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  • मनमोहन भाटिया

बीस वर्ष बाद

दोपहर के एक बजे सतीश ने अपना टिफन उठाया और ऑफिस कैंटीन में बैठ कर टिफिन से खाना निकाल कर प्लेट में डाला. रोटी के दो या तीन कौर ही मुश्किल से खाये होंगे कि सतीश ने खाना छोड़ दिया. उससे खाना खाया नही जा रहा था. दिल की धड़कन थोड़ी बढ़ी महसूस हुई और बदन निढाल होने लगा. रोटी खाने की इच्छा ही समाप्त हो गई. उसने पानी पिया. तबियत ठीक नही लग रही थी. ठंड सी लगने लगी. सतीश ने खाना छोड़ दिया.

सतीश को निढाल देख कर उसके सहकर्मियों ने पूछा “सतीश क्या हुआ?”

“तबियत ठीक नही लग रही है. लगता है कि बुखार चढ़ रहा है. ठंड भी लग रही है.“

“अभी तो ठीक थी. एक साथ काम कर रहे थे.“

“हाँ, अभी तो ठीक थी. अचानक से तबियत बिगड़ गयी है. खाना भी नही खाया जा रहा है. थोड़ा आराम करता हूँ.“

“बुखार लग रहा है तब दवाई खा लो.”

“हाँ पैरासिटामोल की एक गोली ले लेता हूँ. शाम को डॉक्टर को दिखाता हूँ.“

“सतीश तुम आराम करो. यार तुम बुरा मत मानो, तुम्हारा खाना खा लें. जबरदस्त खुश्बू आ रही है. वैसे भी भाभी जी खाना लाजवाब बनाती हैं.“

“नेकी और पूछ-पूछ.” सतीश अपना खाना सहकर्मियों को दे कर आराम करने के लिए चला गया. कुर्सी पर आराम की मुद्रा में बैठने के बाद भी सतीश की बैचनी बढ़ती गयी. ठंड भी लग रही थी. आज तक उसे इतनी बेचैनी कभी नही हुई थी. उसका दिल बैठा जा रहा था. उसने पैरासिटामोल की एक गोली खाई. लंच के पश्चात ऑफिस स्टाफ़ अपनी सीटों पर आया तब सतीश की बेचैनी देख कर उसको घेर कर खड़े हो गये.

“सतीश यदि तबियत ठीक नही लग रही है तो अस्पताल चले. डॉक्टर से चेकअप करवा लो.“ सतीश के सहपाठी ने सुझाव दिया.

“अभी दवा ली है. थोड़ा आराम कर लूं, फिर घर जाऊंगा. अपने पारिवारिक डॉक्टर से दवा लूंगा.“

एक घंटा सतीश का बहुत बेचैनी से बीता.

“सतीश तुम्हारी तबियत ठीक नही लग रही है. तुम्हें घर छोड़ देते हैं. ड्राइवर कार चला लेगा. तुम दो तीन दिन आराम करो.“

सतीश कार की पिछली सीट पर अधलेटा हो कर आराम करने लगा. ऑफिस के ड्राइवर ने सतीश की कार चलाई. सतीश के घर और ऑफिस की दूरी एक घंटे की थी. पैरासिटामोल ने थोड़ा असर किया और घर पहुंचने तक थोड़ी बेचैनी कम हुई. चार बजे घर पहुंच कर सतीश ने आराम किया. छ बजे सतीश डॉक्टर के क्लिनिक गया और डॉक्टर को ऑफिस में हुई घबराहट और बेचैनी के बारे में बताया. डॉक्टर ने सतीश का मुआयना किया.

“सतीश अभी तो कुछ खास लग नही रहा है. रक्तचाप थोड़ा अधिक है. मुझे लगता है कि जब ऑफिस में तबियत बिगड़ी होगी तब रक्तचाप अवश्य कुछ अधिक रहा होगा. ऐसा करते हैं कि कुछ टेस्ट करवा लो, अब उम्र भी पचास से ऊपर हो गयी है. इस उम्र में सेहत को संवार कर रखना होता है. मैं टेस्ट लिख देता हूँ. तुम सुबह करवा लेना.“

“टेस्ट कहाँ से करवाने हैं?”

“कहीं से भी करवा लो. चलो मैं लैब में फ़ोन कर देता हूँ. घर आ कर पेशाब और खून के सैंपल ले जाएगा. कुछ खाली पेट होंगे और कुछ नाश्ते के बाद. तुम आराम करो. मैं दवा दे देता हूँ. अभी एक दिन की देता हूँ फिर जांच की रिपोर्ट आने के बाद देखते हैं.“

सतीश घर आ कर बिस्तर पर लेट कर टीवी देखने लगता है. पत्नी सीमा अपने समय साढ़े सात बजे ऑफिस से घर लौटी. पर्स से फ्लैट की चाबी निकाली औऱ ठिठक गयी. घर के अंदर से रोशनी भी आ रही है और टीवी की आवाज भी आ रही है. वह सोचने लगी कि सतीश आज जल्दी आ गए. सतीश तो साढ़े आठ बजे आते हैं. यह सोचते हुए उसने फ्लैट का दरवाजा खोला. अंदर आते ही उसकी सोच एकदम सही निकली. सतीश अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा टीवी देख रहा था. डॉक्टर के क्लिनिक से वापिस आने पर सतीश ने दवा खाई जिससे उसकी तबियत में सुधार हुआ. अब सतीश बेहतर महसूस कर रहा था.

“सतीश आज जल्दी आ गए?”

