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  • भूमिका द्विवेदी अश्क

द लास्ट फ़्लाइट

ऐली बड़ी तन्मयता से अपने सिंगारदान के सामने खड़ी होकर अपने बाल बना रही थी. बड़े क़ायदे से उसने साड़ी बांधी. पूरा ख़ूबसूरत मेकअप किया. क्या काजल, क्या आई-लाईनर, क्या लिपस्टिक, क्या लिप-लाईनर, क्या फ़ेस फ़ाउन्डेशन, क्या हल्की मैचिंग जूलरी, एक एक चीज़ पर पूरा वक़्त ख़र्च कर रही थी. ख़ुद को बड़ी करीने से सजाती हुई, वो बड़ी बन ठन के तैयार हो रही थी.

ऐली का पिता जौन फ़्रेडरिक एमैनुयेल बड़ा बेचैन होकर इधर-उधर वहीं उसके ही कमरे के बाहर चहल-क़दमी मचाये हुये था.

ऐली को अपने सिंगारदान के बड़े से आईने में बार-बार आते-जाते, बेचैनी से भरे हुये उसके तेज़ क़दम दिखाई दे रहे थे. ऐली को उनकी अकुलाहट की पर्याप्त जानकारी भी थी. बहोत देर तक दोनों एक जैसे ही गतिशील रहे. आख़िरकार ऐली ने ही ज़ोर से कहा,

“ डैडी आप कब तक टहलते रहेंगे... अन्दर आ जाईये, यहां बैठ जाइये... प्लीज़ फ़ौर गौडसेक...”

जौन अपनी बेटी के कमरे में दाख़िल तो हो गया, वहां रखी क्रोशिये से बनी सफ़ेद चादर वाली पलंग पर बैठ भी गया, लेकिन उसकी बेचैनी ज़रा भी कम नहीं हुई. बल्कि अपनी बेटी को इस तरह पूरा सजा-संवरा और तैयार देखकर और ज़्यादा ही बढ़ गई.

जौन भुनभुनाने लगा,

“ पता नहीं ये मेरी अपनी औलाद मेरी ही बात क्यूं नहीं मानती.. मैं कैसे समझाऊं इस सिली लड़की को...”

ऐली अपनी सजावट और आईने को छोड़कर अपने पिता के पास चली आई. वो जौन से मुख़ातिब होकर कहने लगी,

“ डैडी, माय स्वीट डैडी, लुक ऐट मी.. डोन्ट यू फ़ील, हाओ हैप्पी आय’म टुडे... मेरी ममा नहीं है.. डैडी तुम ही मेरी ममा हो, मेरे डैडी हो, मेरे बेस्ट-फ़्रेन्ड हो.. अलाओ मी, विद चीयरिंग फ़ेस डैडी.. प्लीज़..”

“ऐली माय लिटिल चाइल्ड, अब मैं तुमको कैसे समझाऊं.. तुमको पूरी दुनिया में यही एक जौब मिला था... बाय गौड, मेरा दिल बैठा जा रहा है.. तुम जानती हो, तुम्हारे फ़ादर ने भी कभी हवाई-जहाज के अन्दर पैर नहीं रखा.. अब तुम सात समुन्दर पार जा रही हो..”

ऐली ने अपने पिता के कन्धे पर सिर रखा और बड़े मधुर लहजे और मीठी ज़बान में कहने लगी,

“डैडी, क्या मैं तुम्हारी बेस्ट-फ़्रेन्ड नहीं हूं... ममा के जाने का दु:ख तुम मुझे देखकर ही भुलाते हो ना.. मेरी बर्थ के टाइम ही ममा हम लोगों को छोड़कर गौड के पास चली गयी थी ना... लेकिन तुम ही कहते हो ना डैडी कि मैं तुम्हें ममा से भी ज़्यादा प्यारी हूं... बताओ क्या ये सच नहीं है डैडी...”

“माय लव, माय स्वीट बेबी, माय डार्लिंग ये सच है.. एकदम सच है.. तभी तो मैं तुम्हें ख़ुद से दूर नहीं करना चाहता... नौट फ़ौर ए सिंगल मिनट माय चाइल्ड..” कहते-कहते जौन ने ऐली को गले से लगा लिया.

ऐली ने जौन को फ़िर समझाया,

“फ़िर क्यों अपसेट हो रहे हो डैडी.. क्यों मुझे डिसकरेज कर रहे हो.. आज पहली बार मुझे मौक़ा मिला है इंटरनेशनल फ़्लाइट में जाने का.. आज औस्ट्रेलिया जा रही हूं, कल यूएस, यूके, कैनेडा ना जाने कहां-कहां जाऊंगी डैडी... क्या हर बार तुम ऐसे ही उदास रहोगे... ओ डैडी आय कान्ट टेल यू, हाओ मच हैप्पी आए’म.. हाओ लकी आए’म डैड.. वैसे भी ये डोमेस्टिक-उड़ानें मुझे कभी नहीं चाहिये थी. बाहर तो पहली बार जा रही हूं.. आए’म सो एक्साइटेड डैडी... डैडी देखो, फ़िर ये कोई मेरी लास्ट फ़्लाइट तो न........”

ऐली का आख़िरी वाक्य पूरा होने से पहले ही जौन के उसके मुंह पर अपना हाथ रख दिया, और तड़प कर बोला,

“नो नो नो.. ऐसा नहीं कहते बेटा.. ऐसा कभी नहीं कहते... गौड कैन नेवेर बी सो क्रुएल विद अस नाओ... यू नो, यू आर द ओनली होप औफ़ माय लाइफ़.. जाओ तुम ख़ुशी-ख़ुशी जाओ.. देखना औस्ट्रेलिया में तुम हंसते-हंसते क़दम रखोगी.. गौड ब्लेस यू माय चाइल्ड.. गो... गो विद योर स्माइल.. आय’ल वेट फ़ौर यू.. आय’ल प्रे फ़ौर यू...”

इस बातचीत के दौरान, ऐली की एयर-वैन दरवाज़े पर आ चुकी थी. उसने मुस्कुराते हुये अपने पिता से विदा ली. इंटर्नशिप ख़त्म होने के बाद एक एयरहोस्टेज़ के तौर पर ये उसकी पहली विदेश जाने वाली उड़ान थी.

ऐली ने अपने सहकर्मियों के साथ चहकते हुये हवाई जहाज के भीतर क़दम रखा. वो अपने परिचारिका वाले सभी कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से खुशी-खुशी निभाते हुये सफ़र तय कर रही थी. हवाई जहाज में कई देशों से आये लोग सवार थे. सभी के अपने-अपने काम-धन्धे और अपनी-अपनी निराली दुनिया थी. सभी अपने–अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिये, एक ही नियत समय पर इस जहाज पर एक साथ आकर बैठे थे और जाहिर तौर पर सभी एक-दूसरे के सहयात्री भी थे. जहाज के मुसाफ़िरों में नया जन्मा एक बच्चा भी था जो अपनी मां की गोद में खूब ‘ऊं ऊं’ करके अंगड़ाईयां ले रहा था, और पूरे सफ़र भर हाथ-पैर मारता रहा. ख़ुशमिज़ाज़ ऐली उसे देखकर मुस्कुरा उठती थी, और वो बच्चा भी ऐली को देखकर और भी सक्रिय हो जाता था. ऐली और वो नवजात दोनों ही पहली बार एक विदेशी ट्रिप का हिस्सा बने हुये थे. वो आज बहोत आनंदित थी. ऐली की ज़िन्दग़ी का यही एक सपना था, जो आज हक़ीक़त बन रहा था.

लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था. और ‘होनी होकर होय’ ये बात भी सोलह आना सच थी. औस्ट्रेलिया की सीमा तक तो हवाई जहाज सकुशल पंहुच गया. ऐली अपनी सहकर्मी लड़कियों के साथ हंसती-खेलती पंहुच गयी थी. लेकिन औस्ट्रेलिया के हवाई अड्डे पर लैण्ड करने से ठीक आठ मिनट पहले कोई ऐसी बड़ी तकनीकी ख़राबी हवाईजहाज में देखने में आयी, जिसे प्लेन को उतारने से पहले ठीक करना बेहद ज़रूरी था. वरना प्लेन के साथ पूरे एयरपोर्ट को ध्वस्त होने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता. लेकिन प्लेन में आई इस ख़राबी को उड़ते हुये ही ठीक करना भी मुमक़िन नहीं हो रहा था. इसी क़श्मक़श में उलझा हुआ पायलट और उसका पूरा स्टाफ़ ना प्ले उतार पा रहा था, ना ज़्यादा देर आसमान में ही रखने की स्थिति में था. पूरे परिचारिका स्टाफ़ में ख़लबली मच गयी थी. हर कोई अपने-अपने आराध्य को बेचैन होकर याद करने लगा था. बचने के लिये कोई सूरत नहीं निकल रही थी.

इस नाज़ुक वक़्त पर घबड़ाई हुई ऐली को अपने पिता की बहोत याद आने लगी. मारे बेचैनी के उसके हाथ-पांव फूल रहे थे. उसे अब लगने लगा था कि उसे जौन की बात मान लेनी चाहिये थी और उसे इस उड़ान में शामिल नहीं होना चाहिये था. पायलेट-स्टाफ़ के साथ-साथ पोर्ट में बैठे सभी कर्मचारी भी बुरी तरह से परेशान थे. अंतत: कोई रास्ता नहीं निकला, और बदनसीब इन आख़िरी आठ मिनटों की ज़द्दोज़हद के दौरान जब प्लेन में मौजूद एक-एक सदस्य बदहवासी की चरम पराकाष्ठा से गुज़र रहा था, उसी वक़्त किसी एक बेहद मनहूस पल में बड़ा सा धमाका हो गया. देखते ही देखते अच्छे-भले उड़ रहे पूरे के पूरे प्लेन के परखच्चे उड़ गये. एयरपोर्ट की लैण्डिंग से तक़रीबन एक मील दूर, एक ख़ुले मैदान में ये हंसता-खेलता भरा-पूरा, हवाईजहाज, कचरे के ढेर की शक़्ल में जा गिरा. हर तरफ़ ग़ुबार-धुआं-राख़ का ढेर था, और आसमान तक उड़ते हुए गहरे काले-काले बादल दूर तक दिखाई दे रहे थे. एयरपोर्ट तक इसके गिरने की भीषण आवाज़ों और एक आध टूटेफूटे पुर्ज़े के दूर छिटक के आ गिरने के सिवा कोई नुक़सान नहीं हुआ था.

इस भयंकर विस्फ़ोट ने पूरी दुनिया में तहलक़ा मचा दिया था. दूरदराज़ के रहनेवाले कई मुल्क़ों के बाशिंदे इस जहाज पर सवार थे. हर ख़ास-ओ-आम को इस दर्दनाक़ हादसे ने हिलाकर रख दिया था. दुर्घटनास्थल पर कुछेक घण्टों में ही मददग़ार वाहनों, राहत सामग्री पंहुचाने वाली गाड़ियों, प्रेस-टीवी पत्रकारों के रेले, ऐम्बुलेन्सों और प्लेन में मरे हुयों के नातेदारों की भीड़ आ जुटी थी. तमाम सारे अधिकारी और मन्त्रीगण का भी हुजूम देखते ही देखते इकठ्ठा हो गया था. हर कोई बदहवास, हताश, परेशान हुआ बुरी यंत्रणाओं से गुज़र रहा था.

मलबे में से लाशें निकालकर परिजनों को सौंपने का काम बेहद तीव्र गति से किया जाने लगा था. ऐसा साफ़ दिख रहा था कि एक भी शक़्स उस त्रासदी में जीवित ना बचा होगा.

कई सारे शवों के बीच ऐली की लाश भी पड़ी थी. राहतकर्मियों ने जैसे ही पेट के बल पड़ी हुयी ऐली की लाश को हटाया, वे हैरत में पड़ गये. उन्होंने वहां ऐली के शव के नीचे एक महीने भर के नन्हें बच्चे को ज़िन्दा पाया. तुरन्त बच्चे को अस्पताल पंहुचाया गया और मालूम हुआ कि नन्हीं जान एकदम सुरक्षित है. ऐसा माना जा रहा था कि प्लेन-क्रैश होते वक़्त ऐली ने अपनी गोद में उस मासूम को छुपा लिया होगा और प्लेनक्रैश की सारी तबाही ऐली ने ख़ुद पर झेली होगी. ऐली के शव को बड़े सम्मान से हिन्दोस्तान में उसके पिता जौन फ़्रेडरिक के घर के लिये रवाना कर दिया गया.

प्लेनक्रैश की ख़बरें सुनकर और टीवी पर उसके ख़ौफ़नाक़ मंजर को देखकर जौन की रूह पहले ही कांप उठी थी. देहरी पर ऐली के शव को रखा देखकर वो मारे दु:ख के पागल ही हो गया. उसके रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों ने मिलकर ऐली का अंतिम-संस्कार किया. ताबूत में रखे ऐली के शव को जौन यूं देख रहा था जैसे अभी वो उठ खड़ी होगी, और फ़िर उसके कन्धे पर सिर रखकर मीठी मीठी बातें करेगी. जौन को ऐली की मां भी इस वक़्त टूटकर याद आ रही थी. ऐली की क़ब्र पर मिट्टी डालते वक़्त, जौन को ऐसा लग रहा था, जैसे उसकी ज़िन्दगी में सबकुछ ख़त्म हो चुका है, क्योंकी उसकी इकलौती औलाद भी आज उससे हमेशा के लिये जुदा हो गयी थी.

जौन की दुनिया लुट चुकी थी. वो अब अपने घर से पूरी तरह बेज़ार हो गया था. शराब की बोतल संभाले चर्च के पीछे वाले क़ब्रगाह को ही लोगबाग उसका अड्डा मानने लगे थे. उसके हमदर्द दोस्त उसे वहीं खाना खिलाने जाते और उसकी दु:खती जान का हाल लेते थे.

