जो भीतर से उसे छील रहा है। शादी का विचार करते हुये कलेजा कसकता है। एकाएक बोला – माँ कोई दूसरी बात करो।

शादी वाले घर में शादी की बात होगी बेटा।

बहुत हो गई बात।

खाना छोड़ कर वह जिस तरह गया कुछ घातक होने का संकेत था। पापा, माँ से बोले - परेशान लगता है। कई दिनों से देख रहा हूँ। मौका देख कर पूँछना सर्जना से अनबन तो नहीं हो गई। आजकल बात-बात पर ब्रेकअप होता है।

हाँ, परेशान लगता है।

अहम अपने कमरे में लैपटॉप में व्‍यस्‍त था। माँ दूध ले आईं। गिलास तिपाई पर रख उसके सिर पर हाथ फेरा। उसे उनका स्‍पर्श अच्‍छा लगा। समाधान न मिले सानत्‍वना फिर भी मिलेगी। आखिर बता दिया – माँ, मेरी नौकरी चली गई।

ह्रास की छाया माँ के चेहरे पर उतर आई - अब?

शादी की तैयारी बंद करो।

सर्जना ने कहा?

मैंने उसे नहीं बताया है।

मत बताओ। तुम न अयोग्‍य हो, न दोषी। यह एक परिस्थिति है। बस।

पर बेरोजगार हो गया हूँ।

कम्‍पनी वाले वापस रख लेंगे, या दूसरा जॉब मिल जायेगा।

आज का सच यह है मेरे पास काम नहीं है।

सर्जना को न बताना। ठीक है, शादी कर देते हैं। धूमधाम न सही।

माँ, मैं सर्जना को सच बताना चाहता हूँ।

साफ मना कर देगी। उसके परिवार वाले मना कर देंगे। शादी हो जाये फिर कुछ रास्‍ता निकलेगा।

सर्जना को कहीं और से पता चला तो वह मुझे धोखेबाज समझ लेगी। हमारे बीच फर्क आ जायेगा।

बताने पर शादी टूट जायेगी बेटा। लोग क्‍या कहेंगे?

सर्जना क्‍या कहती है यह जानना अधिक जरूरी है।

शादी के बाद नौकरी छूटती तो क्‍या तलाक लेती?

अभी शादी नहीं हुई है। कई बार पूछ चुकी है जतारा में क्‍यों हो? दफ्तर नहीं खुला?

कह दो पापा को कोरोना हो गया है इसलिये यहाँ हो।

झूठ बोलो तो फिर झूठ ही बोलना पड़ेगा। जब तक तुमसे नहीं बताया, मैं बहुत परेशान था। बता दिया, उतना परेशान नहीं हूँ।

माँ से बताना अलग बात है, सर्जना से बताना अलग।

मैं उसे धोखे में नहीं रखना चाहता। यह उस पर है बात को किस स्पिरिट से लेती है।

मांगलिक माहौल में मायूसी। कुछ बातें कठिन होती हैं। सर्जना उसका सर्वश्रेष्‍ठ ही जानती है। घटनी ने सर्वश्रेष्‍ठता को निरस्‍त कर दिया।

अहम ने खुद को मजबूत किया। सर्जना का नम्‍बर लगाते हुये उंगलियां थरथरा कर थम जाती हैं। आज नहीं ...... अभी नहीं .......... अभी बैंक जा रही होगी ....... लौट कर सुस्‍ता रही होगी ....... शाम का आठ बजा है। यह दोनों के लिये उचित वक्‍त है। फुर्सत से लम्‍बी बातें होती थीं। उसने खुद को मजबूत किया। भय और असमंजस को खत्‍म करने के लिये टालने के बजाय स्थिति का सामना करना चाहिये। स्‍क्रीन पर उसका नाम देखते ही सर्जना तीक्ष्‍णता से बोली – मर गई सर्जना।

नाराज हो?