“हाँ.” सतीश ने सिर्फ इतना कहा. उसने सीमा से अपनी तबियत का कोई जिक्र नही किया. सीमा ने खाना बनाया. डाइनिंग टेबल पर रात के नौ बजे सतीश ने हल्का सा थोड़ा खाना खाया और खाना खाने के बाद अपने कमरे में सोने चला गया.

“सतीश, क्या बात है, आज ऑफिस से जल्दी आ गए और खाना भी थोड़ा सा खाया है. तबियत तो ठीक है न?”

सीमा के इस प्रश्न पर सतीश ने धीरे से सिर्फ इतना कहा कि ठीक है औऱ अपने कमरे में चला गया. सतीश के कमरे में जाने के बाद सीमा सतीश के बारे में सोचने लगी कि अवश्य कोई खास बात है तभी आज सतीश खाने के बाद सैर करने नही गये. कम से कम पंद्रह बीस मिनट की सैर करते हैं. खाना भी कम खाया है लेकिन सतीश के कमरे में जा कर अधिक बात करने की सीमा की हिम्मत नही हुई.

डाइनिंग टेबल समेट कर रसोई साफ करने के बाद सीमा अपने कमरे में जा कर चुपचाप चलते पंखे की ओर टकटकी लगा कर उधेड़बुन में उलझ गयी. उसने अपना मनपसंद टीवी सीरियल भी नही देखा.

वैसे तो दोनों के विवाह को पच्चीस वर्ष हो गए हैं लेकिन अब बीस वर्षों से सीमित बोलचाल के साथ एक छत के नीचे बस रह ही रहे हैं. नाममात्र का वार्तालाप होता है. किसी समय बच्चे ही दोनों के बीच की खाई को पाट तो नही सके लेकिन दूर होने से बचा गये. आज दोनों बच्चे बड़े हो गए हैं औऱ दूर दूसरे शहर में रह रहे हैं. पुत्र औऱ पुत्री एम.टेक करने के पश्चात बंगलुरू में कार्यरत हैं और सतीश और सीमा दिल्ली में कार्यरत हैं. अशांत मन के साथ सीमा का मन भी विचलित हो उठा लेकिन सतीश से बात करने की उसकी हिम्मत नही हुई. रात भर करवटे बदलते सीमा चैन की नींद नही सो सकी. सतीश दवाई के कारण आराम से रात की नींद सोता रहा.

सुबह सात बजे डोरबेल बजी. हड़बड़ा कर सीमा ने उठ कर दरवाजा खोला.

“सतीश जी के खून और पेशाब के सैंपल लेने हैं.” लैब से आये कर्मचारी ने सीमा से कहा.

आवाज सुनकर सतीश ने लैब कर्मचारी को अंदर आने को कहा. लैब कर्मचारी ने सतीश के खून और पेशाब का सैंपल लिया.

“सर, अब मैं साढ़े आठ बजे आऊंगा. आप नाश्ता कर लीजिए.“

“ठीक है. तुम्हारा कितना बिल बना?” सतीश ने लैब कर्मचारी से पूछा.

“दो हजार पचास रुपये.”

सतीश ने अपनी जेब से पर्स निकाल कर लैब कर्मचारी को पेमेंट की. लैब कर्मचारी के चले जाने के पश्चात सीमा ने सतीश से पूछा.

“सतीश यह क्या है? इतने सारे टेस्ट. क्या हुआ तुम्हें?”

“कुछ नही. कल ऑफिस में तबियत थोड़ी ढीली हो गयी थी. शाम को डॉक्टर से दवा ले ली थी. अब उम्र हो गयी है इस कारण थोड़े टेस्ट करवाये हैं.“

“तभी तुम ऑफिस से जल्दी आ गए थे?”

“हाँ.”

“मुझे बताना भी आवश्यक नही समझा.”

“ऐसी कोई बात नही है. मैं नहाने जा रहा हूँ.“ बात को समाप्त करके सतीश गुसलखाने में चला गया. सतीश के गुसलखाने जाने के बाद सीमा ने रसोई में जाकर सतीश के लिए नाश्ता बनाया. सतीश नहा कर बाहर आया और सीमा ने आवाज लगा कर नाश्ते के लिए बुलाया. सतीश ने चुपचाप नाश्ता किया और वापिस अपने कमरे में चला गया. वह टीवी चालू करके न्यूज़ चैनल देखने लगा. सीमा अशांत मन से नहाने चली गयी. नहा कर सबसे पहले अपने ऑफिस में छुट्टी का व्हाट्सएप संदेश भेजा औऱ अतीत के गलियारों में विचरण करने लगी.

आज पच्चीस वर्ष हो रहे हैं उसके और सतीश के विवाह को. दो महीने ही तो रह गए हैं उनके विवाह की पच्चीसीवी वर्षगांठ को. आजकल हर दंपती अपने विवाह की सिल्वर जुबली एनीवर्सरी धूमधाम से मानता है. फिर से फेरे, जयमाला और दावत, लेकिन अफसोस क्या वह यह अवसर सबके साथ हँसी खुशी से मना सकेगी? यह सोचते हुए उसकी आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी.

