top of page
  • सुधा गोयल 'नवीन'

महामारी के दिनों में ... लघुकहानी "माँ, तुझे सलाम!"


"अब और चला नहीं जाता" शकुन्तला ने पति से कहा..

"मुझसे भी कहाँ चला जा रहा है..पर चलना तो होगा न... क्या दरद ज्यादा हो रहा है ? अभी तो चौदह दिन बाक़ी है न.. तेरे हिसाब से... गाँव पहुँच कर तेरी जचगी होगी .. बस तू घबड़ा मत... हिम्मत रख.."

दिन-दिन भर चलकर, तीन रात सड़क किनारे सो कर गुज़ार दी, फिर भी कोई सवारी आती-जाती नहीं दिखी, हज़ार किलोमीटर दूर गाँव कैसे पहुचेंगे... हाय रे कोरोना... मेरा बच्चा... शकुंतला मन ही मन बुदबुदाई.

रामलाल और शकुन्तला मध्यप्रदेश के सतना जिले के रहने वाले थे. भुखमरी, विशाल परिवार की जिम्मेदारी, सूखा-अकाल और काम की मज़बूरी और विवशता उन्हें अपने गाँव से हज़ार किलोमीटर दूर महाराष्ट्र में मज़दूरी करने ले गई थी..

फिर विदेशी विषाणु कोरोना के प्रकोप से सारे विश्व की आर्थिक व्यवस्था ठप्प पड़ गई और मज़दूर-कामगार बेकार हो गए, काम से निकाल दिए गए, बेकारी भुखमरी तक ले आई तो अपने-अपने गाँव लौटने को विवश हो गए... लौटें भी तो कैसे? ट्रेन-बस-टैक्सी-गाड़ी सब बंद... मकान मालिकों ने घर खाली करवाना शुरू किया तो पैदल ही निकल पड़े अपने-अपने गावों की ओर...

"क्यों री कुछ लाज-शरम है कि नहीं... पीछे से पूरी धोती खून से भीगी है.. और ये गठरी-मुठरी क्या लिए है? दिखा.... पता है न कि कर्फ्यू लगा है..."

शकुन्तला ने गोद में सोई खून से लथपथ नवजात संतान का मुख दिखाया तो चेक-पोस्ट इंचार्ज कविता कनेश का दिल धक् से मानो जड़ हो गया...

शकुन्तला ने बताया कि पिछले पांच दिनों से वह बस इसी तरह चलती चली आ रही है .. 70किलोमीटर चली होगी कि उसके पेट में भयानक दर्द उठा और वह वहीं सड़क किनारे लुढ़क गई… उसने उसी जगह इस नन्ही जान को जन्म दिया, एक घंटे वही सड़क किनारे पड़ी रही.. पति जो कर सकता था उसने मदद की... एक घंटे बाद गोद में इसे लेकर फिर चलने लगी... आज यहाँ बिजासन बार्डर पहुंची है शायद कोई गाड़ी मिल जाए...

रामलाल हाथ जोड़कर फूट-फूट कर रोते हुए मदद की भीख मांग रहा था और कोरोना को कोस रहा था....

कविता कनेश सोच रहीं थीं कि भूखी-प्यासी रह कर इतनी विकट-विषम परिस्थिति में इतना कष्ट सहकर जिस माँ ने बेटे को जन्म दिया है, क्या वह कभी भी उसका क़र्ज़ उतार पायेगा....?

क्या कोई भी बेटा माँ-बाप से बदसलूकी करते समय एक क्षण को भी सोचता है कि उसे जन्म देते समय माँ ने क्या-क्या सहा होगा....?

 

सुधा गोयल 'नवीन'

9334040697

3533 सतमला विजया हेरिटेज फेस - 7

कदमा , जमशेदपुर - 831005

goelsudha@gmail.com

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से मास्टर्स (हिंदी )

'और बादल छंट गए " एवं "चूड़ी वाले हाथ" कहानी संग्रह प्रकाशित

आकाशवाणी से नियमित प्रसारण एवं कई पुरस्कारों से सम्मानित ...

झारखंड की चर्चित, एवं जमशेदपुर एंथम की लेखिका

26 दृश्य

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें

भूख

मौन

आशीर्वाद

आपके पत्र-विवेचना-संदेश
 

bottom of page