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  • मोहित कुमार पाण्डेय (रुद्र)

बस एक शाम

लगता है रात और उसका मेरे साथ कुछ ज्यादा ही बेहतर होता जा रहा है | जहाँ एक ओर आज की रात में ख़ामोशी की कमी है , वही आज तेज हवाएँ अपना मधुर संगीत गा रही थी | आज चांदनी चादर तो थी मगर झिलमिलाते तारे नदारत | आप को छू कर गुज़रती यें हवाएं आपको किसी ख्वाब में ले जाने को आतुर थी , पर शायद आज मेरा साथ निभाने को सिर्फ बादल थे | मन तो करता है कुछ नया लिखू पर मेरा और इस रात क साथ ..एक अलग अंदाज है...मेरी जिंदगी में सबसे ज्यादा रात की कशिश है ......... यादों के गलियारों में टहलते हुए यूँ ही एक शाम की बात थी जो सामने से गुज़रे तो ज़माना हो गया पर अब भी उस शाम के बारे में सोचता हूँ तो दिल को हमेशा सुकून ही मिलता है........एक सुस्ताई शाम में , जब घर लौटा और आराम कुर्सी पर आकर बैठा ही था और चाय की तलब जाग ही रही थी की उन्होंने चाय की प्लेट सामने रख कर चुपचाप साथ में आकर बैठ गई और बस हम एक दूसरे को निहार रहे थे , उनकी आँखे शायद अब भी नम थी और मेरा दिल उन्हें यूँ देख कर बोझिल...... तभी उनकी ख़ामोशी टूटी..... और धीमे से बोली :- “जानते हो मैं आप से शिकायत नहीं कर रही पर आपको कभी याद नहीं रहता और हर वक़्त आप हमे अकेला छोड़ कर चले जाते है......आपका फ़ोन भी नहीं लगता...... आज पूरे दिन आपका फ़ोन कितनी बार लगाया पर आप न जानें कहाँ बिजी थे........आप सुबह मेरे से नाराज हो कर भी चले गये थे , कितना समझाना चाहती थी आपको पर आप .........." और आगे के अल्फाज़ो को उनके आँखों से बहती धारा ने समेत लिया और वो शब्द कहीं डूब गये और उनकी आँखों से कुछ बह गया... हम अपनी कुर्सी से खड़े होकर उनके पास आये और उनके गुमसुम चेहरे पर बनी लकीरो को पोछा और अपने चेहरे पर हलकी मुस्कान लेकर उनसे बोले “आप की तबियत नहीं सही थी तो सोचा आज की चाय हम बना ले… आप ने कल भी नहीं बताया की आपको कमज़ोरी है...और एक दिन बिना उठाये आपको अगर खुद चाय बना लिया तो क्या आफ़त आ गई .....और ऑफिस में आज इंस्पेक्शन की वजह से बिजी था और फ़ोन डिस्चार्ज. ...और जब खाली हुआ तो सीधे आपके पास आ गया.......माफ़ी मुझे मांगनी चाहिए आपसे ” उनके लिए साथ लाई दवा उनके हाथों में रखा..... और उनको बांहो में भरा........”आप जिंदगी का जरुरी हिस्सा हैं और आप ही याददाश्त हैं हमारी..आपके बिना दिन की शुरुवात हमारी हो ही नहीं सकती ये तो आप भी जानती है.... आपको अकेला नहीं छोड़ा था ना ही नाराज़ था.... जल्दी थी बस , आपके लिये नोट तो फ्रिज पर रखा था......और आपकी ख़ामोशी हमारी जान ले लेगी अब थोड़ा मुस्करा भी दे “ उस वक़्त आई उनकी चेहरे पर वो ख़ुशी आज भी याद आती है जब आज वो हमसे युही मुस्कुरा कर हर शाम मिलती है , अजीब है यूँ एक दूसरे का ख्याल रखना बिना कहे मगर शायद यही प्यार है……………………..

 

मोहित कुमार पांडेय (रुद्र)

बी.टेक (मैकेनिकल) ऍम.बी.ऐ (इंटरनेशनल बिसनेस)

mob:9956531043

email:-kuntalmohitpandey@gmail.com

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