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  • मनमोहन भाटिया

लोफर

निरंजन आज सुबह जल्दी अपनी वर्कशॉप में आकर काम में व्यस्त हो गया। शाम पांच बजे तक हर हालत में कार ठीक करके देनी है। बिना पलक झपके काम में अपने कर्मचारियों के संग कार को दो बजे ही दुरुस्त कर दिया।

अब निरंजन ने चैन की सांस ली और खाना खाने के पश्चात वर्कशॉप से बाहर आया। एक नजर वर्कशॉप के ऊपर डाली। बहुत बड़े बोर्ड पर लिखा था "निरंजन ऑटो वर्कशॉप"। निरंजन ने स्कूल में सिर्फ दसवीं तक पढ़ाई की। पढ़ाई में कभी मन लगा नही और दसवीं की बोर्ड परीक्षा में असफल होने पर पिता का हाथ बटाने वर्कशॉप में काम करना आरम्भ किया। पिता की इच्छा थी कि निरंजन पढ़ लिख जाए परन्तु यह हो नही सका। पिता ने वर्कशॉप का नाम पुत्र निरंजन के नाम पर रखा "निरंजन ऑटो वर्कशॉप"। दो वर्ष में निरंजन पूरा काम सीख गया। छोटी से बड़ी के साथ विदेशी कार ठीक करने का हुनर उसमे था।

वर्कशॉप के सामने चाय की दुकान पर निरंजन कुल्हड़ वाली चाय पी रहा था तभी उसकी नजर कॉलेज की चार युवतियों पर टिकी। चाय की दुकान पर बैठ कर उन्होंने अपने टिफिन खोले। खाने के साथ चाय की चुस्कियां लेती हुई अल्हड़पन में बातें कर रही थी। निरंजन ने उनको देखा और एक युवती पर उसकी निगाह टिक गई। निरंजन उस युवती को देखता ही रह गया।

सात-आठ मिनट मुश्किल से वो चार युवतियां चाय की दुकान पर बैठी और उन चंद क्षणों में निरंजन उस युवती पर मुग्ध हो गया। युवतियों के चले जाने पर उनको जाता देखता रहा।

चाय वाले ने निरंजन को हाथ लगा कर कहा "भाई जान वो तो चली गई। अब तो नजर से ओझल हो गई हैं।"

निरंजन चाय की दुकान पर बेंच पर बैठ गया "अब्दुल नजर से ओझल तो हो गई है पर दिल चुरा गई।"

अब्दुल "किस ने चुरा लिया दिल? हजूर कुछ तो बतलाइए।"

"एक जो सांवली थी उसने।" निरंजन ने एक और कड़क चाय पिलाने को कहा।

अब्दुल ने निरंजन के लिए एक स्पेशल बढ़िया सी कड़क चाय बनाई और निरंजन को देकर कहा "ये लड़कियां कॉलेज में पढ़ती हैं और अक्सर इसी समय घर के बने पराठें मेरी बनाई चाय के साथ खाती हैं।"

"अब्दुल तेरे मुंह में घी शक्कर। अब जब भी ये युवतियां आएं, मुझे बस इशारा कर देना।"

निरंजन वर्कशॉप में अपने केबिन में बैठा सिर्फ उस युवती के बारे में सोचता रहा। चार युवतियों में तीन गोरी थी परंतु जिस युवती ने निरंजन के कलेजे में कटार खोंप दी उसका रंग सांवला, लंबा कद, तीखे नैन-नक्श और छऱछरा बदन। उसकी आंखों में बस वही घूमने लगी।

आज नौ वर्ष हो गए वर्कशॉप में काम करते हुए। पंद्रह की उम्र में पिता का हाथ बटाना शुरू किया और आज चौबीस का हो गया। इन नौ वर्षो में केवल काम ही काम जिसकी बदौलत उसकी गिनती बेहतरीन और कुशल कारीगरों में होती है। वर्कशॉप में कारों की लाइन लगी होती है। सत्रह कारीगर उसके आधीन काम करते हैं। सुबह से शाम उसके तन और मन में सिर्फ काम की काम रमा बसा था।