जौन तो बस एक यही ज़िद पकड़े बैठा था कि ऐली को वो एक बार, बस एक बार ज़िन्दा-चलता-फ़िरता देख ले, और अपनी बेटी की प्यारी आवाज़ सुन ले. हांलाकि ये बातें अब असम्भव थीं, लेकिन जौन को कौन समझाये! उसके अभिन्न मित्र उसकी हालत देख देखकर रो पड़ते थे. उसके रिश्तेदारों ने उसके सामने जाना ही बन्द कर दिया था, क्योंकि वे लोग ख़ुद को जौन की इस दयनीय स्थिति में बर्दाश्त करने में असमर्थ पा रहे थे. उनका सारा समझाना-बुझाना निष्फल जा चुका था.

जौन ख़ुद से बेगाना हुआ दिन-रात शराब पीता हुआ, क़ब्रगाह के इर्द-गिर्द मंडराता रहता था. एक रात वो ऐली की क़ब्र पर रोते हुये काटता, तो दूसरी रात उसकी मां के क़ब्र के सिरहाने वेडिंग-गीत गाते गुज़ारता. उसके दु:ख का कोई पारावार नहीं था. उसके बाप-दादा की ठीकठाक सम्पत्ति के चलते उसे रुपये-पैसों का कोई मलाल नहीं था. लेकिन जमा-जमाया पुश्तैनी धन्धा भी एक सुयोग्य और क़ाबिल वारिस के अभाव में नष्ट होने लगता है, इसलिये उसके शुभेच्छु उसे हर मर्तबा मिलने पर भली नसीहतें देते रहते थे.

इसी दर्द से डूबे उसके कठिन दौर में एक रात जौन का एक दोस्त विल्सन चर्च की पिछली दीवार से टिका उसके साथ शराब पी रहा था. विल्सन भी जौन को उसके दु:ख से उबारने में अब तक सफल ना हो सका था. फ़िर भी वो जौन को अपने तई समझाये जा रहा था.

“कितने दिन बीत गये जौन, तुमने अपने घर की सूरत भी नहीं देखी.. तुम्हें जाना चाहिये.. अपना घरबार देखना चाहिये.. बल्कि जौन, माय औनेस्ट फ़्रेन्ड, तुम्हें ये कब्रिस्तान छोड़के अब वहीं रहना चाहिये... कब तक सोग मनाओगे ब्रदर... वो घर तुम्हारी वाइफ़, तुम्हारी क्यूट डौटर का बसाया हुया घर है.. वहीं तुमको आराम मिलेगा.. फ़िर तुम्हें अपने अच्छे-भले बिज़नेस का भी तो सोचना चाहिये... तुम्हारे इस रवैये से तो सब बर्बाद हो जायेगा जौन... समझा करो मेरे दोस्त ये कौम्पटीशन का दौर है, कोई भी तुम्हारे हालात देखकर तुम्हें तबाह कर डालेगा.. फ़िर सड़क पर आने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.... तुम हेल्पलेस रह जाओगे जौन... समझो अपने ज़माने की इस नज़ाक़त को समझो ज़रा...”

“कितनी बार तुमसे बोला है विली... ये सब मुझे मत समझाया करो.. तबाह और बर्बाद तो मैं पहले ही हूं, अब क्या कोई सड़क पर लायेगा मुझे... मेरी दुनिया पहले ही लुट चुकी है विली... मुझे वहां, उस घर, उस दफ़्तर नहीं जाने का.. वो घर मुझे काटने को दौड़ता है.. वहां मेरी ऐलिया, मेरी ऐली मेरे साथ कितनी ख़ुश-ख़ुश रहती थी. हम सबने वहां कितने अच्छे-अच्छे दिन बिताये हैं. कितने क्रिसमस साथ मनाये हैं.. अब अकेले वहां मुझे डर लगता है.. मैं यहीं ठीक हूं..” कहते-कहते जौन फ़िर फूटफूटके रोने लगा, उसने रोते हुये आगे कहा, “...आय’म ओके हियर विली.. डोन्ट डिस्टर्ब मी, आय’म रियली ओके हियर. इट्स अ पीसफ़ुल ज़ोन.. लेट मी लिव माय लाइफ़ विद माय फ़ैमिली विली. मेरा पूरा फ़ैमिली यहीं आ गया है.. सो आय’म फ़ाइन हियर..”

विल्सन ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और उसे ढांढस बंधाते हुये बोला, “ जौन मेरे दोस्त.. काम डाउन.. इट्स ओके.. चुप हो जाओ.. शांत हो जाओ जौन.. मैं तो बस यही कह रहा था कि कब तक यहां मुर्दों के बीच पड़े रहोगे.. कब तक जौन..”

“जब तक मैं मेरी स्वीट ऐली को देख नहीं लेता... तब तक यहीं पड़ा रहूंगा... मुझे उससे मिला दो विली, फ़िर मैं तुम्हारी सारी बात मान जाऊंगा.. अपना बिज़नेस भी देखने लग जाऊंगा... घर जाकर रहने भी लगूंगा.. आय प्रौमिस..”

विल्सन चुप हो गया. वो जौन की ना पूरी होने वाली फ़रमाइश का भला क्या जवाब देता. उसने अपने गिलास में थोड़ी विस्की और डाली और ख़ामोशी से सिर झुकाये, पीने लगा.

अचानक उसने देखा चर्च के पादरी के लिबास में एक आदमी चर्च के उसी क़ब्रिस्तान में क़ब्र दर क़ब्र कुछ खोजता फ़िर रहा है. जौन ने भी उसे देखा, उसने समझा चर्च का पादरी फ़ादर डेविड यूं ही नींद ना आने की वजह से घूम रहा है. उसने कुछ संभलकर, विल्सन से कहा,

“विल्सन, तुम मुझे यहां रहने से रोकते हो ना.. देखो फ़ादर डेविड को भी ये जगह कितनी पसंद है.. इतनी रात गये वो भी इसी पीसफ़ुल जगह में अकेले टहल रहे हैं.. उन्हें भी यहां आकर सुकून मिलता है... अपने घर के लोगों से वो भी यहीं आकर मिल पाते हैं...”

इस पर विल्सन ने आपत्ति जताई, और उसे नई जानकारी भी दी,

“नहीं जौन, ये अपने फ़ादर नहीं हैं... ये तो कोई और ही है.. हां याद आया ये फ़ादर डेविड के कोई रेलेटिव हैं.. कुछ दिन पहले गोवा से यहां आये हैं.. इनका नाम शायद ऐंजिल डिकोस्टा है... जौन, लोग कहते हैं इन्हें कई तरह का मैजिक आता है... बहोत जादू-टोना सीखा हुआ है इन्होंने... आत्मा-भूत-प्रेत सब जानते हैं ये... आज भी शायद कोई एक्स्पेरीमेण्ट कर रहे हैं यहां मज़ारों पर...”