नहीं, तुम्‍हारे कंठ में जयमाल डालने के लिये छटपटा रही हूँ। तीन दिन से वॉट्स एप पर जवाब नहीं दे रहे हो। दो दिन से मोबाइल स्विच्‍ड ऑफ है।

जतारा में नेट वर्क प्रॉब्‍लम है।

अभी तक तो नहीं थी। झूठ ही बोलना है, तो कहो तुम्‍हें कोरोना हो गया है। कमजोर हो गये हो इसलिये वॉट्स एप पर ध्‍यान नहीं दिया। यह झूठ इतना झूठ नहीं लगेगा जितना नेट वर्क वाला लग रहा है।

राह नहीं। सर्जना फलक से फर्श पर ला पटकेगी। पर कहना होगा।

सर्जना मेरी छँटनी हो गई है।

…………..।

मेरी छँटनी हो गई है।

न तेज आवाज न तंज। सर्जना ने एकदम साधारण स्‍वर में अभिव्‍यक्ति दी – मैं समझ गई थी।

अहम तेज और तंज पर वैसा आहत न होता जैसा साधारण अभिव्‍यक्ति पर हो गया - बताना चाहता था। तुम सिचुएशन को किस तरह लोगी, इस संकोच में नहीं बता पाया।

छँटनी को छँटनी की तरह लूँगी।

रिक्रूटमेंट पता नहीं कब तक बंद रहेंगे। नेक्‍स्‍ट जम्‍प की उम्‍मीद फिल हाल नहीं है। तुम फैसला कर लो।

कह दिया पर सांस रुद्ध होती जान पड़ी। कहेगी सोचने का वक्‍त दो, फिर कॉल नहीं करेगी। हो जायेगा फैसला।

फैसला तभी कर लिया था जब तुमसे ई स्‍क्‍वेयर में मिली थी।

तब मेरे पास जॉब था।

अब नहीं है लेकिन तुम वही हो। अच्‍छे ग्रेड, अच्‍छी डिग्री वाले। कभी धोखा न देने वाली सन लाइन जरूर धोखा दे गई है।

वह ज्‍योतिषी मिल जाये तो उस पर वायरस छोड़ दूँ।

कहते हो असुविधा में नहीं रह सकते। इतनी असुविधा में वक्‍त कैसे गुजार रहे हो?

अहम सर्जना का अभिप्राय बूझने की कोशिश में है। मेट्रोकल्‍चर वाली लड़कियों को घाटा पसंद नहीं है। अपना फायदा देखती हैं। छोटी सी बात पर फेंटा कस लेती हैं – तलाक .......... तलाक ........... तलाक ...........। सर्जना सहजता दिखाकर उसे आजमा रही है या पीड़ा पहुँचा कर आनंदित हो रही है?

सर्जना कुछ फैसले वक्‍त चाहते हैं।

पूरा वक्‍त लिया है। ई स्‍क्‍वेयर में तुम्‍हें आय लव यू नहीं बोल दिया था। घर में अच्‍छी खासी चर्चा हुई, दोनों परिवारों ने जाना–समझा, तब फैसला हुआ।

तुम्‍हारे रिश्‍तेदार कहेंगे एक यही बेरोजगार मिला है?

उन्‍हें कौन बतायेगा? क्‍या कम्‍पनी वाले अखबार में इश्‍तहार देंगे, अहम का हमारी कम्‍पनी से कुछ लेना–देना नहीं है?

मैं खुद को हीन समझने लगा हूँ।

कि बेरोजगार हो गये हो, जबकि मैं जॉब कर रही हूँ? यह स्थिति हमेशा नहीं रहेगी। यदि मेरी छँटनी हो जाती तो क्‍या करते?

शादी करता।

ठीक कहते हो पति कमाये, पत्‍नी घर सम्‍भाले इसमें कुछ भी अलग बात नहीं है। अभी जो सिचुएशन है, थोड़ा डिफरेन्‍ट है। अहम पेट्रीयॉकल एप्रोच से बाहर आओ। मेरे पास जॉब है, तुम्‍हारे पास नहीं हे। यह कोई बड़ा इश्‍यू नहीं है।

समझ में नहीं आता क्‍या करूँ?