विवाह के पहले पांच वर्ष हँसी खुशी के साथ बीते. एक पुत्र और पुत्री गोद में खेलने लगे. सतीश की खुशियां और बढ़ गयी जब उसको अधिक तनख्वाह के साथ अच्छी नौकरी मिल गयी. नयी नौकरी में आर्थिक वृद्धि हुई लेकिन ऑफिस के टूर अधिक हो गए. कभी-कभी दस-दस दिन घर से दूर ऑफिस के टूर पर दूसरे नगरों में रहने लगा. बच्चे स्कूल जाने लगे. सतीश की अनुपस्थिति में बच्चों को स्कूल छोड़ने और लाने समय आस पड़ोस के युवकों से मिलती. शाम को पार्क में फिर युवक मिलते. दो बच्चों की माँ सीमा का दैहिक आकर्षण कॉलेज जाने वाली युवतियों से भी अधिक था जिस कारण युवक उसकी ओर शीघ्र आकर्षित हो जाते. युवक सीमा के समीप आने के चक्कर में उसके बच्चों को संभालने लगे और धीरे-धीरे पार्क की मित्रता घर में भी प्रविष्ट हो गयी. दो युवकों के साथ गहरी मित्रता हो गयी. सतीश अधिकतर ऑफिस या टूर पर होता जिस कारण दो युवक सीमा के घर आने लगे. शारीरिक आकर्षण ने सीमा को उन दो युवकों के समीप कर दिया. पड़ोस में बातों का बाजार गर्म हो गया. बातें सतीश के कानों में भी पड़ने लगी. पहले उसने उनको अनसुना कर दिया लेकिन हर रोज की बातों ने सतीश को विचलित कर दिया.

एक दिन ऑफिस के टूर से सतीश जल्दी आ गया. एक युवक दोनों बच्चों के साथ घर के नीचे मिल गया. उसने दोनों बच्चों को आइस क्रीम दिलाई थी जिसे दोनों बच्चे बड़े चाव से खा रहे थे. सतीश को देख कर दोनों बच्चे पापा-पापा कह कर चिपक गये और घर की सीढ़ियां चढ़ने लगे. बच्चों के संग जो युवक था, वह वहाँ से खिसक कर थोड़ी दूर चला गया और तुरंत फोन करके सीमा और दूसरे युवक को सतर्क कर दिया. जब सतीश बच्चों के संग फ्लैट के दरवाजे पर पहुंचा तब दूसरा युवक बदहवास स्थिति में फ्लैट से बाहर निकल कर भाग निकला. भागते युवक को देख कर सतीश ठिठक गया और उसका माथा भन्ना गया. घर के अंदर बच्चे मम्मी-मम्मी कह कर सीमा से चिपक गये. सतीश ने सीमा की आँखों में आँखे डाली. सीमा ने नजरें झुका ली. सीमा के कपड़े भी अस्त व्यस्त थे. बच्चों के सामने उसने अपना गुस्सा पी लिया.

रात को सीमा के गाल पर एक जोर के थप्पड़ के साथ पूछा “मैं लोगों की बातें अनसुनी कर रहा था लेकिन तुमने मेरे से धोखा क्यों किया? हमारी वैवाहिक जीवन में क्या कमी रही जो तुम दूसरे रास्ते पर चली? तुमने गलत रास्ते पर चलने से पहले बच्चों का भी नही सोचा. बच्चों की तरफ देख सीमा, मासूम बच्चे, उन्हें इन बातों का क्या इल्म. अगर मैं तुम्हें छोड़ दूं तब इन बच्चों का क्या होगा? मासूम बच्चों की पूरी जिंदगी तबाह हो जाएगी. कितने प्यार से हम दोनों उन्हें इस जीवन में लाये हैं. क्या तुम चाहती हो कि हमारे झगड़े में दो मासूम जीवन की बलि चढ़ जाए. सीमा आज तुम यौवन के नशे में चूर हो, कल जब आकर्षण कम होगा, तब ये युवक काम नही आएंगे. मैं साथ दूंगा.“

सतीश की बातें सुनकर सीमा को होश आया. उसने रोते हुए सतीश से माँफी मांगी औऱ कसम खायी कि उसकी भूल को क्षमा कर दे. आगे से ऐसा नही होगा लेकिन सतीश का विश्वास टूट चुका था. वह कुछ नही बोला.

उसी समय से सतीश ने सीमा से दूरियां बना ली. एक घर में रहते हुए सतीश अलग कमरे में रहता और सीमा बच्चों के साथ दूसरे कमरे में. बच्चों के सामने वह सीमा से बात करता लेकिन व्यवहारिक रूप से उसने पति-पत्नी के आपसी संबंध तोड़ दिये. बच्चों के साथ खेलता औऱ उनको पढ़ाता भी. उनके साथ घूमने भी जाता और स्कूल भी. सतीश ने बच्चों को कभी इस बात की भनक नही लगने दी कि सतीश और सीमा में कोई अलगाव है. सीमा सतीश को टिफिन भी पैक करके देती और रात का खाना बच्चों के साथ डाइनिंग टेबल पर खाता लेकिन सीमा से दूरी ही बना कर रखता. बारहवीं कक्षा के बाद बच्चों ने कॉलेज में आगे की पढ़ाई दूसरे शहर में होस्टल में रह कर की और नौकरी भी बंगलुरू में करने लगे. तब से सतीश और सीमा का रिश्ता एकदम समाप्त सा हो गया. समाप्त तो पहले से ही था लेकिन बच्चों के आगे सामान्य रहते थे. सीमा ने नौकरी कर ली.

सीमा की आँखें नम थी. फ्लैट पर लैब कर्मचारी के डोरबेल बजाने से उसकी अतीत की यात्रा समाप्त हुई. जब तक उठ कर सीमा कमरे से बाहर आ कर दरवाजा खोलती, उससे पहले सतीश ने दरवाजा खोल दिया. लैब कर्मचारी ने सतीश के खून और पिशाब के सैंपल लिए.

“रिपोर्ट कब मिलेगी?” सीमा ने लैब कर्मचारी से प्रश्न किया.

“मैम आप शाम पांच बजे के बाद हमारी वेबसाइट से डाउनलोड कर सकती हैं.”

