फरवरी की गुलाबी ठंड कहीं दूर रेडियो पर लता जी के प्यार भरे नगमों की मंद स्वर लहरी हवा के पंखों पर सवार होकर खिड़की से आ रही थी। खिड़की से झांकती चाँदनी और सफेद चाँद की रौशनी से झोपड़ी नहा उठी। शांति ने न जाने क्या सोचकर खिड़की के परदों को हटा दिया, चाँदनी पूरे झोंपड़ी में बिखर गई। ठंडी हवाओं के साथ दूधिया चाँदनी को उसने आने दिया मानो प्यार के इस मौसम में वो अपने हिस्से की चाँदनी को समेट लेना चाहती हो। जिंदगी का फलसफा भी तो यही है, हर आदमी को अपने हिस्से की खुशियाँ मिलती है। बस निर्भर इस पर करता है कि वह उसे कैसे समेटता है। आज काम से जल्दी छुट्टी मिल गई थी, मालिक और मालकिन आज बाहर खाना खाने गये थे। मालकिन आज बहुत खुश थी, सुबह ही बताया था आज प्रेम करने वालों का दिन है। साहब ने उन्हें बड़ा सा लाल सुर्ख गुलाब का गुलदस्ता और मखमली डिबिया उपहार में दिया था। मालकिन ने मालिक को खुशी से गले लगा दिया था।
"छिः! ऐसे कोई अपने मर्द को सबके सामने गले लगाता है क्या? घर में नौकर-चाकर है। जरा भी शर्म नहीं आती इन बड़े लोगों को?"
शांति अपने झोंपड़े में सिगड़ी जलाने का प्रयास कर रही थी, कुछ दिनों से रह-रहकर पानी बरस रहा था। लकड़ियाँ भी गीली थी, गीली लकड़ियाँ सू-सू की आवाज कर रही थी। गीली लकड़ियों की वजह से झोंपड़े में धुआँ भर गया। उस धुवें में शांति की चाँदनी कहीं खो गई, मालकिन का चेहरा बार-बार उसके सामने घूम रहा था। मालकिन ने बताया था कि मालिक से उनका प्रेम विवाह हुआ था। परिवार वालों के खिलाफ जाकर उन्होंने विवाह किया था।
प्रेम विवाह … उसका भी तो प्रेम विवाह हुआ था, माधव उसके मुहल्ले में ही भेलपूरी का खोमचा लगाया करता था। उसकी आँखों में ऐसा कुछ था जो उसे खींचता था, माधव भी तो कुछ ऐसा ही महसूस करता था। कितनी बार उसने उससे भेलपूरी के पैसे नहीं लिए थे …
"तुझसे क्या पैसे लेने।" ये कहते-कहते उसकी आँखों मे शरारत उभर आती और शांति शर्म से दोहरा जाती।
आज भी उसे वह दिन याद है, उसका बाप हमेशा की तरह शराब पीकर पूरे मोहल्ले में बवाल मचाए पड़ा था। आज उसके हाथ मे विलायती शराब थी, शांति समझ नहीं पा रही थी बापू के पास आखिर इतने पैसे कहाँ से आ गये। शांति ने बापू के पास खाने की थाली रखी ही थी कि बापू ने वो थाली दीवार पर दे मारी और उसका हाथ पकड़कर उसे घसीटने लगा।
"चल तुझे मालिक ने बुलाया है।"
"इतनी रात को?"
"तू मुझ से सवाल करती है, तेरी इतनी हिम्मत।"
बापू का हाथ शांति की तरफ बढ़ा ही था कि एक मजबूत हाथ ने बापू के हाथ को रोक लिया। माधव शांति की ढाल बनकर खड़ा था। शांति चुपचाप उसे देखती रह गई।
"तेरी इतनी हिम्मत की तू मुझे रोके।"
बापू माधव को मारने के लिए आगे बढ़े, पर शराब के नशे में धुत बापू वही दीवार के पास लुढ़क गए।
माधव ने शांति का हाथ पकड़ा और उसकी आँखों में आँख डाल कर कहा, "तुम्हें मुझ पर भरोसा है न ...कब तक इस नर्क में रहोगी। क्या तुम मेरे साथ जीवन बिताने को तैयार हो?"
न जाने उसकी आँखों में ऐसा क्या था। शांति चुपचाप सर झुकाए माधव के पीछे-पीछे चली आई, वह दिन था और आज का दिन ... शायद इसे ही प्रेम कहते हैं। उसने भी तो प्रेम विवाह ही किया था।
परसों पूर्णिमा थी, कोरोना की वजह से सैलानियों का आना बंद था पर प्यार के इस महीनें में प्रेमी युगल ताजमहल के दीदार को आ ही जाते। चाँदनी में नहाये संगमरमरी शाहकार की एक झलक पाने को हर आदमी खिंचा चला आता। ताज की पच्चीकारी में कीमती पत्थर लगे हैं जो चाँदनी रात में चाँद की रौशनी पड़ते ही चमकने लगते हैं। इन नगीनों को चमकने के कारण उन्हें चमकी भी कहा जाता था। माधव जब बहुत खुश होता तो वह उसे इसी नाम से पुकारता था।
शांति की झोपड़ी से ताज कितना खूबसूरत दिखता था। एक बार शांति ने माधव को छेड़ा भी था,
"एक राजा अपनी पत्नी को इतना प्यार करता था कि उन्होंने उसके लिए ताजमहल बनवा दिया और तुमनें …!"
