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  • दिव्या शर्मा

वो बरसा ज़िंदगी में सावन बनकर


कमरें में प्रवेश करते ही एक जानी पहचानी सी खूशबू उसकी रूह में उतर गई।

जाने क्यों दिल की धड़कन तेज होने लगी।

डरते डरते वह टेबल के पास पहुंच गई और बोली,

"गुड..गुड मॉर्निंग सर!"

"गुड मॉर्निंग!बैठो।"सिर को बिना उठाए उसनें जवाब दिया।

"थैंक्यू सर!"बोल कर वह कुर्सी पर बैठ गई।उसकी निगाहें सामने ही टिकी थी।इस ऑफिस में पहला दिन था और बॉस से पहली मुलाकात लेकिन यहाँ पर सब अपना सा क्यों लग रहा है यह सोच कर सुनंदा का मन बेचैन था।

"तो,कैसा लगा ऑफिस?"सामने बैठे शख्स ने उससे पूछा।

"अच्छा...!"शब्द पूरे ही नहीं कर पाई।आश्चर्यचकित सी वह बॉस.का चेहरा देखने लगी।

"क्या हुआ मिस सुनंदा?सब कुछ ठीक है ना!"बॉस ने कहा।

"जी..जी सब ठीक है सर...मैं सुनंदा..आपकी.. स..स.....सेक्रेटरी।"अटकते हुए उसनें जवाब दिया।

"हाँ..मैं जानता हूँ।पर आप कुछ परेशान लग रही हो।अगर कोई दिक्कत है तो मुझसे कह सकती हो।"

"नहीं सर ऐसा कुछ नहीं है.. वो..मैं बस थोड़ा नर्वस..।"

"रिलैक्स।ऐसा होता है लेकिन आप कोई पहली बार जॉब नही कर रही हैं।आपका सीवी देखा है अच्छी तरह अनुभवी है।"बॉस ने उसे सहज करते हुए कहा।

सुनंदा ने हाँ में सिर हिलाया।पता नहीं वह.क्या क्या कहता रहा और वह मंत्रमुग्ध सी सुनती रही।

इतने सालों में आज फिर दिल में कुछ हरियाली महसूस कर रही थी।

उसके कानों में संगीत बज रहा था।

"तो ठीक है।अब आप अपना काम समझ लीजिए।"

"ओ ..हैलो!तबीयत ठीक है ना।कर पाओगी आप?"मेज पर हाथ मारकर बॉस ने कहा।

वह सपनों से निकल कर चौक गई।

"जी सर बिल्कुल।आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।"इतना कह वह रूम से निकल कर अपनी टेबल की ओर चल दी।

उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस शख्स के शब्दों को पढकर वह दोबारा जीने लगी थी वह अचानक यूँ जिंदगी में आ जायेगा।

मन मयूर सा नाचने लगा

…………...

ऑफिस में जैसे गुलमोहर बिखर गए थे।वह महक जिसे भूल चुकी थी आज फिर से उसे महका रही थी।

"शेखर"हाँ यही नाम तो उसे जिंदगी में वापस खींच लाया वरना वह तो अतीत के भंवर में डूब ही चुकी थी।

वही शेखर आज यूँ सामने... मन में एक सिरहन सी दौड़ गई।

"मिस सुनंदा!काम को ठीक से समझ लीजिए और कल मुझे रिपोर्ट कीजिए।एक मीटिंग की जिम्मेदारी आपको जल्दी दी जायेगी।"अचानक से आकर बॉस ने सुनंदा को कहा और उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ऑफिस से निकल गए।

सुनंदा उन्हें जाते देखती रही।

पूरा दिन कैसे निकल गया वह नही जानती थी।शाम हो गई पर बॉस ऑफिस वापस नहीं लौटे।वह क्यों इंतजार कर रही थी खुद नहीं जानती थी।