जौन, ऐंजिल डिकोस्टा के बारे में सुनकर ना जाने क्यों उत्साहित हो गया था और उसने हल्की-सी राहत भी पायी थी. जौन काफ़ी देर तक ऐंजिल डिकोस्टा, उसकी हरक़तों और उसकी खोज को बहोत ग़ौर से, बड़ी बारीक़ी से देखता रहा. ऐंजिल हरेक क़ब्र के नज़दीक जाता था. बहोत ही धीमे स्वर में कुछ बोलता था और क़ब्र की थोड़ी सी मिट्टी उठाकर अपने साथ लाये एक थैले में डालता जाता. ऐंजिल डिकोस्टा ने वही प्रक्रिया कई बार दोहराई और वो धीरे-धीरे जौन और विल्सन की आंखों से ओझल हो गया.

अगली सुबह चर्च के भीतर, तड़पता-कलपता हुआ जौन, ऐंजिल डिकोस्टा के ठीक सामने बैठा रो रहा था. जौन ने एक एककर ऐंजिल को अपनी सारी आपबीती सुना दी थी. उसने ऐंजिल डिकोस्टा से बड़ी ही विनम्र इल्तिजा की, कि वो अपने जादू से ऐली को फ़िर से ज़िन्दा कर दे. नादान जौन बार-बार यही दोहराता रहा कि,

“फ़ादर, मेरी लाइफ़ तुम्हारे अहसानों से दबी रहेगी.. पूरा लाइफ़ मैं इसी चर्च के दरवाज़े झाड़ू मारूंगा, बस एक बार, एक बार तुम मेरी ऐली को जिला दो.. फ़ादर मैं तुम्हारा स्लेव बनके पूरी लाइफ़ गुज़ारूंगा, बस एक बार मेरी स्वीट ऐली को मेरे सामने लाकर खड़ा कर दो फ़ादर... मुझे मालूम है तुम मैजिक जानते हो... तुमने आत्मा-प्रेत सब सीख रखा है... मुझे मालूम है, तुम ज़रूर मेरी ऐली को मुझसे मिला दोगे... वो आधी-अधूरी बात छोड़के हंसती-मुस्कुराती कहीं दूर चली गयी, मुझे तड़पता हुआ छोड़ गयी.. अपने अभागे बाप को अकेला छोड़ गयी फ़ादर.. इसी चर्च के पीछे उसे मेरे सामने मिट्टी में दबा दिया गया.. वो मुझे अकेला छोड़के कैसे जा सकती है फ़ादर... शी वौज़ माय बेस्ट-फ़्रेन्ड... उसने मुझसे कहा था फ़ादर, वो मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ेगी.. उसने कहा था, वो कभी अपनी ममा जैसा नहीं करेगी.. फ़ादर एक बार मेरी इनोसेन्ट ऐली से मिला दो.. जाने वो कहां छुप गयी है.. तुम्हें जीसस का वास्ता, तुम्हें तुम्हारे मैजिक का, तुम्हारी आर्ट का वास्ता... एक बार मेरी ऐली को मुझसे मिला दो, बस एक बार फ़ादर.. सिर्फ़ एक बार..” कहते-कहते जौन ऐजिंल के पैरों से लिपट गया, और बिलख-बिलख के रोता रहा.

ऐंजिल डिकोस्टा उसकी पूरी बात बड़े धीरज के साथ सुनता रहा. ऐंजिल ने उसे अपने पैरों से उठाकर कुर्सी पर बैठाया. उसके कन्धे पर हाथ रखकर उसने ढांढस बंधाया. उसने बड़े सधे हुये लहजे में जौन से कहा,

“मैन, संभालो अपने आपको.. रोना बन्द करो... हिम्मत रखो.. मरना जीना सब गौड के हाथ में है.. जो चला जाता है, उसे हम कभी वापस ज़िन्दा नहीं कर सकते.. गौड के विल के आगे हममें से किसी की नहीं चलती.. हम सारे उसके आगे हमेशा हेल्पलेस हैं.. लेकिन फ़िर भी... फ़िर भी मैं तुम्हारी मदद करूंगा मैन.. क्योंकि तुम जेन्युन हो.. आय’ल हेल्प यू..”

जौन अपने आप ख़ामोश हो गया. उसके आंसू एक तत्काल पनपी हुई आशा से खुद-ब-ख़ुद थम गये. जौन ऐंजिल को साक्षात भगवान की तरह देखने लगा. जौन की इस उम्मीद से चमकती आंखों को देखकर, ऐंजिल डिकोस्टा ने आगे कहा,

“मैन, मैं किसी भी डेड को वापस अलाइव नहीं कर सकता.. ये इम्पौसिबल है... गौड की बनायी इस पूरी दुनिया में, उसकी विल के बग़ैर, कोई भी मरा हुआ फ़िर से ज़िन्दा नहीं हो सकता.. ऐसा सिर्फ़ गौड ख़ुद कर सकता है.. लेकिन फ़िर भी मैं तुम्हारी मरी हुयी ऐली से सिर्फ़ एक बार तुम्हारी बात ज़रूर करा दूंगा... लेकिन तुम इस बात का ज़िक़्र टाउन में किसी से मत करना.. गौड के किसी भी फ़ैसले के बीच मैं कभी कोई हर्डल नहीं बन सकता.. मैं सिर्फ़ तुम्हारी मदद करूंगा.. मैन कल सुबह ठीक चार बजे तुम नहा धोकर, अपनी बेटी की एक तस्वीर लेकर यहीं आ जाना.. डेविड से भी तुम कुछ ना कहना.. उसे मेरा तुम्हारी हेल्प करना बुरा लग सकता है... ये उसकी अथौरिटी का चर्च है, यहां मुझे सर्विस देना, हमारे चर्च के रूल्स के ख़िलाफ़ है.. मैं सिर्फ़ तुम्हारी तक़लीफ़ देखकर तुम्हारी हेल्प कर रहा हूं... अब तुम जाओ.. मुझे शाम की प्रेयर के लिये तैयारी करनी है... और सुनो, सवेरे टाइम पर आ जाना... गौड ब्लेस यू..”

इतना कहकर ऐंजिल डिकोस्टा चर्च के सार्वजनिक प्रेयर-रूम से उठकर जीजस की प्रतिमा के पीछे, चर्च के भीतर कहीं विलीन हो गया.

जौन को इस वक़्त काटो तो ख़ून नहीं. उसे यक़ीन नहीं हो रहा था फ़ादर ऐंजिल ने जो कहा है, वो सब सच है. उसे ऐंजिल और अपनी ख़ुद के बीच हुई बातों पर रत्ती भर विश्वास नहीं हो रहा था. उसे ऐंजिल डिकोस्टा एक ख्वाब-सरीखा कोई सचमुच का देवदूत लग रहा था. उसे ये यक़ीन ही नहीं हो पा रहा था, कि ऐली फ़िर उसे मिलेगी. उससे बातें करेगी. उसे सुनेगी. उससे सवाल-जवाब करेगी.