शांति की बात सुन माधव कितना उदास हो गया था, वो सूट-बूट वाले साहब जो सैलानियों को ताजमहल दिखाते थे, उन्हें अक्सर कहते सुना था,"एक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक"।
तब शांति ने माधव के हाथों को हाथ मे लेकर कहा था,"मेरे लिए तो ये झोपड़ी किसी ताजमहल से कम नहीं। वो उस राजा की मुहब्बत की निशानी थी और ये हमारी।"
उसकी बात सुन माधव कितना खुश हो गया था। उस दिन उसने कुछ भी नहीं बोला था पर उसकी वो बातूनी आँखें कितना कुछ बोल गई थी।
कोरोना के कारण ताजमहल बन्द रहता था, लोग यमुना के उस पार से ताजमहल का दीदार करने आते।आजकल माधव बहुत तड़के ही अपना खोमचा लेकर पहुँच जाता। इधर बंदी के कारण कमाई कुछ ठीक नहीं थी, पर उम्मीद थी कि भेलेन्टाइन डे में बिक्री होगी। नवयुवक-युवतियों से मनमर्जी वसूलते थे सब ... प्रेम में गले तक डूबे जोड़े सुकून की तलाश में यहाँ-वहाँ डोलते रहते। माधव ने खोमचे के ऊपर सफेद बगुले सी झक मुरमुरे की ढेरी लगा रखी थी और लाल-लाल टमाटर, हरी करारी मिर्च और छिले हुए प्याज से उनकी सीमा-रेखा भी खींच रखी थी। उबले हुए आलू, पपड़ी, सेंव, कटी धनिया, रसीले नीबू और वो जादुई मसाले एक तरफ ..प्लास्टिक के छोटे-छोटे डिब्बों में खट्टी-मीठी रंग-बिरंगी चटनियों में गजब का स्वाद था। शांति हरी चटनी सिलबट्टे पर पीसकर बनाती थी। जादू था उसकी उंगलियों में जो एक बार उसके हाथ की चटनी खा ले उंगली चाटता रह जाये।
माधव ने अभी खोमचा लगाना शुरू ही किया था कि एक युगल जोड़ा आइसक्रीम खाता हुआ आ गया। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि वह दोनों आकंठ एक-दूसरे के प्रेम में डूबे हुए हैं। दोनों एक ही आइसक्रीम से खा रहे थे।
"बाबू साहब! हमारे हाथ की भेलपूरी खा कर तो देखिए सब कुछ भूल जायेंगे। यहाँ आस-पास हमारी टक्कर का कोई भेलपूरी नहीं बनाता, पूरे इलाके में मशहूर है माधव की भेलपूरी। जो खाएगा उसका प्रेम अमर हो जाएगा,जन्म-जन्म तक का साथ रहेगा।"
उसकी बात सुनकर युगल खिलखिला कर हँस पड़े।
"तुम तो एम बी ए वालों को भी फेल कर दो, क्या जबरदस्त मार्केटिंग करते हो।"
उनकी बात सुन माधव शरमा गया,
"काहे की मार्केटिंग बाबू साहब? हम अंगूठा छाप आदमी आप लोगों की बराबरी कहाँ कर पाएंगे? आज तो भैलेंटाइन डे है।"
उसकी बात सुन युगल मुस्करा पड़े,
"हाँ!आज भेलेन्टाइन डे है।"
उन दोनों ने भी माधव के सुर में सुर मिलाया।
"बाबू साहब! फिर भेलपूरी से कैसे काम चलेगा।"
माधव ने अपने खजाने से गुच्छे वाला टेडी बेयर निकालकर मैडम के हाथों में पकड़ा दिया।
"सिर्फ तीस रुपये का है, इससे सस्ता आपको पूरे मार्केट में नहीं मिलेगा और यह पाँच रुपए वाली चॉकलेट भी…"
माधव की हरकत को देख वह लड़की ठठा मारकर हंस पड़ी। उसने अपने पुरुष मित्र को कोहनी मारते हुए कहा,
"इन लोगों को भी चॉकलेट डे और टेडी डे के बारे में पता है।"
माधव ने लपककर जवाब दिया,
"दीदी! हम पढ़े लिखे नहीं हैं तो क्या हुआ, दुनिया की खबर हम भी रखते हैं।
माधव ने भेलपूरी का दोना दोनों को हाथ मे पकड़ाया और …
"हप्पी भेलेन्टाइन डे…"
"तुम्हें भी…"