ऑफ हो गया था एक एक कर सब ऑफिस से जाने लगे पर वह अभी भी कम्प्यूटर खोले बैठी थी।

"मैडम!छूट्टी हो गई है आपको नही जाना?"चपरासी ने उसकी टेबल को खटखटा कर कहा।

"हाँ..बस निकल रही हूं।"वह मुस्कुरा कर बोली।

बस में बैठकर सबसे पहले उसनें फेसबुक ऑन की।

हमेशा की तरह निगाहों ने शेखर की पोस्ट को ही तलाशा पर आज कुछ नहीं लिखा शेखर ने।

वह तो पीना चाहती थी शब्दों की मदिरा जिन्हें पीने से उसका दर्द कम हो जाता था।

हल्दी बारिश होने लगी।बस की खिड़की से बूंदें फुहार बनकर उसके चेहरे को भिगोने लगी।

कब घर आया और कब वह.दरवाजे पर पहुंची नहीं पता चला।

डोरबेल बजाती उससे पहले ही माँ ने दरवाजा खोल दिया।

"अरे!छाता तो था फिर भीग कैसे गई?"माँ ने सुनंदा से पूछा।

"ओह.. ध्यान नहीं रहा माँ..पता नहीं चला भीगने का भी।"सकपका कर सुनंदा ने कहा।

"तुम ठीक तो हो ना!ऑफिस में सब ..।।"माँ की आवाज में हजार चिंताएं एक साथ बोल उठी।

"हाँ माँ..सब बहुत बहुत अच्छा है।मैं नहा कर आती हूँ एक कप कॉफी बना दो ना माँ!"गले में बाँह डालकर उसनें कहा।

"हाँ..जाओ जल्दी आओ।"माँ आश्चर्य में थी।सुनंदा के रूखेपन में कमी देख वह खिल उठी।


शॉवर के हर धार में जैसे कोई गीत गुनगुना रहा था।यह कुछ अजीब सा एहसास था जो उसके दिल में उठने लगा था।

आज दिनों बाद उसने अपने चेहरे को आईने में देखा।आँखों में एक ख्वाब दिख रहा था।

गीले बालों में जैसे मोती झलक रहे हो।वह मुस्काई और बाथरूम से निकल गई।

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"माँ!कहाँ खोई हो?"गैस बंद कर सुनंदा ने माँ को कहा।

"क्या हुआ माँ?तबीयत ठीक है ना!"

"ओह... हाँ सुनंदा.. क्या हुआ सब ठीक तो है।अरे.. ये बर्तन...!!"बर्तन की हालत देख सुनंदा की माँ हडबडा गई।

"जल गया!कुछ तो बात है माँ।आप परेशान हो तभी तो कॉफी जल गई .।"सुनंदा ने माँ के चेहरे को देखकर कहा।

"चल तू जा मैं लाती हूँ कॉफी।"माँ ने कहा।

"नहीं माँ,आप बैठो मैं बना रही हूं।"सुनंदा ने गैस पर दूध चढाकर कहा।

थोडी देर में कप में कॉफी लिए वह माँ के साथ बालकनी में खड़ी थी।

"आज तेरे चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर एक सकून मिल रहा है दिल को।"माँ ने कहा।

सुनंदा बस हल्के से मुस्कुरा दी।

अतीत की बीती हुई यादों से कहीं न कहीं सुनंदा की माँ भी जख्मी थी।उनकी जिंदगी के दाग सुनंदा के दामन पर पड़ गए थे जिसके कारण वह तिलतिल मर रही थी।

"माँ!कहाँ खो गई फिर से?"सुनंदा ने कंधे पर हाथ रखकर कहा।

"कहीं नहीं बेटा.... सोच रही थी माँ अपने बच्चे की जिंदगी में वरदान बनकर रहती हैं लेकिन मैं तो तेरे लिए अभिशाप बन गई हूँ"आँखों को पल्लू से पोछते हुए सुनंदा की माँ ने कहा।