सतीश चुपचाप अपने कमरे में चला गया. आज सीमा भी लगभग आठ वर्ष बाद उसके कमरे में गयी. बच्चे जब स्कूल में पढ़ते थे तब कभी-कभी सतीश के कमरे में बच्चों के साथ चली जाती थी. सीमा को देख कर सतीश कुछ नही बोला, उसने टीवी का चैनल बदल दिया.

“सतीश मैं समझती हूँ कि तुम मुझसे नाराज हो, लेकिन जब तुम्हारी तबियत ठीक नही है, मुझे बताओ कि आखिर हुआ क्या है. इतने सारे टेस्ट हो गए हैं.“

“कुछ नही, डॉक्टर ने टेस्ट करवाये हैं. कल तबियत ठीक नही थी, आज ठीक है. डॉक्टर से दवाई ली है. दो दिन आराम करता हूँ.“

“ये कोई सामान्य जांच नही है. मुझे डर लग रहा है.“

सतीश ने इस बात का कोई उत्तर नही दिया और बात घुमा दी “तुम्हें ऑफिस की देर हो जाएगी.“

“नही आज मैंने छुट्टी का व्हाट्सएप संदेश भेज दिया है. आपकी शाम को रिपोर्ट आ जाये. मैं डॉक्टर से बात करती हूँ.“

“तुम परेशान मत हो, अब तबियत ठीक है.”

सीमा ने आज बीस वर्ष बाद रोते हुए सतीश के कंधे पर सिर रख दिया. सतीश को ऐसी उम्मीद नही थी. रोती सीमा ने सतीश की कमीज आँसुओ से भिगो दी. सतीश चुपचाप शून्य में ताकता रहा और सीमा सतीश के कंधे पर सिर टिका कर रोती रही. सतीश चुपचाप बैठा रहा.

“सतीश कुछ तो बोलो. तुम्हारी चुप्पी मेरा कलेजा चीर रही है.“

सतीश चुप रहा.

“कुछ तो बोलो. मुझे माँफ नही कर सकते तो घृणा से मार डालो. मैं हर रोज घुट-घुट कर जीना नही चाहती हूँ. कम से कम घृणा तो मत करो.“

“सीमा, मैंने तुमसे कभी घृणा नही की.”

“मुझे त्यागे आज बीस वर्ष हो गए हैं, यह घृणा नही तो क्या है?”

“सीमा तुम घृणा मत समझो. मैंने कभी तुमसे घृणा नही की है. बस तुमसे दूर चला गया.“

“यह दूरी मुझे हर रोज जलाती है. सतीश तुमने मुझे तलाक क्यों नही दिया?”

“बच्चों की खातिर. बच्चे उस समय तीन और चार वर्ष के थे. उन अबोध बालकों को मैं सजा नही देना चाहता था, इसलिए बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए मैंने तुम्हारे साथ एक मकान में रहने का निश्चय किया था. तुम्हें तलाक दे देता या अलग मकान में रहता तब उन बच्चों की सोच, आज जहाँ हैं, वहाँ नही होते. आज उनकी खुशी देख कर मुझे खुशी होती है. हमारे अलग होने से बच्चों की जिंदगी चौपट हो सकती थी. उस समय मैं उनके भोले मुख देख कर चुप हो गया. हमारे प्रेम की निशानी हमारे स्वार्थ के कारण तड़पे, मुझे बर्दास्त नही था. इसी कारण मैंने तुमसे दूरी बनाई.“

“आज भी तुम मुझसे घृणा करते हो तभी इतनी बड़ी बात मुझसे सांझा नही कर रहे कि तुम्हारी तबियत बहुत खराब थी. क्या मैं तुम्हारी सेवा नही कर सकती हूँ?”

“सीमा तुम गलत सोच रही हो. मेरी सेवा तो तुम रोज करती हो. बीस वर्षों से हर रोज टिफ़िन पैक करके देती हो और रात का खाना भी. मैंने हर रोज तुम्हारे हाथ का बना हुआ स्वादिष्ट खाना खाया है. कल तबियत के कारण लंच नही खाया. मेरे सहकर्मियों ने उंगलियों को चाटते हुए जम कर तुम्हारे खाने की तारीफ की है. अक्सर हम लंच आपस में सांझा करते हैं और तुम्हारे खाने की जम कर तारीफ होती है.“

“लेकिन मेरी जिम्मेदारी तो तुमने कभी नही उठाई?”

“यही बात मैं तुमसे कह सकता हूँ?”

“फिर भी हर रोज तुम्हारे लिए खाना बनाती हूँ.”

“मैं तुम्हारी भावनाओं का आदर करता हूँ, तभी मैं तुम्हारे रास्ते में नही आया.”

“कभी तो मनमानी करते?”

“मनमानी उसी दिन समाप्त हो गयी थी. हमारी जिम्मेदारी सिर्फ बच्चों को अच्छी परवरिश देने तक सीमित थी और उसमें हम दोनों कामयाब रहे. मैंने और तुमने, दोनों ने अपने कर्तव्य का पालन किया.“

“फिर भी कभी तुम्हारी इच्छा नही हुई कि मुझ पर अपना हक जताओ.”

“सच्ची कहूँ, नही, मेरी इच्छा समाप्त हो गयी थी.”

“परंतु क्यों?”

“तुम शायद मुझसे खुश नही थी तभी मुझसे दूर गयी थी.”

“मैंने माँफी भी मांगी थी?”

“मैंने माँफ उसके अगले दिन की कर दिया था, नही तो तुम्हें छोड़ देता.”

“मुझे अपनाया तो नही?”

“सिर्फ शारिरिक संबंध ही अपनाना नही होते हैं. मानसिक जुड़ाव अति आवश्यक होता है. हम जुड़े रहे तभी एक छत के नीचे बीस वर्ष रहे हैं.“

“यह तो बच्चों की खातिर समझौता था.”