उसकी वो रात पहाड़ जैसी गुज़री. वो रात बिना पल भर भी सोये लेकिन सिर्फ़ ख़्वाब देखते हुये बीत गयी. जौन बेकल, बेचैन, बेबस, बेक़रार रात भर अपनी बीवी और बेटी की धूल-धूसरित तस्वीरों के सामने बैठा रहा. उसने रात के दो बजे घुप्प अंधेरे में खूब नहाया. तीन बजने से पहले चर्च के तिकोने ऊंचे दरवाज़ों के किनारे लम्बे-लम्बे खम्भों की ओट में आकर बैठ गया और ऐंजिल डिकोस्टा के फ़िर से प्रकट होने का इन्तज़ार करने लगा.

जब भोर के चार बजने में दस मिनट बाक़ी था, फ़ादर ऐंजिल ने चर्च का एक दरवाज़ा खोल दिया. बहोत देर से दरवाज़े पर टकटकी लगाये जौन को ऐंजिल ने अपने साथ लिया. वो उसके पीछे-पीछे ऐली की क़ब्र तक गया. ऐंजिल डिकोस्टा एक सूती मटमैला सा झोला भी अपने कन्धे पर टांगे हुये था. क़ब्र पर पंहुचकर उसने कुछ अजीब सी ज़बान में दो-एक मन्त्र बुदबुदाये. ऐली की क़ब्र से तीन मुठ्ठी मिट्टी उठाकर एक लाल थैले में रख लिया. और उस लाल थैले को कसकर बांधा, उसे भी उसने अपने झोले में रख लिया. ऐंजिल डिकोस्टा जौन को लेकर चर्च के सबसे ऊपरी हिस्से तक चला आया. जौन यन्त्रवत डिकोस्टा का अनुसरण कर रहा था. ऐंजिल ने चर्च के सिरे तक जाकर एक छोटा कमरा खोला जहां खूब सारी रौशनी से पूरा कमरा जगमगा रहा था. बाहर भोर का समय था, और धुंधलका छाया था लेकिन इस कमरे में दोपहर जैसे चमकते दिन का अहसास होने लगा था. इस कमरे के बीचोंबीच एक छोटी मेज और तीन कुर्सियां करीने से रखी हुयीं थीं.

ऐंजिल डिकोस्टा ने उन कुर्सियों में से एक पर जौन को बैठा दिया. उसने जौन पर कुछ ‘पवित्र जल’ की बूंदें छिड़कीं और जौन को एक बड़ा-सा काला शनील का पैरहन पहना दिया. अब वो ख़ुद जौन के ठीक सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया.

जौन अन्दर से इस सन्नाटे और ऐंजिल डिकोस्टा की गतिविधियों से घबड़ाया हुआ था. लेकिन अपनी लाडली ऐली की बस एक झलक देखने-सुनने की हसरत अपने मन में लिये, ऐंजिल डिकोस्टा के आगे चूं भी नहीं कर रहा था.

डिकोस्टा ने अपने झोले में से कुछ चीज़ें निकालकर मेज़ पर फ़ैला दीं, मसलन पुराने ज़माने के भिन्न-भिन्न आकृति वाले कुछ सिक्के, कुछ नये-पुराने ताश के पत्ते, एक पीतल की कंघी, एक चांदी का प्याला, कुछ चमकीले कपड़े, ढेर सारी रंगबिरंगी मोमबत्तियां, एक दियासलाई वगैरह वगैरह. उसने लाल थैले से मिट्टी निकालकर मेज़ के बीच में रखी. अब इन सभी चीज़ों पर ऐंजिल डिकोस्टा ने पानी की कुछ बूंदें छिड़क दीं. फ़िर मोमबत्तियों को करीने से एक क़तार में रखकर उसने उन्हें जला दिया. ऐली का चित्र भी ऐंजिल डिकोस्टा ने क़ब्र से लायी हुयी मिट्टी के बीच खड़ी करके टिका दी. वो बड़ी तेज़ी से न जाने कौन-कौन और किस दुनिया के मन्त्र पढ़े जा रहा था. कुछ देर में जौन ने देखा उस कमरे में एकदम अंधेरा छा गया. अब केवल मोमबत्तियों की रौशनी में ही जौन को ऐंजिल डिकोस्टा का पसीने से भरा चेहरा दिख रहा था. ऐंजिल डिकोस्टा अभी भी आंखें बन्द किये मन्त्र पढ़ने में मशगूल था.

थोड़ी देर बाद जौन ने देखा एक पतली सुनहरी सी रौशनी की किरण, जो उस कमरे के एक बहोत ऊंचे रौशनदान से सीधा उसकी बेटी की तस्वीर पर आ गिरी है. कमरे के सभी परदे अचानक फ़ड़फ़ड़ाने लगे. जौन बड़ा परेशान होकर इधर-उधर देखने लगा, ना जाने कहां से एकाएक हवा के तेज़ झोंके उन दोनों को झकझोरने लगे. ऐंजिल डिकोस्टा निश्चल बैठा मन्त्र पढ़ता रहा. ना हवा ने, ना अंधेरे ने, ना ही ज़ोर ज़ोर से हिलते हुये कमरे के दरवाज़े-खिड़कियों ने और ना ही उन पर पड़े बेचैन परदों ने उसे डिगाया, ना रंचमात्र भी ऐंजिल डिकोस्टा विचलित ही हुआ. वो तो बस मन्त्र पर मन्त्र पढ़े जा रहा था. उसने कुछ लम्हे बाद, मन्त्र पढ़ने के दौरान ही जौन की हथेली को थामा और उसकी दसों उंगलियों को अपने बिछाये अजीबोग़रीब सिक्कों पर एकएक कर रख दी.

जौन ने कुछ ही लम्हों में बगल में पड़ी तीसरी कुर्सी पर एक हलचल-सी देखी, ठीक इसी लम्हे में उसने अपने दिमाग़ में कहीं एक धीमी आवाज़ भी सुनी, “डैडी....”

“ये तो ऐली की आवाज़ थी...” जौन बुरी तरह से व्याकुल हो गया. उसने ऐंजिल डिकोस्टा से अपने हाथ छुडाकर इधर-उधर मारना शुरू कर दिया, और बावरा होकर चीखने लगा,

“ऐली, माय डौटर कहां हो तुम.. मैं यहां हूं बेटा, तुम्हारा डैडी मैं... मैं यहां हूं.. आओ मेरे सामने आओ.. ऐली... ऐली...”

जौन के चीखना-चिल्लाना शुरू करते ही उसके सामने रखी सारी मोमबत्तियां एक साथ बुझ गयीं. कमरे में सब तरफ़ उजाला हो गया. हवायें ख़ुद-ब-ख़ुद ठहर गयीं.