"ऐई रेखा... मीना कुमारी न बन..क्या माँ,कैसी बातें करने लगती हो आप!"सुनंदा ने माँ के गले लगते हुए कहा।

"हाँ..ये नाम ही तो तेरे जीवन को बर्बाद कर गया।जो यह तेरे साथ नहीं जुडा होता तो आज विवेक के साथ जिंदगी में आगे बढ गई होती।"माँ ने कहा।

"माँ आप भूल क्यों नहीं जाती यह सब?मैं उस घटिया आदमी को याद नहीं करना चाहती और न ही उसका नाम सुनना चाहती हूं।"सुनंदा ने नफरत से कहा।

"पर वर कुछ नहीं....दोबारा खुद को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश न करना।"सुनंदा गुस्से से कमरें में चली गई और बिस्तर पर पसर गई।

कुछ देर यूँही पडी रही... आँखों से दर्द बहने लगा..।।

तभी फोन पर नोटिफिकेशन साउंड बजी।हाथ में फोन लिए वह उसे यूँही देखती रही... ....फोन की स्क्रीन खोलते ही सबसे पहले वह फेसबुक खोलती है।

नोटिफिकेशन चेक करने लगती हैं तभी एक जगह नजर ठहर जाती है।

उन चंद पंक्तियों को पढकर वह अपनी सारी पीड़ा भूलकर मुस्कुरा दी,

शेखर की पोस्ट थी।

प्रेम में पीड़ा होती है गहन पीड़ा और मैं उस पीड़ा में आनंद महसूस करता हूँ।हाँ मैं प्रेम करता हूँ उन आँखों से जो मेरे ख्वाबों में चली आती है लेकिन आज जाने क्यों ऐसा लगा जैसे वह निगाहें मेरे सामने हकीकत बन आ गई हो....

इससे पहले की मैं दीवाना हो जाता मैंने खुद को दूर कर दिया पर कुछ देर के लिए और कह दिया कि फिर चली आना आज मेरे ख्वाबों में।

एक एक शब्द पढती गई उसे लग रहा था जैसे यह उसके लिए ही लिखा गया हो।

जाने क्या था उन निगाहों में

जो हम उनके तलबगार हुए....

सुनंदा को इंतजार होने लगा सुबह का....


सामने शेखर बैठे उसे मीटिंग की जानकारी दे रहे थे और वह सब नोट कर रही थी।

डायरी पर झुके हुए वह बस शेखर को सुन रही थी कि तभी किसी ने उसके चेहरे पर लपकते बालों को हटाया, वह घबरा कर खडी हो गई...

घडी का अलार्म बज रहा था और वह अपने बिस्तर पर थी।

"ओह.... पगली... सपना देख रही थी..।"खुद पर हँसती हुई वह तैयार होने के लिए चल दी।

आईने के सामने खड़े होकर सुनंदा ने एक बार अपने चेहरे को निहारा।थोड़ी देर यूँही खुद को देखती रही।

"कितनी लापरवाह हो गई हूँ मैं खुद के लिए ही।"वह मन ही मन बुदबुदाई।ड्रेसिंग टेबल की ड्रार खोल कर काजल निकाला और ढेर सारा आँखों में भर लिया।

हल्की सी लिपस्टिक होंठों पर लगा ली।बालों में कल्च लगातार कुछ लटों को यूँही छोड दिया।

खुद को देखकर वह हल्के से मुस्काई।

कमरे के दरवाजे से माँ उसे ही देख रही थी।आज सुनंदा के चेहरे पर एक अलग सी चमक थी।बिल्कुल वैसी ही जैसी तीन साल पहले उसके मुख पर रहती थी।

"अच्छी लग रही हो।"माँ ने कहा।

"माँ….!!वो वो बस..ऐसे ही...।"माँ को देख वह घबरा सी गई।

"सच में बहुत प्यारी लग रही हो।कुछ खास बात है क्या?"माँ ने उससे पूछा।

"ओहो..माँ!खास क्या होगा?अब ऑफिस ऐसे लल्लू बनकर तो नहीं जा सकती ना!"सुनंदा ने कहा।

