नये- नये खुले श्रेयांस विद्याश्रम की घण्टी टन—टन- - टन बज उठी। संस्कृत के कॉन्टेचुयल टीचर अमित उपाध्याय स्टॉफ रूम के सामने खड़े होकर अपने बेटे अंश का इंतजार करने लगे । सात साल का अंश इसी विद्याश्रम में दूसरी कक्षा में है। अंश के आते ही अमित तेजी से डग भरते हुए अपने क्वॉटर्स की तरफ चल दिए। घर पहुँचने के बाद दोनों बाप-बेटे हाथ-पैर धोकर बरामदे में लगे तख्त पर पालथी मार कर बैठ गए। पत्नी मनोरमा दो थाली में आलू की रसेदार सब्जी और रोटी ले आई। खाने के बाद अमित ने अंगोछा में हाथ पोछा और वही पर लेट गए।
“ चॉकलेट चचा नहीं रहे - - -- - - आपके आने से आधा घंटा पहले नाई आया था -- - घाट पर चलने के लिए खबर देने - - - - ।" चौका में बरतन रखते हुए मनोरमा ने कहा।
“ क्या ! - - - क्या कहा ? - - परसो ही तो मैं गया था मिलने - - - -साँस लेने में थोड़ी दिक्कत तो थी लेकिन बातचीत तो कर ही रहे थे । इतनी जल्दी चले जायेंगे सोचा नहीं था - - - खैर - - - ।" अमित ने उठकर बैठते हुए कहा।
“ अच्छा -- - मैं चलता हूँ। अंश कहाँ गया ? अरे भई - - उसे पढने के लिए बैठाना । उसकी अंग्रेजी वाली मैडम मिली थी - - कह रही थी कि -- - अंग्रेजी में बहुत वीक है - - सोच रहा हूँ कि रमन सर से ट्यूशन करवा दूँ - - लेकिन इसे घूमने-खेलने से फुर्सत हो तब न । " अमित ने पैर में चप्पल डालते हुए कहा।
“ अरे - - अभी तो यही था - - - न जाने कहाँ चला गया -- ।" मनोरमा ने बेडरूम में झाँकते हुए कहा।
“ देखो - - - इसकी संगत बिगड़ती जा रही है - - - - पता नहीं - - - कहाँ- - कहाँ किस-किस के संगत में रहता है ? उस दिन बाजार गया था - - लगा जिद करने कि - -यह चॉकलेट लूँगा - - - - अंडे के आकार का था - - सजा-सजाया - - बार-बार ऊँगुली दिखाकर कह रहा - - - किंडर जॉय - - - किंडर जॉय - - - - मैंने दुकानदार से पूछा दाम - - - तो बोला - - चालीस रुपये - -। अब तुम्ही बताओ - - भला – कहाँ से खरीदूँ - -मैं – - - - मैंने कहा - -एक रुपये वाला ले लो - - तो साहेबजादे को नहीं चाहिए- - - वही नाटक नाँध दिए - - लगे हाथ-पैर पटकने -- - - यह सब तुम्हारे छूट का का नतीजा है - - - -।" अमित ने अपना पूरा गुस्सा मनोरमा पर उतारा।
पोलीथीन में एक पुरानी धोटी ले वे चॉकलेट चचा के घर चल दिए। . . . . . चॉकलेट चचा यानी रामबरन तिवारी, गाँव के धनी व्यक्तियों में गिने जाते थे। उनके दो बेटें - रामकृष्ण तिवारी और रामकिरण तिवारी। दोनों सरकारी नौकरी में। बड़ा वाला फौज में ऑफिसर और छोटा वाला बिजली विभाग में इंजिनियर। एक बेटी थी अपर्णा - --उसका व्याह नेवी के एक ऑफिसर से हुआ था। रामबरन तिवारी अपने समय के जाने-माने अमीन थे। बहुत दिनों तक सरकारी अमीन रहे । साठ साल की उम्र में रिटायर हुए लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें फुर्सत कहाँ मिलती थी। रिटायर्मेंट के दो साल बाद ही उनकी पत्नी अहिल्या की मृत्यु हो गई थी। दोनों बेटे नौकरी में थे। नौकरी तो छोड़ी नहीं जा सकती थी , और उन्हें शहर में बेटे-बहुओं के साथ रहना पसंद नहीं था। अत: गाँव में ही एक नौकरानी ( एक कुर्मीन दाई ) को ठीक कर दिया गया था। वहीं तीनों टाइम खाना-पीना और सोने-रहने का सब इंतजाम करती थी। उनके बारे में एक बात पूरे जँवार में मशहूर थी कि वे चॉकलेट के भयानक शौकीन थे। अमीनी करते समय जरीब के साथ-साथ आँखों पर चश्मा चढ़ाये पेंसिल का नोक नक्शा पर गड़ाये बढ़ते रहते और मुँह में चॉकलेट चिभलाते रहते। उनके बारे में यहाँ तक कहा जाता था कि जो पार्टी बढिया चॉकलेट उनके सेवा में ले आता , उसकी जमीन दो-चार जरीब जरूर बढ़ जाती। जिन लोगों ने उन्हें जवानी के दिनों में देखा है वे बताते हैं कि उनके पास स्विटजरलैंड , इग्लैंड और अमेरिका से चॉकलेटों के कूरियर आया करते थे। नेस्ले, कैडबरी, पार्ले-फ्रीबर्ग , अमूल, फेरेरो-किंडर जॉय , कैंपको , पेसरी आदि कम्पनियों के चॉकलेट तो उनके पास हमेशा होती ही थी लेकिन उस समय की फेमस मॉर्टेन चॉकलेट के तो वे दीवाने थे। उम्र के साथ-साथ उनका चॉकलेट का शौक कम तो हुआ था लेकिन खत्म नहीं हुआ था। मरते समय तक उनका खाना खाने के बाद चॉकलेट की लत बनी रही थी।