उतावला होकर जौन, ऐंजिल डिकोस्टा से बड़े ही बेकल स्वरों में पूछने लगा,

“फ़ादर मेरी बेटी आयी थी.. मेरी बेटी ऐली आयी थी उसने मुझे पुकारा था.. कहां गयी.. बताओ ना फ़ादर, वो कहां गयी... कहां चली गयी.. फ़ादर बोलो ना.. बोलो ना फ़ादर..”

ऐंजिल डिकोस्टा उसे क्रोध से भरी लाल आंखों से घूरने लगा. उसने जौन से कुछ नहीं कहा और अपना सारा सामान एक एक कर मेज़ से समेटने लगा. उसने अपने झोले में सारी चीज़ें रखनी प्रारम्भ कर दीं, सामान रखकर डिकोस्टा उठने को हुआ ही था कि बौराया हुआ जौन अपनी कुर्सी से उठकर डिकोस्टा के पास आ पंहुचा. जौन फ़िर से व्यथित होकर उसके पैरों के पास बैठ गया और सिर झुकाकर रोने लगा. डिकोस्टा ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और धीरे से बोला,

“जौन मुझे जाने दो, मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकूंगा... जौन प्लीज़ लेट मी गो...”

जौन ज़मीन पर लम्बवत लेट गया और ऐंजिल डिकोस्टा के पंजों को पकड़े रहा. उसने रोते-रोते ऐंजिल से कहा,

“फ़ादर मेरी बेटी को मरे पूरे तीन महीने गुज़र गये हैं... मैं कब से यहीं इसी चर्च के पीछे कब्रिस्तान में रोता-गाता अपनी ऐली की मज़ार के चक्कर लगाता रहा हूं... मेरे सारे दोस्त, मेरे रिश्तेदार, मेरे कज़िन, मेरे सब रेलेटिव के आगे मैं इतने दिनों से रोता रहा कि एक बार, बस एक बार मुझे मेरी ऐली से मिला दो लेकिन किसी ने मेरी नहीं सुनी.. शायद वो सब इस लायक ही नहीं थे फ़ादर कि मुझे हेल्प कर भी पाते... तुम रियल ऐंजिल की तरह मिले हो मुझे.. बस एक तुम हो इस पूरे अर्थ पर, जिसने मेरी प्यारी गुड़िया की आवाज़ सुना दी मुझे.. मुझे तुम ही मिला सकोगे उससे.. प्लीज़ फ़ादर तुम इस तरह मुझसे मुंह मत फेरो.. फ़ादर मुझे ऐसे छोड़के मत जाओ.. मैं मर जाऊंगा फ़ादर.. गौड तुम्हें हमेशा ख़ुश रखेगा फ़ादर.. मेरी मदद करो.. मुझे सिर्फ़ तुम्हारा भरोसा है.. फ़ादर मुझे ऐसे छोड़के मत जाओ... फ़ादर रहम करो मुझ पर फ़ादर प्लीज़...”

ऐंजिल डिकोस्टा का दिल जौन की इन सब बातों को सुनकर और उसकी हालत देखकर, एक बार फ़िर पसीज गया. उसने फ़िर से उसे सहारा देकर उठाया. उसने जौन से दृढ़ होकर कहा,

“रो मत जौन.. हैव फ़ेथ इन गौड मैन.. गौड विल हेल्प यू.. अगर तुम मुझे कोऔपरेट नहीं करोगे तो तुम्हारी मदद मैं कभी नहीं कर सकूंगा.. जाओ, तुम अब शांत होकर अपने घर जाओ.. हम कल फ़िर एक बार कोशिश करेंगे.. कल भी इसी वक़्त नहाकर आ जाना...”

ऐंजिल डिकोस्टा ने उसे एक संकरे दरवाज़े से बाहर भेज दिया. ये दरवाज़ा सीधा चर्च के साइड वाले गलियारे में खुलता था. जौन ने दूर तक गई क़रीब तीस-पैंतीस सीढ़ियां उतरीं और लम्बे-लम्बे दो गलियारों को पारकर वो बाहर गली में आ गया. इस गली से निकलकर वो क़स्बे की मुख्य सड़क पर आ पंहुचा था.

अब तक दिन निकल आया था, और अच्छा-भला उजियारा चारों तरफ़ दिखाई दे रहा था. अब जौन ने अपने घर का रुख़ किया और सच्चे मन से अपने आराध्य को याद किया. रोज़मर्रा के कामकाजी लोग जैसे सब्जीवाले, दूधवाले, न्यूज़पेपर हौकर, परचून की दुकान वाले, सभी अपने-अपने काम-धन्धों पर निकल रहे थे.

जौन आज पहले की अपेक्षा बहोत संभला हुआ था. आज उसे अपनी जान से प्यारी बेटी ऐली के लिये उसका कलपना, उसका दिन-रात का बिसूरना, हर वक़्त शराब पिये चर्च के इर्द-गिर्द फ़िरना, ना जाने क्यों उचित नहीं लग रहा था. ‘ख़ुदा की मर्ज़ी थी ऐली उसे मिली, फ़िर ख़ुदा की ही मर्ज़ी से ऐली हमेशा के लिये उससे दूर चली गयी’. इस तरह के दार्शनिक-ख़्याल उसके दिल-दिमाग़ से आते-जाते रहे. वो ख़ुद को कुछ बदला हुआ महसूस कर रहा था.

उसके अपने एक-मंज़िल वाले, लेकिन बहोत सुन्दर-से मक़ान में ही उसका अपना एक बहोत करीने से सजा हुआ दफ़्तर था. उसका अपना कई सारी दुकानों वाला, भरा-पूरा मार्केट भी था. ऐली की मां ऐलीज़ा उसके दफ़्तर को संभाला करती थी. ऐलीज़ा की मौत के बाद, ऐली को लिखाई-पढ़ाई में लगाकर, जौन यहीं घर में बना दफ़्तर और अपना फ़ैला-पसरा क़ारोबार चलाता रहा. ऐली के मरने के बाद जौन का जी ना तो दफ़्तर में लगा, ना घरबार में और ना ही क़ारोबार में. वो ख़ुदा से रूठा हुआ, अपनी क़िस्मत को कोसता ऐली के क़ब्र पर धरना दिये, वहीं आवारों की तरह रहने लगा था. रात-बेरात अगर उसका उसके मकान में आना होता भी था, तो उसके पांव उस देहरी के भीतर ज़्यादा देर टिकते नहीं थे. मुंह-अंधेरे वो वापस अपनी दुलारी बेटी के क़ब्र के पास धमक जाता था. जौन वहीं बैठा-बैठा घण्टों, कल्पना-जगत में विचरता हुआ अपनी बेटी और बीवी से बतियाता रहता था.

लेकिन आज कई महीनों बाद जौन महसूस हो रहा था, कि उसको ऐंजिल डिकोस्टा के वात्सल्य भरे स्पर्श ने और ‘पवित्र जल’ की राहत देने वाली कुछ बूंदों ने थोड़ा सा ही सही लेकिन संभाल दिया था. जौन को ये बारीक़ अहसास हो चला था कि उसकी अकुलाहट, उसकी बेसब्री और उसके व्याकुल जी के चलते ही आज वो ऐली से दो-बात करते-करते रह गया था. उसने घर पंहुचकर पूरे अपने मकान, अपनी बेटी की सजाई बगिया और अपनी बीवी के बनाये हुये दफ़्तर की खूब सफ़ाई की, धुलाई की और सबकुछ अपने हाथों से चमका डाला.