लेकिन आज काम पर वह सांवली युवती हावी हो गई। आईने में चेहरा देखा। दाढ़ी बढ़ी हुई, रूखे बाल। नही यह नही चलेगा। उसे यदि उस युवती से बात करनी है और आकर्षित करना है तब उसे भी तो अपनी चाल और हुलिए को बदलना होगा।

अगली सुबह सैलून में जा कर बाल कटवाए और शेव बनवाई। बालों को शैम्पू से धोया। ढंग के कपड़े पहने। वर्कशॉप में किसी कार को हाथ नही लगाया। सब कारीगरों को दिशा निर्देश देता रहा।

दोपहर के समय अब्दुल चाय वाले की दुकान पर बैठ गया। युवतियां आई पर आज चाय की दुकान पर नही बैठी। सीधे बस स्टॉप की ओर चली गई। निरंजन निराश हो गया।

"भाई जान, फिक्र मत करो। आज नही तो कल जरूर दुकान पर बैठेंगी। सप्ताह में तीन-चार दिन तो अवश्य रुक कर चाय पीती हैं।"

तीन दिन तक निरंजन बुझा सा रहा। शनिवार और रविवार कॉलेज की छुट्टी के कारण युवतियां वहां से नही गुजरी।

सोमवार को निरंजन की वर्कशॉप का साप्ताहिक अवकाश था फिर भी निरंजन दोपहर के समय वर्कशॉप के सामने अब्दुल की दुकान पर बैठ गया। थोड़ी-थोड़ी रुक-रुक कर बरसात हो रही थी। चारों युवतियों के दल ने अब्दुल की दुकान पर अपने नियमानुसार बैठ कर खाने के डिब्बे खोले और मिल बांट कर खाने लगी। अब्दुल उनकी चाय बना रहा था। चाय बनने पर निरंजन ने अब्दुल से चाय लेकर उन युवतियों को दी।

चाय देने के बाद निरंजन ने उस सांवली युवती से उसका नाम पूछा। इतना सुनकर चारों युवतियां पहले तो सकपका गई फिर तीखी नजरों से गुस्से से एक साथ जवाब दिया।

"नाम पूछने वाले तुम कौन होते हो?"

"जी मैं, वो आप सामने निरंजन ऑटो वर्कशॉप देख रही हैं, उसका मालिक हूं। वर्कशॉप मेरी है।" निरंजन ने बहुत सादगी के साथ उत्तर दिया।

"मैकेनिक हो?"

"मेरी वर्कशॉप में सत्रह मैकेनिक काम करते हैं, मैं मालिक हूं। आपको अक्सर देखता हूं और आपसे दोस्ती करना चाहता हूं।" निरंजन ने सांवली युवती को कहा।

चारों युवतियां खड़ी हो गई। "चलो यहां से।"

निरंजन ने सांवली युवती के सामने खड़ा होकर उसका रास्ता रोका। युवती ने हट कर निकलने की कोशिश की तब निरंजन ने उस सांवली युवती का हाथ पकड़ लिया।

"लोफर।" कह कर उसने हाथ छुड़ाने का प्रयत्न किया लेकिन कोशिश असफल रही। उसकी तीन मित्रों ने शोर मचाया

"बचाओ।"

निरंजन को वहां सभी जानते थे, उसने सांवली युवती का हाथ छोड़ दिया। चारों युवतियां फटाफट वहां से चली गई।

अगले दिन दोहपर के समय निरंजन अपनी वर्कशॉप में उनका इंतजार करने लगा। वो चाय की दुकान पर नही रुकी। निरंजन वर्कशॉप से बाहर आकर उस सांवली युवती के आगे खड़ा हो गया।

"प्लीज मुझे गलत मत समझो। मैं कोई लोफर नही हूं मैं इस वर्कशॉप का मालिक हूं। मेरा नाम निरंजन है और मेरी वर्कशॉप की दुनिया में बहुत अच्छा नाम है। आपसे कुछ बात करना चाहता हूं।"