“जीवन में हर पल समझौते करने पड़ते हैं. कभी ऑफिस में, कभी घर में और कभी मित्रता औऱ रिश्तेदारी में.“

“पति-पत्नी में भी?”

“उनका जीवन भी आपसी समझ से चलता है. मुझे गर्व है कि तुमने बच्चों की खातिर कोई अनुचित कदम नही उठाया और समय रहते तुरंत अपने अतीत को भूल कर बच्चों के उज्जवल भविष्य की खातिर मेरे सुझाये रास्ते पर चली.“

“कम से कम अब तो अपना लो, चाहे बीस वर्ष बाद ही सही.“

“इन बीस वर्षों में तुम हमेशा मेरी पत्नी रही हो. मैंने तुम्हें त्यागा नही है.“

“मन से भी समझो.”

“तुम भी समझो. अब तुम अपना मुँह धोवो. रो कर बुरा हाल बना रखा है. क्या तुमने कुछ खाया. मुझे तो नाश्ता करवा दिया.“

यह सुनकर सीमा की होठों पर तसल्ली की मुस्कान छा गयी. सतीश के बाथरूम में जाकर मुँह धोया.

“सतीश तुम कुछ लोगे?”

“अभी तो नाश्ता किया है. कल की तबियत की वजह से आराम करूँगा.“ कह कर सतीश ने टीवी बंद कर दिया और करवट बदल कर लेट गया औऱ उसे हल्की नींद भी आ गई.

सतीश के कंधे पर सिर रख कर रोने और अपने दिल की बात सांझा करके सीमा का चित्त शांत हुआ. शाम को रिपोर्ट के साथ डॉक्टर से मिलने सीमा भी गयी. रिपोर्ट देख कर डॉक्टर ने सतीश को उच्च रक्तचाप की दवा के साथ कुछ और दवाओं को भी लिख दिया.

“कल आपका रक्तचाप बहुत बड़ा हुआ था, मैंने आपको बताया नही था कि आप अधिक परेशान हो जाओगे. मेरी दवा से आपका रक्तचाप भी नीचे आ गया है. आपकी उम्र के अनुसार आपको नियमित रक्तचाप की दवा लेनी होगी. बाकी दवा अभी दस दिन लीजिए, उसके बाद आपकी तबियत देख कर दवा बताऊंगा. टेस्ट रिपोर्ट देखने से अधिक चिंता की बात अभी तो नही है लेकिन आपको एहतियात के तौर पर नमक, घी, तेल और तला हुआ खाना कम करना होगा. सुबह-शाम की सैर कीजिये और अधिक सोचना बंद कीजिए. जीवन शैली तनाव मुक्त कीजिये. बच्चे अब बडे हो गए हैं, तनाव छोड़िए और मेरी सलाह मानो तो थोड़े दिन किसी पहाड़ पर रह कर शुद्ध वातावरण में जीवन के तनाव को श्रद्धांजलि दीजिये. अभी तो स्वास्थ्य नियंत्रण में है लेकिन यदि जीवन शैली नही बदली तब जानलेवा भी हो सकती है.

डॉक्टर की सलाह पर सतीश मुस्कुरा दिया. सीमा ने डॉक्टर को पहाड़ पर थोड़े दिन व्यतीत करने की सलाह पर धन्यवाद दिया.

“आपकी सलाह पर अमल अवश्य होगा. किसी हिल स्टेशन पर थोड़े दिन आराम करना ही होगा.“

“नियमित दिनचर्या से तनाव हो ही जाता है. थोड़ा प्रकृति के समीप जाने से दिल भी बहलता है और प्रदूषण से दूर स्वास्थ्य भी सुधरता है.“

रात के समय डाइनिंग टेबल पर सीमा ने सतीश को कुछ दिन के लिए हिल स्टेशन चल कर रहने को कहा लेकिन सतीश ने मना कर दिया.

“अभी नही, कुछ दिन अपनी तबियत पर नजर रखना चाहता हूँ.”

“रात को मैं तुम्हारे कमरे में सो जाऊं?”

“अभी नही, अब तो अकेले रात बिताने की आदत हो गई है.”

“आदत बदल लो.”

“नही, अभी नही.”

रात को बिस्तर पर लेटे हुए सतीश स्थितियों का अवलोकन करने लगा कि दिल में बातों को दबा कर रखने के कारण ही उसकी तबियत बिगड़ी, लेकिन वह किसके साथ अपनी बातें सांझा करता. दिल सांझा करने वाली पत्नी से बीस वर्षों से दूरी बनाई हुई है. भभकता ज्वालामुखी कल फूट पड़ा औऱ तबियत इतनी बिगड़ी कि एक बार तो ऐसा लगा कि कहीं अंत समय तो नही है. पूरा दिन आराम में बीता था, उसे नींद नही आ रही थी. बिस्तर पर करवटें बदलते हुए पुरानी औऱ नयी बातें आँखों के सामने आती रही. दुनिया के सामने उसके सीमा के साथ संबंध अच्छे थे. हर खुशी और गमी में वे एक साथ नजर आए. अपनी खुशी त्याग कर बच्चों के भोले मुख देखते हुए उसने जो कदम उठाया, उस पर उसे गर्व अभी भी है. उसके पास कोई और रास्ता नही था. यदि वह दूसरे रास्ते पर चलता तब बच्चों की जिंदगी शायद हो सकता है कि संवरने के स्थान पर बिगड़ भी सकती थी.