जौन ने ऐली और ऐलीज़ा की तस्वीरों पर जमी धूल की परतें भी साफ़ कीं, उनके सामने अगरबत्ती जलाई और ताज़े फूलों से उन तस्वीरों को यूं सजाया जैसे कोई बड़ी तल्लीनता से दुल्हन सजाता हो. वो उन तस्वीरों को ख़ुद ही तस्वीर बना प्रेम से निहारता रहा. दिन भर के कई सारे काम-काज निपटाता रहा.

यही सब करते-कराते रात हो आयी. उसकी बगिया में ऐली की लगाई रातरानी महकने लगी और जहां-तहां जुगनू टिमटिमाने लगे. जौन थककर अपने घर की खिड़की पर आकर बैठ गया और अपने छोटे-से बगीचे को देखने लगा. उसको फ़िर ऐली की याद आ गयी, वो ये सब याद करके तड़प उठा कि वो जब बच्ची थी, तो कैसे इन जुगनुओं के पीछे-पीछे भागती-फ़िरती थी.

जौन को अपने बागीचे में ऐलीज़ा की मुस्कुराती हुयी छाया भी रह रहकर दिखती रही, जब वो पहली बार उसके घर में, उसकी ज़िन्दग़ी में दुलहन बनकर दाखिल हुयी थी. जौन को गुनगुनाती हुई ऐलीज़ा का क्रिसमस का रंगीन पेड़ सजाना भी याद आता रहा, जब ऐली अपनी मां को तंग करते हुये कभी केक का टुकड़ा तो कभी सजाने वाले खिलौने या फल उठाकर भाग जाया करती थी. जौन ख़्यालों में ही ऐली को दौड़ते-भागते और ऐलीज़ा को उसका पीछा करते सोचकर हंस पड़ा. उसके आंसुओं की अविरल धारा उसके गुज़रे हुये सुनहरे दिनों को सामने घूमता हुआ देखकर बहती रही.. बहती रही.

उसने उसी खिड़की पर बैठे-बैठे पूरी रात गुज़ार दी.

कभी अतीत की झिलमिल यादों में जीकर मुस्कुराते हुये, तो कभी कचोटती हुयी यादों की तड़प से रोते हुये, कभी ऐलीज़ा का गाये हुये गीत गुनगुनाते, तो कभी लगातार बहते हुये आंसुओं को बार-बार पोछते हुये.

अगली भोर, ऐंजिल डिकोस्टा फ़िर उसी मुद्रा में, उसी जगह, जौन को सामने बिठाये अपने झोले के सामानों को मेज पर सजा रहा था. उसने पिछली रात वाली सारी प्रक्रियायें, बिलकुल उसी क्रम में दोहराईं थीं. लेकिन इस बार उसने मन्त्र पढ़ने के लिये आंखें बन्द करने से पहले, जौन के हाथ थामकर, उसको बड़े आराम से समझाया,

“देखो मैन.. अब मैं तुम्हारी बेटी को पुकारूंगा.. गौड ने परमिशन दी तो वो आयेगी भी.. लेकिन तुम्हें पूरा कोऔपरेट करना ही होगा.. तुम इन सिक्कों पर ठीक उसी तरह उंगली रखे रहना एकदम जैसे मैंने रखी हुयीं हैं.. ये लिंक अगर टूटेगा तो फ़िर तुम अपनी पूरी लाइफ़ में कभी अपनी बेटी से कौन्टैक्ट नहीं कर सकोगे.. माय सन, पिछली बार टूटा हुआ कम्यूनिकेशन मैं फ़िर से बनाने की कोशिश करूंगा... गौड विल हेल्प यू... डोन्ट फ़ौरगेट, यू हैव टू कोऔपरेट विद अस.. ओके...”

जौन बड़ी संजीदग़ी से ऐंजिल डिकोस्टा को मन्त्र पढ़ते हुये देखने लगा. मन्त्र-उच्चारण के वेग के साथ, फ़िर अंधेरा हुआ, दरवाज़े-खिड़की-परदे तेज़ हवाओं के साथ थरथराये. वही एक पतली सुनहरी सी रौशनी की किरण उसकी बेटी की तस्वीर पर फ़िर से आ गिरी. जौन के बगल वाली ख़ाली पड़ी तीसरी कुर्सी पर जौन ने आज फ़िर आहट महसूस की.

उसे फ़िर लगा, एक आवाज़ उसके दिमाग़ को छूकर गुज़री.

“डैडी... क्यों जगाया मुझे...”

जौन ने अपने आप को कठोरता से थामे रखा. इस नाज़ुक घड़ी में वो ख़ुद पर बड़ी मुश्किल से क़ाबू रख सका और इस बार अपनी उंगलियों में कोई हरक़त नहीं होने दी. लेकिन उसकी आंखें उसका पूरा कहा नहीं मान रही थीं. ऐली की मीठी आवाज़ सुनकर वो झरझर-झरझर बहने लगीं थीं.

उसने भारी हुई आवाज़ और रुधें हुये गले से सिर्फ़ एक वाक्य कहा,

“ऐली, बेटा तुम कहां हो....”

उसने कट कट कर फ़िर कुछ शब्द सुने,

“मालूम नहीं डैडी... मालूम नहीं.. लेकिन... ये बहोत अच्छी जगह है.. मुझे यहां... अच्छा लगता है...”

जौन ऐली की बात सुनकर और ज़ोर से रो पड़ा. फ़ादर डिकोस्टा ने उसे हाथ सहलाकर हौसला दिया..

ख़ुद को सख़्त बनाकर, उसने ऐली से फ़िर पूछा,

“तुम्हें मेरी याद नहीं आती ऐली? अपने डैडी की याद नहीं आती...?”

“उस बच्चे की याद आती है... वो मेरे सामने अनाथ हो गया था.. उसके ममा-डैड मेरे सामने मर चुके थे... उसे ले आओ डैडी.. वो अनाथ हो गया है....”

जौन सोच में पड़ गया. उसके लगातार बहते आंसू पल भर को थम गये. उसने आगे कहा,

“कौन सा बच्चा ऐली... तुम कहां हो, किसकी बात कर रही हो...”

जौन ने एक बार फ़िर अटक अटक कर आती मधुर आवाज़ें सुनी,

“यहां बहोत सुक़ून है डैडी... मुझे मत जगाना.. मुझे नहीं पता ये स्वर्ग है कि नर्क है, लेकिन मुझे यहां बहोत अच्छा लगता है... डैडी मुझे डिस्टर्ब ना करो.. मुझे हमेशा यहीं रहना है... मैं जा रही हूं... डैडी.... मुझे मत बुलाना...”