उस सांवली युवती ने जोर से निरंजन के मुंह पर तमाचा जड़ दिया।

"नयना तुमने बिल्कुल ठीक किया। लोफर को सबक सिखा दिया।" नयना की मित्र शिल्पी ने कहा और बुत बने निरंजन के मुख पर एक तमाचा रसीद कर दिया।

"चलो लोफर के क्या मुंह लगना?" बाकी दो मित्रों ने कहा और चारों मित्र तेज कदमों से आगे बढ़ गई।

वर्कशॉप के कर्मचारी अब्दुल की दुकान पर एकत्रित हो गए। निरंजन के पिताजी भी दौड़े-दौडे वर्कशॉप से बाहर निकले।

"क्या हुआ पुत्तर?"

"वो लड़कियां सरजी को मार गई पापाजी।" दो मिस्त्रियों ने एक साथ कहा।

"क्यों मारा यह तो पता चले?" पिताजी गुस्से में बोले।

"यह तो नही पता। सरजी उनसे बात कर रहे थे कि लड़की ने थप्पड़ मार दिया।"

"तू चुपचाप बुत बन कर क्यों खड़ा है। मुंह से कुछ बोल, हुआ क्या?"

"अंदर चलो पापाजी, बताता हूं।"

सब वर्कशॉप के अंदर जाते हैं। निरंजन अपने पिताजी के साथ केबिन में बात करता है और अपने एकतरफा प्यार का इजहार बताता है। निरंजन के पिताजी उसको समझा कर एकतरफा प्यार से बाहर आने को कहते हैं परंतु निरंजन के दिल और मन मे नयना समाई है।

घर पर उसकी मां के साथ चाचा और मामा भी समझाते हैं कि मजनू का भूत दिल से निकाल दे लेकिन निरंजन नही माना। निरंजन की विवाह की उम्र हो रही है। परिवार ने योग्य लड़की की तलाश शुरू की और निरंजन ने नयना के घर की। उस दिन के बाद नयना और उसके मित्रों ने अपना रास्ता बदल लिया। निरंजन ने चुपके से नयना का कॉलेज से घर तक पीछा करके उसके घर का पता लगा ही लिया।

परिवार द्वारा सुझाये रिश्तों को निरंजन ने ठुकरा दिया और अपनी जिद पर अडिग रहा। अंत में और कोई रास्ता न देख पाने की सूरत में निरंजन के पिता और चाचा नयना के घर रिश्ता लेकर गए।

नयना का परिवार निम्न मध्यम वर्ग का था औऱ एक छोटे से मकान में रहता था। परिवार में नयना के माता-पिता के साथ नयना और उसका छोटा भाई हैं। मकान में एक कमरा और एक रसोई के साथ छोटा सा बरामदा है। बरामदे में बाहर की ओर एक छोटी सी किराने की दुकान नयना के पिता चलाते हैं जिसमे उसकी माता खाली समय में सहायता करती है।

अचानक नयना के रिश्ते की बात सुनकर नयना के माता-पिता हैरान हो कर सोच में पड़ गए।

"नयना अभी पढ़ रही है, कॉलेज में पहला वर्ष है। उसे पढ़ने में बहुत रुचि है और पढ़ने के बाद अच्छी नौकरी करना चाहती है। उसकी शादी का हमने अभी सोचना भी शुरू नही किया है। हमारी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नही है, इसलिए हम सोचते हैं कि नयना पढ़ कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाये।" नयना के माता-पिता ने चिंता जाहिर की।

"देखिए, हम अधिक पढ़े नही हैं परंतु पढ़ाई का महत्व समझते हैं। नयना जितना पढ़ना चाहे, हम उसे पढ़ने देंगे। शादी के बाद भी नयना जितना चाहे पढ़ाई कर सकती है।" निरंजन के पिता और चाचा ने नयना के माता-पिता की यह चिंता तो दूर की।

