top of page

कहानी -2

ई-कल्पना



ई-कल्पना की नई सीरीज़ कहानी के दूसरे अंक में हम प्रस्तुत कर रहे हैं प्रवीण कुमार सहगल की कहानी भूख.

बहुत सुंदर खाका खींचा है इन्होंने एक दोपहर में भूख का. आप पढ़ कर क्या कहेंगे, हम जानना चाहेंगे.


भारतीयों का भूख से अभी भी अटूट रिश्ता है. भूख अभी भी हमारे बीच है, और अनेको परिवारों को रोज़ शाम को सताती है. 15 प्रति शत भारतीय, यानी 20 करोड़ हमारे देशवासी भूखे सोते हैं. दुनिया के तमाम क्षीणकाय, कृशांग, अंडरवेट बच्चों की गणना में एक चौथाई तो हमारे बच्चे हैं.

सरकारें तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती आई हैं और कर रही हैं. तभी तो अब हम विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर चल रहे हैं. आज हम उस मंज़िल पर पहुँचने वाले हैं, जो असल में हमारे जितने बड़े देश का हक है ... विश्व की सर्वोच्च अर्थव्यवस्थाओं में से एक होना तो डेढ़ अरब भारतवासियों का ड्यू है.

बस, ये भूख का नासूर है, जो बहुत धीमे-धीमे घट रहा है – ग्लेशियल गति से कम हो रहा है. क्यों 85 प्रति शत भारतीय अपने 15 प्रति शत भाई-बहनों की भूख नहीं देख पा रहे? अगर वे इसे साफ-साफ देख पाते तो ये भी समझ जाते कि ये कैंसर तो बड़े आराम से गायब किया जा सकता है.

लिटरैरी के बजाय इस बार ज़रा सोशियो हो गई. विषय ही ऐसा है.


-    मुक्ता सिंह-ज़ौक्की

सम्पादक, ई-कल्पना

5 अप्रैल 2024


पत्रिका की पहली प्रति खरीदने के लिये

Comentarios

Obtuvo 0 de 5 estrellas.
Aún no hay calificaciones

Agrega una calificación

आपके पत्र-विवेचना-संदेश
 

ई-मेल में सूचनाएं, पत्रिका व कहानी पाने के लिये सब्स्क्राइब करें (यह निःशुल्क है)

धन्यवाद!

bottom of page