गाँव-जँवार के लोग पहुँच चुके थे। घाट की तैयारी हो रही थी। बाँस की पचाठी तैयार हो चुकी थी। हांडी से धुँआ उठ रहा था। उसे लटकाने के लिए रस्सी तैयार कर रखा हुआ था। दोनों बेटे शव के पास बैठे हुए थे। बेटी अपर्णा के रोने की आवाज घर से आ रही थी। उसके साथ दोनों बहुओं के रोने का भी स्वर कभी-कभी सुनाई दे जाता था। मुहल्ले की औरतें भी घूँघट काढ़े शोक-विलाप में यथासंभव अपना योगदान दे रही थीं।
अमित जाकर शव के पैताने बैठ गया। कुछ दूरी पर बच्चें शोर मचा रहे थे। अमित की नजर उधर गई। अरे- -- इसमे तो अंश भी है। उसकी निगाह शव के सिरान्हे बैठे रामकृष्ण तिवारी की तरफ थी जिन्होंने अपने हाथ में एक बड़ा-सा पोलीथिन –पैकेट पकड़ रखा था।
शव को अर्थी पर रखकर लाल कफन ओढ़ा दिया गया। पूरे अर्थी को फूल-माला से सँजाया गया। घण्टा-घड़ियाल बजने के साथ ‘ राम नाम सत्य है ' का सामुहिक स्वर गूँजा। एक व्यक्ति धुँआ उठ रहे हांडी को लिए आगे-आगे चल रहा था। चार जन अर्थी को कंधे पर लिए चल रहे थे। बीच-बीच में भीड़ में से आवाज आती- -- ‘राम नाम सत्य है ’ - - ‘ राम नाम सत्य है ’ -- -इसके साथ ही रामकृष्ण तिवारी अपने पोलीथिन-पैकेट में से चॉकलेट निकालकर हवा में उछालते और रामकिरण तिवारी सिक्के उछालते। शवयात्रा में पीछे-पीछे बच्चों का हुजूम उछलता-कूदता सिक्के-चॉकलेट लूटता बढ़ता जा रहा था। अंश भी उस भीड़ में शामिल था। उसके हाथ भी तीन सिक्कें और चार चॉकलेट लगे थे। गाँव के मुख्य चौराहे पर रामकृष्ण ने चॉकलेट उछाला - - अरे – यह तो - - वही अण्डाकार चॉकलेट है - - - किंडर जॉय - - - अंश अपनी सारी ताकत से चॉकलेट के लिए झपटा - -। एक चॉकलेट उसके मुट्ठी में आ चुका था - - - दूसरे के लिए उसने दूसरा हाथ बढ़ाया - - - लेकिन तब-तक वह किसी और के हाथ लग चुका था। उसने सोचा चलो कोई बात नहीं - -एक तो मिला - - । ‘राम नाम सत्य है ’ - - ‘ राम नाम सत्य है ’ के स्वर के साथ अर्थी आगे बढ़ती जा रही थी। - - --अब अर्थी घाट पर आ चुकी थी। बच्चें अपने घर की तरफ लौट गए। अमित शवयात्रा में पीछे-पीछे चल रहे थे। वे अंश को भीड़ में शामिल देख भीतर ही भीतर क्रोध से जल रहे थे। - - लेकिन यहाँ शवयात्रा में - - क्या करें - - - दाँत पीस कर रह गए। यदि और कोई समय होता तो --- अंश का तो –- - -- - - गुस्सा से वे काँपने लगे।
उन्होंने पीछे मुड़कर देखा। घाट के पास के पीपल के पेड़ के नीचे - - जहाँ मृतात्मा के लिए पानी देने के लिए घंट टँगे थे - - - अंश बैठा - --वही चॉकलेट प्रेम से खाने में मग्न था - - - जिसको उन्होंने बाजार में देखा था - --दुकानदार ने दाम बताया था --- चालीस रुपये. . . . . .।
आदित्य अभिनव
उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव
जन्म - 30 जून 1970
‘परिकथा’, ‘पाखी’ ,‘ लमही’ ,’कथादेश ‘ , ‘गगनांचल’, ‘ स्पर्श ’ , ‘ विश्वगाथा ’ , ‘ सुसंभाव्य ’, ’सेतु( पीट्सवर्ग, अमेरिका) , ‘ साहित्यसुधा ‘, ‘ अनुसंधान’ , अनुशीलन’ , ‘ विपाशा’ , ‘हस्ताक्षर’ , सहित्यकुंज’ ‘ प्राची ’ ‘ साहित्यप्रभा’ आदि विभिन्न राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय पत्र –पत्रिकाओं मे रचनाएँ प्रकाशित ।
काव्य संग्रह “ सृजन के गीत “ 2017 में प्रकाशित।
आकाशवाणी – बीकानेर , जोधपुर और गोरखपुर से कविता का प्रसारण
दूरदर्शन – मारवाड़ समाचार , जोधपुर से कविता का प्रसारण
सम्पादन सहयोग – “ मानव को शांति कहाँ ‘’ (मासिक पत्रिका) (2004- 2008 तक उप संपादक )
सम्मान – साहित्योदय सम्मान (2020) , लक्ष्यभेद श्रम सेवी सम्मान(2020)
- आदित्य अभिनव
उर्फ डॉ . चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव
सहायक आचार्य , हिंदी विभाग
भवंस मेहता महाविद्यालय , भरवारी
कौशाम्बी – 212201
मोब-7972465770, 7767031429
ई –मेल chummanp2@gmail.com
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