"हम्म!"माँ ने मुस्कुराते हुए कहा और कमरे से बाहर चली गयी।

सुनंदा ने फोन उठाया और टाइम देखा फिर फेसबुक खोल कर शेखर के पेज पर पहुंच गई।

आज जाने क्यों गुलाबी होने का जी करता है

खुदा जानता है यह दिल उन पर ही मरता है।

तुम्हें मालूम है ना!यह मैंने सिर्फ तुम्हारे लिए लिखा है "जान"।

उसकी पोस्ट पर लड़कियों के कमेंट्स देख जाने क्यों सुनंदा के मन में एक जलन सी उठी।

फोन रखकर वह वापस वार्डरोब की तरफ मुडी और गुलाबी शर्ट निकाल ली।

चेंज करके एक बार फिर खुद को देखा और अपने बैग को उठाकर वह बाहर निकल गई।

"माँ मैं जा रही हूं।"सुनंदा ने कहा।

"अरे शर्ट चेंज कर ली!क्यों?"माँ ने कहा।

"वो बस ब्लैक के साथ पिंक अच्छा लगता है ना!इसलिए ही।"नजरों को चुराते हुए उसनें कहा और गेट से बाहर आ गई।

बस में बैठते ही आदतन फेसबुक को खोला।शेखर के स्टेट्स पर आए कमेंट्स पढ़ती रही।

पता नहीं क्यों वह आज कुछ अलग ही महसूस कर रही थी एक अजीब सी चिढचिढाहट।

शेखर की लड़कियों के साथ चुहल वह बर्दाश्त नही कर पा रही थी लेकिन क्यों?

"पागल है तू सुनंदा।क्यों ऐसे जल रही है! तू है कौन शेखर की जिंदगी में?"उसने खुद से सवाल किया।

खिड़की के बाहर सड़क पर दौड़ती गाडियों को देखती रही।

एक सेल्फी लेकर आँखों को क्राप कर प्रोफाइल पिक्चर सेट की और अपलोड कर दी।

फोन बंद कर बैग में डाल दिया।उसका स्टॉप आ चुका था वह उतर कर तेजी से ऑफिस की ओर बढ गई।

आज उसका दूसरा दिन था।स्टॉफ के साथ थोडी हाय हैलो हुई और वह अपने टेबल की तरफ चली गयी।

सुनंदा ने शेखर के केबिन की ओर देखा।

वह अपने लैपटॉप को खोलकर काम करने लगी।बीच बीच में उसकी निगाहें शेखर के केबिन की ओर उठ जाती।

दो घंटे हो चुके थे उसे ऑफिस आए लेकिन बॉस ने उसे अब तक नहीं बुलाया था।

लंच का समय होने वाला था लेकिन अब तक वह शेखर को नहीं देख पाई।

जाने क्यों यह इंतजार उसे परेशान कर रहा था।

उसने फिर से फोन निकाला और फेसबुक ऑन किया।

अपनी प्रोफाइल पिक्चर पर आए नोटिफिकेशन देखने लगी।एक कमेंट पर उसकी निगाह टिक गई

यह आँखे जाने क्यों अपने करीब लगती है।

शेखर के कमेंट को पढकर उसके गाल कान तक लाल हो गए और उसने घबरा कर फोन बंद कर दिया।चोर निगाह से चारों तरफ देखा।

किसी की नजर उस पर नहीं थी।

तभी शेखर के केबिन का दरवाजा खोला और वह बाहर आया।उसके पीछे एक खूबसूरत सी लड़की थी।

देखकर कुछ चटका सा महसूस किया उसनें।तभी रूम से दो लोग और बाहर आए।वह चारों कुछ देर कुछ डिस्कस करते रहे फिर हाथ मिलाकर चले गए।

शेखर वापस अपने केबिन में लौट गया।

सुनंदा ऐसे ही देखती रही।

"मैम!बॉस ने कहा है कि रिपोर्ट लेकर लंच के बाद उनके केबिन में आए।"ऑफिस के चपरासी ने आकर कहा।

उसनें सहमति से सर हिलाया और कैफेटेरिया की तरह चली गयी।

कॉफी पीते हुए वह अपने अतीत की ओर मुड़ चली।

……….।।।…...