आर्थिक अभाव में सदा जूझते नयना के माता-पिता को आर्थिक सम्पन्न परिवार से आया रिश्ता पसंद आया फिर भी नयना की पसंद पर बात छोड़ दी। नयना ने निरंजन की फोटो देखते ही मना कर दिया और निरंजन के हाथ पकड़ने वाली बात बताई। उसकी निगाह में निरंजन एक लोफर है। बेटी की बात पर गौर करके निरंजन के परिवार से बात स्पष्ट की।

"अगर हमारा बेटा लोफर होता तब नयना के साथ कुछ अनर्थ भी कर सकता था। एक शरीफ घर का शरीफ बेटा है जिसने आपकी बेटी के साथ कुछ भी गलत नही किया। हम खुद रिश्ता लेकर आये हैं। आप निरंजन का प्यार देखिए, आंखों में बिठा कर रखेगा।" निरंजन के पिता और चाचा ने सब कुछ स्पष्ट शब्दों में नयना के माता-पिता से रिश्ते पर दिल से नही बल्कि दिमाग से विचार करने के लिए कहा।

नयना के माता-पिता ने अपने भाइयों से विचार विमर्श किया। सभी ने रिश्ता मंजूर करने की सलाह दी कि घर बैठे अच्छा रिश्ता आया है। नयना की जिंदगी संवर जाएगी। अपनी आर्थिक स्थिति पर विचार करके और परिवार के दबाव में आकर मजबूरी में नयना ने शादी के लिए हामी भर दी।

विवाह के लिए हामी कर दी परंतु नयना के नेत्र जल में डूबे रहते। उसका दिल अनहोनी सोच कर धड़कता रहता। कैसे निरंजन के संग रह सकेगी? यही सोच कर नयना के नेत्रों से रातों में दरिया बहने लगती। माता-पिता की खुशी देख कर कुछ नही कहती परंतु अकेले में आंसू बहाती।

आंसू विवाह के आड़े नही आये और नयना निरंजन के साथ पवित्र अग्नि के समझ सात फेरे लेकर विवाहिता हो गई।

सुहागरात में निरंजन ने अपने होंठ नयना के गाल पर रखे और नयना ने नेत्र बंद कर लिए। बेसुध नयना बस निरंजन की बाहों में कैद हो गई। उसके मन और तन में कोई खुशी या उत्साह नही था। बेदिल नयना ने अपना तन तो निरंजन को सौंप दिया परंतु मन नही दे सकी। बुझी-बुझी नयना को निरंजन ने पा लिया। निरंजन विवाह के एक सप्ताह तक नयना के मन को नही भांप सका। जब सब रिश्तेदार विदा हो गए और विवाह की रस्में भी पूर्ण हो गई, उसके बाद निरंजन और नयना हनीमून के लिए कुल्लू-मनाली के लिए रवाना हुए।

हनीमून के दौरान निरंजन ने नयना का दर्द महसूस किया। निरंजन के पूछने पर भी नयना ने अपने दिल की बात नही बताई।

"नयना मुझे ऐसा क्यों लगता है कि तुम मुझे पसंद नही करती? अधिकांश समय बुझी-बुझी सी रहती हो। जो उमंग और जोश नवविवाहिता में होता है तुम्हारे अंदर गायब है। अपने दिल की बात मुझे बताओ। बात को सांझा करने से ही कोई हल निकलेगा।"

निरंजन के पूछने पर भी वो बात को टाल गई। उसने अपने दिल में बात को दबा दिया।

"ऐसी कोई बात नही है। मैं अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हूं। यही सोचती हूं कहीं आप पढ़ाई छुड़वा न दें।"