सीमा भी दूसरे कमरे में करवटें बदलती रही. उसने सतीश के सोच में लचीलापन देखा. कुछ वह बहक गयी थी जिसकी उसे उचित सजा मिली. उसे भी आज सतीश के निर्णय पर गर्व महसूस होने लगा कि अपनी जिंदगी की खुशी त्याग कर बच्चों का जीवन संवार दिया. आज बीस वर्ष बाद उसने अपनी झिझक छोड़ दी. सतीश के कंधे पर सिर टिका कर वह कोई छोटी नही हुई, आज उसको अपना स्वाभिमान ऊंचा नजर आ रहा था. सतीश ने उसे झिड़का नही. वैसे तो सतीश ने उसे सिर्फ उसी दिन एक थप्पड़ मारा था फिर उससे दूरी बना ली थी. वह बीस वर्ष की खामोशी किसी त्याग से कम नही रही.

अगली सुबह सीमा सतीश के जागने से पहले उठ गई और चाय बना कर सतीश के कमरे में पहुंच गयी.

“सतीश चाय.”

सीमा की आवाज सुनकर सतीश ने आँख खोली. साढ़े छ बज रहे थे.

“आज देर हो गयी.”

“कोई बात नही, ऑफिस तो जाना नही है न?”

“ऑफिस अब एक सप्ताह बाद जाऊंगा. छुट्टी ले ली है.“

“ठीक है, ब्रश कर लो. चाय ठंडी हो जाएगी और तुम्हें ठंडी चाय पसंद नही है.“

चाय पीते हुए सतीश टीवी देखता रहा.

“सीमा तुम बेफिक्री से बैठी हो, ऑफिस को देर हो जाएगी.”

“मैं भी अब हफ्ते बाद जाऊंगी. पिछले आठ वर्षों से छुट्टियां नही ली हैं. हर वर्ष छुट्टियाँ व्यर्थ जाती है.“

“वो तो ठीक है परंतु घर बैठ कर खाली समय भी नही कटता है.”

“तुम्हें आराम की अति आवश्यकता है औऱ मुझे तुम्हें देखना है. तुम्हारी देखभाल भी करनी है.“

“अब मैं कोई बच्चा नही हूँ. तुम सारा दिन बेकार बैठी रहोगी.“

“सच बोलूं तो बच्चे ही हो जो बीस वर्षों से जिद पर अड़े हुए हो.”

“जिद नही है. तुमने लक्ष्मण रेखा लांघी थी.“

“मालूम है उसकी सजा बीस वर्षों से भुगत रही हूँ.”

“तुम सजा मानती हो?”

“हाँ, अब तो सजा से रिहा कर दो.”

“मैंने कब तुम्हें कैद करके रखा है.”

“खुले वातावरण में ही सही लेकिन उम्र कैद ही रही. अब तो बच्चों की अच्छी परवरिश हो गयी है. अब तो बाकी सजा अच्छे चाल चलन पर माँफ होनी चाहिए.“

“तुम कैद मत समझो, सिर्फ किये पर प्रायश्चित मानो.”

“क्या आपकी नजर में प्रायश्चित पूरा हुआ?”

“बिल्कुल सम्पन्न हुआ है.“

“फिर बेरुखी क्यों?”

“आदत में शामिल हो गयी, बस इतना समझो, मेरी और तुम्हारी दोनों की आदतों में, तभी इतने वर्ष साथ-साथ रह कर गुजारे.“

“सतीश अब हमें फिर से नयी दुनिया बनानी चाहिए.“

“सीमा, संबंध बनते और बिगडते रहते हैं. साईकल के पहिये की तरह मिलना और बिछुड़ना ही नियति है.“

“बिछुड़ कर मिलना?”

“यह भी नियति है.“

“मैं समझ गयी.“

“क्या?”

“जो तुमने कहा, बिछुड़ कर मिलने वाली.“

सतीश ने कोई जवाब नही दिया.

“नाश्ते में क्या खाओगे?”

“आज बीस वर्ष बाद मेरी पसंद पूछ रही हो. तुमने जो खिलाया, कभी मीन मेख निकाली क्या? आज्ञाकारी पति रहा हूँ.“

“अब लड़ने वाले पति बन जाओ, जो पत्नी में मीन मेख निकाले.“

“तुम्हारे हाथ का खाना स्वादिष्ट औऱ लाजवाब होता है. मैं मीन मेख नही निकाल सकता हूँ. ऑफिस के सहकर्मी तुम्हारे खाने की तारीफ करते हैं.“

“फिर अपनी मर्जी से नाश्ता बना दूँ.”

“हाँ.”

“दलिया बना रही हूँ. डॉक्टर ने भी हल्का खाना बोला है.“

सतीश की हाँ सुनते ही सीमा नाश्ता बनाने रसोई में चली गयी. सतीश सीमा के बारे में सोचने लगा कि सीमा ने हाथ उसकी ओर बढ़ाया है, समय है कि हाथ थाम लिया जाए. उसे अपनी ही लिखी चंद पंक्तियां याद आ गयी.

वो हसीन मुस्कुराता चेहरा साथी का

वो दिल को लुभाता चेहरा साथी का

वो हर पल प्यार करता चेहरा साथी का

जीवनसाथी का हँसता, मुस्कुराता और चहकता चेहरा जीवन की सभी कठिनाइयों से उभारने से सहयोग देता है. जीवनसाथी के सहयोग से कठिन समय भी सुगमता से कट जाता है. एक लंबे अरसे के पश्चात सतीश ने सीमा को ध्यान से प्रेम वाली निगाह से देखा. चहकती सीमा को देख कर उसका मन और तन भी बहुत हल्का सा प्रतीत होने लगा. दो तीन दिन बाद कुछ सीमा के चहकते चेहरे, उसकी नज़दीकी और प्रेमपूर्वक ध्यान देने से और कुछ दवाई के असर से सतीश की तबियत में ऐसा सुधार हुआ कि सतीश सोचने लगा कि क्या उसकी तबियत भी कभी खराब हुई थी.