"तुम्हारी आँखें कितनी खूबसूरत हैं सुनंदा!"उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में लेकर विवेक ने कहा।

"झूठे!"विवेक को पीछे थकेलते हुए सुनंदा ने कहा और थोडी दूर जाकर खडी हो गई।

"झूठा न कहो,करीब तो आओ..जानती हो ना तुम्हारे बिना रह नही सकता।"विवेक ने कहा।

"बातें बनाना कोई तुम से सीखे।नहीं आती पास जाओ।"चिढा़ते हुए वह एक ओर चल पड़ी।

"न आओ...मैं भी चला जाऊंगा हमेशा के लिए….।"वह चिल्लाया।

"जाओ...कौन रोकता है।"अंगूठा दिखाकर सुनंदा ने कहा।

"मैं सच में चला जाऊंगा….इस दुनिया से ही।"विवेक ने कहा और पीठ फेर ली।

"विवेक!!!तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की?तुम समझते क्या हो खुद को!!"विवेक के करीब आकर सुनंदा ने उसकी पीठ पर एक मुक्का मारते हुए चिल्ला कर कहा।

"तो सताती क्यों हो मुझे?"विवेक ने उसकी ढोड़ी को छूकर कहा।

"कहाँ सताती हूँ!मैं तो कब से तुम्हारी हो जाना चाहती हूँ।"सुनंदा ने उसके सीने में मुँह छिपाकर कहा।

विवेक ने उसके होठों पर होंठ रख दिए।उसके जिस्म में एक तरंग सी उठ गई।वह कब उसके साथ उस कमरें में आ गई उसे पता नहीं चला।कब सारी सीमाओं को पार कर लिया पता नहीं चला।

उसके शरीर पर ऊंगलियों नचाता विवेक उत्तेजना को बढ़ा रहा था।

सुनंदा के जिस्म से कपड़े उतारता विवेक उसे लगातार चूम रहा था और वह हो गया जो एक आम लड़की के लिए अप्रत्याशित था।

जिस्मों का ज्वर उतरने के बाद सुनंदा को अपनी स्थिति का अंदाजा हुआ।वह सिसक कर रोने लगी।

"क्यों रो रही हो सुनंदा?हमने कोई पाप नहीं किया।हम प्यार करते हैं एक दूसरे से।"विवेक ने उसे समझाते हुए कहा।

"नहीं विवेक… शादी से पहले यह करना पाप है।मैं माँ को क्या मुँह दिखाऊंगी।"चेहरे को ढंक कर वह रोने लगी।

"यदि हमारे प्यार की पवित्रता के लिए शादी जरूरी है तो मैं कल ही माँ पापा के साथ तुम्हारे घर आऊंगा।तुम रोओ मत।"विवेक ने उसके आँखों के पानी को साफ करके कहा।

"तुम सच कह रहे हो?"

"हाँ सच कह रहा हूँ।"विवेक ने जवाब दिया।

…….

"मैडम कॉफी!"

आवाज सुन सुनंदा वर्तमान में लौट आई।उसकी आँखों में पानी था।उसे साफ कर वह चुपचाप कॉफी पीने लगी।

कुछ देर बाद वह शेखर के केबिन में थी।शेखर पीठ किए फोन पर किसी से बात कर रहा था।

वह चुपचाप खड़ी रही।

शेखर वापस मुड़ता है।सुनंदा को गुलाबी