निरंजन बात को भांप गया कि नयना ने दिल की बात उससे छिपा ली। हनीमून से वापस आने पर अगले ही दिन निरंजन ने नयना को कॉलेज जाने की अनुमति दे दी। नयना अब कार में कॉलेज जाती और वापस भी कार में आती। पहले नयना अपने मित्रों के साथ पैदल आती थी, अब कार में आती। उसकी मित्र भी कार में उसका साथ देते। ड्राइवर वर्कशॉप के सामने अब्दुल की चाय की दुकान पर कार को रोकता। नयना और उसके मित्रों के संग निरंजन भी अपना टिफिन खोल कर उनके साथ खाना खाता और सब अब्दुल की स्पेशल चाय पीते। खाने के दौरान निरंजन सभी के संग हंसी-मजाक करता। निरंजन के संग बुझी रहने वाली नयना अपने मित्रों संग घुलमिल कर हंसते हुए बातें करती। नयना के मित्रों ने विवाह के बाद निरंजन को उसकी नयना का हाथ पकडने की घटना को मांफ कर दिया था। उनकी नजरों में निरंजन एक नायक है और उसके जैसा ही अपने जीवनसाथी की चाह रखने लगी। नयना यह भांप गई इसलिए उनके सामने निरंजन के प्रति खुशी जाहिर करती।

निरंजन नयना का दिल जीतने के लिए उसकी मित्रों को घर पर एक साथ पढ़ाई के बहाने अक्सर बुलाने लगा। नयना के मित्र निरंजन से बहुत अधिक प्रभावित हुए कि निरंजन नयना की हर सुविधा का अधिक ध्यान रख रहा है और उसकी पढ़ाई नही छुड़वाई। निरंजन का प्रयास सफल रहा और नयना प्रथम श्रेणी में ग्रैजुएट हुई।

हनीमून से नयना के ग्रैजुएट होने तक निरंजन ने नयना को अपने अंग नही लगाया। वह मुरझाई पत्नी को खिलता देखना चाहता था जो स्वयं उसे प्यार करे।

ग्रैजुएट बनने पर नयना बहुत खुश थी। निरंजन का पूरा परिवार अति प्रसन्न था। निरंजन के परिवार में किसी ने कॉलेज में पढ़ाई नही की थी। नयना परिवार में पहली ग्रैजुएट बनी। निरंजन के परिवार ने घर पर बहुत बड़ी दावत रखी, जिसमे नयना के परिवार और उसकी सभी मित्रों को परिवार संग आमंत्रित किया।

सभी परिजनों और मित्रों के बीच निरंजन के माता-पिता ने नयना को आगे पढ़ाई जारी करने के लिए अनुमति दे दी।

"हमारी बहु की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। गृहस्थ जीवन के पूरे दायित्व निभाते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की। अपनी इच्छानुसार नयना जितना पढ़ना चाहे, पढ़ सकती है।"

परिवार के स्नेह और निरंजन के सब्र ने नयना का हृदय परिवर्तन कर दिया।

रात को सोने के समय निरंजन ने नयना की ओर देखा। उसके होठों पर एक बड़ी मुस्कान थी। बुझी-बुझी रहने वाली और निरंजन से दूरी रखने वाली नयना ने निरंजन के माता-पिता को निरंजन के साथ रूखेपन की भनक भी नही लगने दी थी। नयना को खुश देख कर निरंजन ने उससे पूछा।

"नयना तुम आगे क्या पढ़ना चाहती हो?"

निरंजन के पूछने पर नयना ने अपना हाथ निरंजन के हाथ के ऊपर रखा। नयना के होठों पर बहुत बड़ी मुस्कान के साथ हाथ पर हाथ निरंजन के लिए प्यार का आमंत्रण था। निरंजन नयना के नजदीक आया और अपने होंठ नयना के होंठों के नजदीक लाया।

"लोफर।" नयना ने धीरे से कहा।

"तुम मुझे लोफर समझती हो?"

"बिल्कुल लोफर हो। जो सड़क पर अनजान लड़की का हाथ पकड़े, वो लोफर होता है।"

"इसलिए मुझसे खफा रहती थी?"

"बिल्कुल।"

"और अब।"

नयना ने निरंजन के आगे आते होंठों को चूम कर फिर कहा। "लोफर।"

निरंजन ने नयना के होंठों पर होंठ रखे। नयना के नेत्रों में खुशी के आंसू थे और दो तन एक हो गए।

 

लेखक मनमोहन भाटिया

manmohanbhatia@hotmail.com

फोन 9810972975

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