अब हर सुबह सतीश और सीमा सैर पर एक साथ जाने लगे. पहले सतीश जानबूझ कर ऑफिस से देरी से आता था, अब समय से घर आने लगा. रात के खाने के बाद भी एक साथ एक छोटी से चहलकदमी सोसाइटी की चारदीवारी के अंदर करने लगे. दोनों को एक साथ देख कर पड़ोसियों में उनकी चर्चा होने लगी, लेकिन लोग और दुनिया क्या बोलते हैं, यह उन दोनों ने बीस वर्ष पहले ही छोड़ दिया था और अब भी लोगों को देख कर सिर्फ मुस्कुरा देते थे. पहले भी अपने में सीमित थे और अब भी.

“सतीश दो महीने बाद हमारे विवाह की पच्चीसीवी वर्षगांठ है.”

“तुम्हारी क्या इच्छा है?”

“कुछ नही, बस तुम्हारा साथ बना रहे.”

सीमा का उत्तर सुनकर सतीश मुस्कुरा दिया.

सतीश ने बच्चों को फोन करके अपने विवाह की पच्चीसीवी वर्षगांठ पर छुट्टी ले कर कुछ दिन साथ निभाने को कहा. सीमा ने भी यह संदेश बच्चों को दिया. दोनों ने अलग-अलग बच्चों को संदेश दिया और एक दूसरे को उपहार देने का भी इरादा किया लेकिन दोनों ने एक दूसरे पर यह जाहिर नही होने दिया.

पच्चीसीवी वर्षगांठ से पंद्रह दिन पहले सीमा की तबियत अचानक से बिगड़ी. सुबह के समय देर तक सीमा को सोता देख कर सतीश ने सीमा के माथे पर हाथ रखा. सीमा ने आँख खोल कर धीमे से कहा.

“तबियत ठीक नही है. सोच रही थी कि ठीक हो जाएगी लेकिन कल रात से अधिक बिगड़ गयी है.“

“बताया क्यों नही?”

“मुझे पहले ऐसा नही लगा था लेकिन अब डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा.”

“ठीक है, डॉक्टर दस बजे क्लिनिक आता है.”

“स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास चलना होगा. अंदर सही नही लग रहा है. शाम को डॉक्टर मिलती है. टेलीफोन पर समय लेकर मिलते हैं.“

“ठीक है, तुम आराम करो. मैं ऑफिस से छुट्टी लेता हूँ.“

शाम के सात बजे डॉक्टर से मिलने सतीश के संग सीमा गयी. डॉक्टर ने जांच करके अल्ट्रासाउंड टेस्ट की सलाह दी.

“सीमा टेस्ट कल सुबह करवा लो. प्राथमिक जांच से मैं आस्वस्त हूँ कि तुम्हें अपना गर्भाशय निकलवाना होगा. अब तुम अपना निर्णय लो कि ऑपरेशन कब करवाना है.“ डॉक्टर ने सीमा को सलाह दी.

अगले दिन अल्ट्रासाउंड जांच के बाद डॉक्टर ने फिर सीमा से पूछा.

“मेरी सलाह तो ऑपरेशन की है. अब निर्णय आपने लेना है. जल्दी करवा लो तो अच्छा रहेगा और सभी झंझटों से छुटकारा मिल जाएगा.“

सीमा और सतीश ने एक दूसरे की ओर देखा. आँखों ही आँखों में सहमति हुई. डॉक्टर से शीघ्र ऑपरेशन के लिए कहा. डॉक्टर ने अपनी डायरी देख कर ऑपेरशन की तिथि तय कर दी. ऑपेरशन पच्चीसीवी वर्षगांठ की तिथि से एक दिन पहले होना है.

“डॉक्टर क्या पहले या बाद की तारीख हो सकती है. एक दिन बाद हमारे विवाह की पच्चीसीवी वर्षगांठ है.“ सीमा ने अनुरोध किया.

“ऐसा है तब आप की सुविधानुसार तारीख तय कर सकते हैं. एक सप्ताह बाद की तिथि तय कर देते हैं.“

“तिथि आगे सरकाने की कोई आवश्यकता नही है. वर्षगांठ के जश्न ऑपेरशन के बाद भी आराम से मना सकते हैं.“ सतीश ने डॉक्टर से कहा.

बच्चे दो दिन पहले आ गए औऱ माँ को अस्पताल में पाया.

“माँ आपने अपनी तबियत के बारे में कुछ बताया ही नही. हम तो पच्चीसीवी वर्षगांठ के जश्न की सोच कर आये हैं.“

“जश्न भी होगा, दो चार दिन बाद कर लेंगे. अब हमारे पास एक साल बाद आये हो. थोड़े दिन हमारे साथ रहो.“ सीमा ने बच्चों को प्रेम से दुलारते हुए कहा.“

अगले दिन सीमा का ऑपेरशन हुआ. ऑपेरशन के समय सतीश और बच्चे धैर्य से सीमा के सफल ऑपेरशन की प्रतीक्षा कर रहे थे. डॉक्टर ने सफल ऑपेरशन की सूचना दी और एक मिनट के लिए सीमा से मिलने के लिए अनुमति दी. अनेथिसिया का अभी असर था, सीमा ने सिर हिला कर सभी को एक प्यारी मुस्कान दी. शाम के समय सीमा को कमरे में लाया गया. रात शांतिपूर्वक बीती.