अबकी बार इन आवाज़ों का स्वर क्रमश: धीमा होने लगा और एक सीमा तक जाकर समाप्त हो गया.

“ऐली... ऐली... सुनो तो.. बेटा... ऐली... कहां जा रही हो.. ऐली.. ऐली..” जौन पुकारता रह गया.

ऐंजिल डिकोस्टा ने आंखें खोलकर जौन को देखा. कमरे में प्रकाश फ़िर से लौट आया था. मोमबत्तियों की लौ फ़िर से मद्धिम पड़ गयीं. परदे शान्त हो गये थे. दरवाज़े फ़िर से चुपचाप खड़े हो गये थे. खिड़कियां शांति से पहले की तरह रहस्य से मुस्कुरा रही थीं. पूरा कमरा फ़िर से मौन हो गया था.

ऐंजिल डिकोस्टा ने भी अपने सारे अहम सामानों को फ़िर से सहेजा. जौन गंभीर मुद्रा में जड़वत बैठा था. फ़ादर डिकोस्टा ने जौन की ओर सादगी से देखा और छोटा लाल थैला उसे थमाते हुये कहा,

“ये लो... ये तुम्हारी बेटी की क़ब्र की मिट्टी है.. इसे वापस वहीं डाल दो... उससे अब तुम्हारी बात हो गयी है.. मुझे यक़ीन है, कि वो हेवेन में है.. उसे राहत है वहां... वो ख़ुश भी है.. जौन अब वो एक स्पिरिट है.. तुम उसे तंग करोगे तो उसकी रूह को दु:ख पंहुचेगा.. अगर उसने तुम्हें कोई मैसेज दिया है, तो उसे फ़ौलो करो... गौड ब्लेस यू माय सन...”

इतना कहकर, फ़ादर डिकोस्टा अपने झोले सहित उठे, कमरे से बाहर आये और धीरे-धीरे सीढ़ियों से उतरकर चर्च के भीतर कहीं विलुप्त हो गये. जौन भी जैसे गहरी नींद से जागा. उसने सीढ़ी से उतरकर गलियारा पार किया, और चर्च के पीछे क़ब्रगाह पंहुचा. उसने ऐली की क़ब्र में उसके हाथ में रखी सारी मिट्टी डाल दी. जौन उसकी क़ब्र पर खड़े होकर ख़ुद से ही कहता गया,

‘ऐली... माय स्वीट ऐली.. मैंने तुम्हारा मैसेज सुन लिया है.. मैंने तय कर लिया ऐली... अब मैं उस अनाथ बच्चे का पता लगाकर ही चैन पाऊंगा.. उसको उसी तरह प्यार से पालूंगा, उसी तरह दुलार से बड़ा करूंगा. जैसे मैंने तुम्हें किया था.... ऐली, मेरा बेटा, ये बात तुम समझ लो, वो बच्चा अब अनाथ नहीं है.. यही अब मेरी लाइफ़ का ऐम है ऐली... अब मैं तुम्हें भी कभी तंग नहीं करूंगा... बाय गौड अब वो बच्चा, तुम्हारा डैडी खोज के लायेगा.. चाहे इसके लिये मुझे जो भी करना पड़ जाये... तुम्हारा डैडी अब उसे ऐडौप्ट करके ही दम लेगा... कोई बात नहीं कि वो बच्चा मेरी ऐलीज़ा के पेट से नहीं जन्मा, कोई बात नहीं कि वो कहीं दूर देश से आया होगा... लेकिन मैं उसे बहोत अरमानों से, मोहब्बत से यहां लेकर आऊंगा... अब तो केवल वो बच्चा, तुम्हारा और तुम्हारी मां का सजाया हुआ मेरा घर... बस यही अब यही मेरी लाइफ़ है ऐली... आय प्रौमिस यू, तुम हेवेन से देखना तुम्हारा डैडी कितना अच्छा बन के दिखायेगा तुम्हें... तुम दोनों मुझे इस दुनिया में अकेले छोड़के चले गये तो क्या हुआ... ये जौन, उस बच्चे का भी अच्छा डैडी बनके दिखायेगा तुम्हें... तुम देख लेना ऐली... तुम देख लेना ऐलीज़ा...”

ऐली की मज़ार पर हवा के नाज़ुक झोंके से उठते-गिरते फूल-पत्तियां उड़ उड़ कर, जैसे जौन को उसके फ़ैसले के लिये और एक नई ज़िन्दग़ी के लिये बधाई दे रहे थे.

जौन अपनी आंखों में छलकते हुये ख़ुशी के आंसुओं को लिये, मजबूत इरादों के साथ अपने घर की ओर चल पड़ा.

 

भूमिका द्विवेदी अश्क

द्वारा श्री उपेन्द्रनाथ अश्क जी।

जन्मतिथि/ स्थान - 23 दिसम्बर।

इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश।

शैक्षिक योग्यता -

एम.फ़िल. दिल्ली विश्वविद्यालय.

एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य), इलाहाबाद विश्वविद्यालय.

एम.ए. (तुलनात्मक साहित्य) इलाहाबाद विश्वविद्यालय।

पुरस्कृत पुस्तकें -- "बोहनी" कहानी संग्रह, भारतीय ज्ञानपीठ,

नवलेखन (अनुशंसा) २०१७ पुरस्कार प्राप्त।

"आसमानी चादर" उपन्यास, मीरा स्मृति पुरस्कार, २०१७, साहित्य भंडार।

प्रकाशित/अनूदित पुस्तक –

The Last Truth अंग्रेजी भाषा में।

कुछ पुस्तकें, कहानी संग्रह, उपन्यास, कविता संग्रह प्रकाशनाधीन।

अन्य प्रकाशन –

समस्त साहित्यिक एवं थियेटर संबंधी शीर्ष पत्र/ पत्रिकाओं - पहल, नया ज्ञानोदय, वागर्थ, आउटलुक, पाखी, रंग प्रसंग, लहक, लमही, संवेद, जनसत्ता, N.I.P., समावर्तन, अमर उजाला जागरण इत्यादि में प्रमुखता से रचनायें/ साक्षात्कार/ लेखादि प्रकाशित।

अन्य सम्मान/पुरस्कार/गतिविधि-

चित्रकला में कई क्षेत्रीय और राज्य स्तर के पुरस्कार प्राप्त एवम कई प्रदर्शनियों में सहभागिता।

उत्तर प्रदेश सरकार से मेधावी - छात्र सम्मान प्राप्त।

शतरंज और Race में अपने राज्य का प्रतिनिधित्व।

आकाशवाणी, दूरदर्शन में लगातार बहुविषयक कार्यक्रम प्रसारण।

सम्प्रति-

विगत १० वर्षों से दिल्ली निवास।

स्वतंत्र लेखन/चिंतन

अंग्रेजी साहित्य से शोध की तैयारी.

संपर्क - 9999740265, 9910172903 ई-मेल - bhumika.jnu@gmail.com

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