कैंपस सिलेक्शन में विक्रम को बैंक में हिंदी-इंग्लिश ट्रांसलेटर की नौकरी मिल गई थी। अपनी मां को नौकरी की खुश खबरी सुनाने के लिए दोस्त की बाइक लेकर घर पहुंचा। घर पर ताला लगा हुआ देख कर परेशान सा हो गया।
सामने वाले पेड़ के नीचे खेलते हुए बच्चों से पूछने पर पता चला कि मां सड़क का काम करने गई है। शाम तक इंतजार करने के बाद पसीने में लथपथ मां को आता हुआ देख कर आगे बढ़ा। पैर छू कर गले लगा लिया। 'मां अब तुम्हें काम करने की जरूरत नहीं है। मुझे नौकरी मिल गई है।' यह सुनकर मां के आंखों में आंसू आ गए। सर पर हाथ फेरते हुए कहने लगी 'खुश रहे तू। अब मैं सारे गांव वालों से कहूंगी कि मेरा बेटा सरकारी बाबू बन गया है।' शाम के सात बज रहे थे विक्रम को आज ही अपने कैंपस लौटना था। क्योंकि कल सुबह डॉक्युमेंट्स वेरिफिकेशन कराना था। मां से इजाज़त लेकर कैंपस लौट गया। रात 11 बजे नीलिमा को फोन पर यह खबर सुनाई। 'मैं अपनी मां को मनवा लूंगा। अब तुम भी घरवालों को मनाओ।' 'हां..! कोशिश करूंगी विकी..!' 'अच्छा मैं फोन रखता हूं। डॉक्युमेंट्स सेट करना है। कल वेरिफिकेशन है।'
'अच्छा चलो खयाल रखना लव यू... बाय।' विक्रम रात भर अपने डॉक्युमेंट्स सेट करता रहा। सुबह 10 बजे डॉक्युमेंट्स वेरिफिकेशन हुआ और ज्वाइनिंग लेटर मिल गया। एक सप्ताह के अंदर ज्वाइन करना था। लेटर मिलते ही और ज्यादा खुशी होने लगी थी। शाम होते-होते विभाग के सीनियर, जूनियर और टीचर्स की बधाइयां मिलती रही। मेस में खाना खा कर अपने हॉस्टल के कमरे में लेटर को बार-बार पढ़ते हुए लेटा हुआ था। दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ सुनकर अंदर से ही आवाज़ दिया। 'कौन है?'
'अरे विकी दरवाज़ा खोल ज़रूरी बात बतानी है'
'रुक आ रहा हूं भाई'
'क्या हुआ मोहित इतना घबराया हुआ क्यों है?'
'यह देख हैडलाइन..! बैंक का दिवालिया होने की वजह से सारे अपॉइंटमेंट्स रद्द कर दिए गए हैं..!'
क्या..? क्या..?
विक्रम हताश हो कर बेड पर तकिए में मूंह छुपाए रो रहा था।
© सिराज 'राज'
पीएचडी, शोधार्थी, हिंदी विभाग,
मानू, सेंट्रल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
संपर्क : 8880293329