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  • डॉ. अनिल भदोरिया

मौन अभिव्यक्ति

नगर के नए विकसित होते इलाक़े में बनता एक अस्पताल.....

चारों ओर हरियाली, खुला मैदान, ठंडी हवा का अनथक दौर और मिट्टी की सोंधी खुशबू.

चारों ओर गांवो से घिरा शहर का बाहरी हिस्सा जहां अंग्रेज़ी सभ्यता अपने पैर पसारती जा रही है।

अस्पताल का उदघाटन समारोह, चिकित्सा सेवा के व्यवसाय से जुड़े सभी नामचीन, बडे, छोटे चिकित्सक आमंत्रित हैं, प्रतिष्ठित चिकित्सक दंपत्ति के सर्व सुविधा युक्त स्पेशलिटी केंद्र का शुभारंभ जो है।

मेहमानों का आना प्रारम्भ हुआ ओर कच्ची-पक्की सड़क सड़क पर धूल का उफान उठता ओर शांत होता। आगंतुको की लगातार झड़ी लगने लगी, गले मिल मित्रवत बधाई और धन्यवाद का हर्षातिरेक सिलसिलाऔर साथ ही उपहारों का समर्पण और पुष्प-गुच्छ के द्वारा अपनी सद-इच्छा , सद्भावना का प्रगटीकरण।

पुष्प-गुच्छ भी छोटे, बड़े, अत्यधिक बड़े , सुंदर फूलों से गुंथे हुए, ताजेपन की नवीनता लिए हुए, पानी की बूंदों से नहाये हुए, पारदर्शी जिलेटिन के पर्दे के पीछे से मोहमयी मुस्कान के साथ झांकते हुऐ।

ये पुष्प अपना 100 प्रतिशत समर्पित करते है, खिलखिलाते हुऐ जैसे इन फूलों की खुशी का कोई अनुपम त्यौहार हो तथा ये पुष्प गुच्छ के रूप में इस आयोजन में न्योछावर हुए जा रहे हों।

खेतों, बाग और बगीचों में माली के हाथों सहेजकर बाज़ार में लाते हुए, गुलदस्ता का हिस्सा बनते हुए और क्रेता विक्रेता के मुद्रा विनिमय होने तक हर क्षण अपनी पूरी क्षमता से निरंतर मोहमयी मुस्कान बिखेरते ये गुलाब, गुलदाउदी, सेवंती, मोगरा, ट्यूलिप, लिली, बेला, गुलमोहर के फूल भूल जाते हैं या भुला दिए जाते हैं कि प्रकृति ने इनकी उत्पत्ति परागण द्वारा बीज उत्पत्ति या संतति निरंतरता के लिए ही कि है।

प्रकृति की एक अन्य निर्मोही रचना मानव के हाथों इनकी अप्रतिम, अवर्णनीय सुंदरता मानवमन की भावना प्रदर्शित करते हेतु शहीद होने को तत्पर हो जाती है।

शाम होते होते ये पुष्प समूह भावना शून्य प्रदर्शित कर दिए जाते है....और अस्पताल के एक कोने में नितान्त एकांत पा जाते हैं।

निराश मन, निस्तेज ये पुष्प, किसी सुमन के धनी, मानव के हाथों भावना के चढ़े तीर पर अन्तोगत्वा वीरगति को प्राप्त हुए।

क्या उद्घाटन समारोह या विवाह या ईश्वर के श्री चरणों में या श्री शीर्ष पर, निरंतर फ़ना होते ये पुष्प।

मानव मन कतई भूल जाता है कि सु-मन रूपी आराध्य पुष्प ही सभी संभव ईश्वर रचना में आराधना हेतु सर्वोपरि है किंतु मानव मन सु-मन रूपी पुष्प से सुवासित नहीं है, समर्पित नही है बल्कि पुष्प रूपी सुमन से अपनी आस्था, भावना, सदविचार, साधना अर्पित कर इति श्री पा लेता है। ये विधि का विधान है या कलिकाल की विद्वता की सु-मन नहीं, सुमन अर्पित किए जा रहे ये नरोत्तम।

अगले दिन ये समस्त गुलदस्तों का अतुलनीय ढेर, न जाने कौन से उद्धेश्यपूर्ती के बाद नगर निगम की कचरा गाड़ी में अनुचित स्थान पा गए।

कहीं अंतर्मन में फ़ांस चुभी रह गयी....

 

डॉ अनिल भदोरिया 21, रेडियो कॉलोनी इंदौर 9826044193

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