अगला दिन सतीश और सीमा के विवाह की पच्चीसीवी वर्षगांठ का था. सुबह ही एक दूसरे को अभिनंदन करते हुए शुभकामनाएं दी. आठ बजे डॉक्टर सीमा का चेकअप करने आई.

“सबसे पहले तो आपकी मैरिज की सिल्वर जुबली एनीवर्सरी की बधाई और मेरी तरफ से एक छोटी सी भेंट.“

नर्स ने मुस्कुराते हुए फूलों का गुलदस्ता सीमा को दिया. अस्पताल का हर स्टाफ सीमा और सतीश को मुबारकबाद देने आया. दोनों बच्चे भी तब तक अस्पताल पहुंच गए. सतीश ने हीरे की अंगूठी सीमा की उंगली में पहनाई और सीमा ने सतीश की उंगली में हीरे की अंगूठी पहनाई. सीमा और सतीश की आँखें खुशी से नम थी. आज बीस वर्ष बाद दोनों ने एक दूसरे को उपहार दिए.

बच्चों, डॉक्टर और अस्पताल के स्टाफ ने तालियों की गूंज के साथ कहा.

“हैप्पी मैरिज एनीवर्सरी.“

 

लेखक जीवन परिचय

नाम: मनमोहन भाटिया

जन्म तिथि: 29 मार्च 1958

जन्म स्थान: दिल्ली

शिक्षा: बी. कॉम. (ऑनर्स), हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय; एल. एल. बी., कैम्पस लॉ सेन्टर, दिल्ली विश्वविद्यालय

संप्रति: सृष्टी होटल प्राईवेट लिमिटेड में कंसलटेंट-फाईनेंस

अभिरूचियाँ: कहानियाँ लिखना शौक है। फुर्सत के पलों में शब्दों को जोडता और मिलाता हूं।

प्रकाशित रचनायें:

कहानियाँ:

  1. सरिता, गृहशोभा, प्रतिलिपि, जयविजय, सेतु, dawriter.com, अभिव्यक्ति, स्वर्ग विभा, अनहद कृति और नवभारत टाईम्स में प्रकाशित

  2. संग्रह "भूतिया हवेली" सितंबर 2018 प्रकाशक "फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन्स"

  3. संग्रह "रिश्तों की छतरी" मार्च 2019 प्रकाशक "फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन्स"

  4. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाईट hindisamay.com में कहानी संकलन। लिंक: http://www.hindisamay.com/writer/writer_details.aspx?id=1316

  5. राजकमल प्रकाशन की डॉ. राजकुमार सम्पादिक पुस्तक "कहानियां रिश्तों की - दादा-दादी नाना-नानी" में कहानी "बडी दादी" प्रकाशित। ISBN: 978-81-267-2541-0

  6. बोलती कहानी “बडी दादी” स्वर “अर्चना चावजी” रेडियो प्लेबैक इंडिया पर उपलब्ध। लिंक: http://radioplaybackindia.blogspot.in/2014/01/badi-dadi-by-manmohan-bhatia.html

  7. कहानी "रोमांच" स्वर "करन गुप्ता" प्रतिलिपि पर उपलब्ध।

  8. कहानी “ब्लू टरबन” का तेलुगु अनुवाद। अनुवादक: सोम शंकर कोल्लूरि। लिंक: http://eemaata.com/em/issues/201403/3356.html?allinonepage=1

  9. कहानी “अखबार वाला” का उर्दू अनुवाद। अनुवादक: सबीर रजा रहबर (पटना से प्रकाशित उर्दू समाचार पत्र इनकलाब के संपादक) बिहार उर्दू अकादमी के लिए।

  10. प्रतिलिपी वेबसाईट pratilipi.com में कहानी संकलन। लिंक:

http://www.pratilipi.com/author/4899148398592000

  1. प्रतिलिपी साहित्यिक गोष्ठी यूटयूब पर

  2. सहोदरी लघुकथा में दो लघुकथाएं “अहंकार और मोबाइल लत” (भाषा सहोदरी हिंदी द्वारा प्रकाशित)

  3. लघुकथा - 2 में "चौपाल, प्रेम वाला खाना और जुर्माना" (भाषा सहोदरी हिंदी द्वारा प्रकाशित)

  4. कहनीं - 2 में "अच्छा भूत" (भाषा सहोदरी हिंदी द्वारा प्रकाशित)

  5. में धूप तो होगी में "सत्य है, हौसला" (श्री सत्यम प्रकाशन)

  6. जिन्दगी का में "मौसा जी की जय" (श्री सत्यम प्रकाशन)

  7. गूगल प्ले स्टोर पर कहानियों का संग्रह कथासागर। लिंक: https://play.google.com/store/apps/details?id=com.abhivyaktyapps.hindi.stories

  8. हिन्दुस्तान टाईम्स, नवभारत टाईम्स, मेल टुडे और इकॉनमिक्स टाईम्स में सामयिक विषयों पर पत्र

संपादन:

प्रभाकर पाण्डेय की पुस्तक "ब्रह्म पिशाच" प्रकाशक फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन्स

सम्मान एवं पुरस्कार:

  1. दिल्ली प्रेस की कहानी 2006 प्रतियोगिता में 'लाईसेंस' कहानी को द्वितीय पुरस्कार

  2. अभिव्यक्ति कथा महोत्सव - 2008 में 'शिक्षा' कहानी पुरस्कृत

  3. प्रतिलिपि सम्मान – 2016 लोकप्रिय लेखक

  4. काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान 2017

  5. जय विजय रचनाकार सम्मान 2017 (कहानी विधा)

  6. भाषा सहोदरी हिंदी प्रशस्ति पत्र (जनवरी 2018)

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