आसानी से समझ में नहीं आयेगा क्‍योंकि सामाजिक विधान बदल कर भी बहुत नहीं बदला है।

मतलब?

जैसे पत्‍नी का पैकेज, पति के पैकेज से अधिक न हो। होगा तो ऐंठी रहेगी। बुलशिट! मुझे पीस फुल लाइफ चाहिये। जोड़–बाकी चलता रहता है।

दिल से कह रही हो?

घुटने से। मेरा दिमाग घुटने में जो है।

मेरा मतलब .........

सुनते रहो। मेल ईगो को साइड में रखो। तुम्‍हारे एकाउण्‍ट में कुछ तो होगा। तुम्‍हारे डैड के एकाउण्‍ट में होगा। जरूरत होगी उनसे माँगेंगे। राह निकलेगी।

हाँ, पर ..........।

सुनते रहो। अच्‍छी बात यह है तुम्‍हें शादी के लिये छुट्टी नहीं लेनी पड़ेगी। पूना में मेरे साथ रहोगे। जॉब के लिये कोशिश करोगे। बेशक मामला उलटा जा रहा है। इसे कोरोना का साइड इफैक्‍ट कह सकते हो।

मैं पता नहीं कितना सोच रहा था।

कि मैं तुम्‍हें रफा–दफा कर दूँगी?

ऐसा ही कुछ।

कहते हो तुम्‍हारे साथ हमेशा अच्‍छा होता है।

अब तक अच्‍छा ही होता था।

छँटनी में भी कुछ अच्‍छा छिपा होगा। सिचुएशन को स्‍पोर्ट्स मैन स्पिरिट से लो। जैसे मैं लॉक डाउन को ले रही हूँ।

खुल कर समझाओ।

खजुराहो में बीस लोगों वाली शादी। दस मेरे, दस तुम्‍हारे। रिश्‍तेदारों की छँटनी कर देंगे। दीदी की शादी में इन लोगों ने बड़ी गदर मचायी थी कि यह रस्‍म ऐसे नहीं, ऐसे होती है। अच्‍छी बात यह है आडम्‍बर में पैसा बर्बाद नहीं होगा। मेरे पापा और तुम्‍हारे पापा की भारी रकम बचेगी।

बैंक वाली हो। पैसे का खूब सोचती हो।

वही तो। खजुराहो में चार दिन महाराजा स्‍टाइल में रहेंगे। मैं तुम जैसे डूड को नहीं छोड़ने वाली। तुम्‍हें जॉब फिर मिल जायेगा। मुझे ऐसा डूड नहीं मिलेगा।

सर्जना हँसने लगी। वह भी हँसा।

कई दिनों बाद वह तबियत से हँस रहा था।


 

लेखक परिचय - सुष्मा मुनीन्द्र



नाम : सुषमा मुनीन्द्र

प्रकाशन : दो उपन्‍यास एवं सत्रह कहानी संग्रह।

(1) कहानियों का कई भारतीय भाषओं में अनुवाद।

(2) व्‍यक्तित्‍व – कृतित्‍व पर कई शोध विद्यार्थियों ने पी0एच0डी0

व एम.फिल. किया।

विशेष सम्‍प्राप्ति : मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के अखिल भारतीय और प्रादेशिक

पुरस्‍कार सहित लगभग 15 पुरस्‍कार प्राप्‍त ।


सम्पर्क : द्वारा श्री एम0 के0 मिश्र, एडवोकेट

जीवन विहार अपार्टमेन्‍ट

फ्लैट नं0 7, व्दितीय तल

महेश्वरी स्वीट्स के पीछे

रीवा रोड, सतना (म.प्र.)-485001

मोबाइल: 08269895950

sushmamunindra@gmail.com

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