दोनों युगल हंसते-मुस्कुराते भेलपुरी के साथ-साथ टेडीबियर और चॉकलेट का दाम चुका कर आगे बढ़ गये। माधव आज बहुत खुश था, वो मन ही मन सोच रहा था। काश भैलेंटाइन साल में दो-चार बार आता तो कितना अच्छा होता। बगल में चीनी के खिलौने, लाई का लड्डू, राम दाने की पट्टी, चिक्की और गजक बेचने वाले गोकुल का खोमचा भी लगा हुआ था। गोकुल उस जोड़े के जाते ही माधव के खोमचें के पास सरक आया
"वाह माधव भैया! क्या तरकीब निकाले हो सामान का सामान भी बेच दिया और लोगों को पता भी नहीं चला।"
"तुम्हारी भाभी से वायदा किए हैं,उन्हें ताजमहल गिफट करेंगे।"
"तुम भी न माधव भैया सुबह-सुबह भांग खाकर बैठे हो, हम गरीब दो जून की रोटी जुटा ले वही बहुत है। ताजमहल देखने की चीज है, खरीदने की नहीं।"
माधव सोच में पड़ गया,सच ही तो कह रहा था वह... आज नुक्कड़ वाले रमेश से उस बित्ते भर ताजमहल का दाम पूछा था,आठ सौ! आठ सौ का था। इतना महंगा! इतनी तो उसकी पाँच दिन की कमाई है। कहाँ से लाएगा वह? खरीद भी लिया तो गृहस्थी कैसे चलेगी। माधव इसी सोच-विचार में पड़ा था। देखते ही देखते उसके सारे गुच्छे और चॉकलेट भी बिक गए। रात घनेरी होने लगी थी, काली यमुना रात के साथ और भी काली लग रही थी। आज उसने शांति से जल्दी आने का वायदा किया था। बगल में गोकुल भी सामान समेट रहा था।
"आज की बिक्री कैसी रही गोकुल...?"
"आप का तो बढ़िया है, हमारा तो पूछिए मत। आजकल के जमाने में लड़के यह सब कहाँ खाते हैं।"
उसकी आवाज में दर्द था, पीढ़ियों से ये काम उसके पुरखे करते आ रहे थे। न जाने क्या सोचकर माधव ने गोकुल से कहा,
"गोकुल! मेरा एक काम करोगे।"
"हाँ-हाँ बोलो भैया…"
"मेरे लिए एक चीज बना दोगे। आज और अभी..."
माधव की आँखों में शरारत उभर आई। पता नहीं माधव के दिमाग में क्या चल रहा था। रात हो आई थी, गोकुल और माधव ने अपना खोमचा समेटा और घर की ओर चल दिए। शांति दरवाजे पर ही माधव का इंतजार करती हुई मिल गई। उसकी सिगड़ी में लाल-लाल अंगार दहक रहे थे। उसी के बगल में पानी भरा हुआ लोटा भी रखा हुआ था। शांति दौड़कर लोटा ले आई , गरम-गरम पानी से हाथ-मुँह धोकर माधव एकदम तरोताजा हो गया। शांति ने रोज की तरह मुँह पोछने के लिएअपना आँचल माधव को थमा दिया,
"तुम बैठो अभी चाय चढ़ाती हूँ।"
माधव सिगड़ी के पास सरक आया और हाथ सेंकने लगा,सिगड़ी की वजह से झोपड़ी अब गर्म महसूस होने लगी थी।
"आज की बिक्री कैसी रही?"
भगोने से उठती भाप चूल्हे के धुंवे के साथ घुलमिल गई थी। मिट्टी लिपटे भगोने में चाय खदबदा रही थी और भगोना सिगड़ी की तेज आँच में काला पड़ गया था। शांति ने आँचल से भगोने को पकड़ चाय को गिलास में ढालते हुए कहा,
"बहुत बढ़िया ... आज भैलेंटाइन डे था न! पिछले साल की तरह तो भीड़ नहीं थी पर रोज की तुलना में लोग आज ज्यादा आए थे।"
सिगड़ी की तेज आँच में शांति का गोरा रंग तम्बाई पड़ गया था, उसके इस सलोने रूप पर ही तो माधव फिदा था। सब कहते थे उनकी जोड़ी एकदम राम-सिया जैसी है।
"जरा वो गमछा तो दे, देख तेरे लिए क्या लाया हूँ।"
"मेरे लिए?'
"हाँ-हाँ, तेरे लिए आज भैलेंटाइन डे था न ... प्रेमी-प्रेमिका का दिन।"
माधव ने शांति को धीरे से कोहनी मारी,
"धत्त! सठिया गये हो, बिल्कुल शर्म नहीं आती तुम्हें।"
"अपनी जोरू से कैसी शर्म?"
माधव ने बड़े अधिकार भाव से कहा। शांति की आँखों में चमक थी। उपहार किसी भी उम्र में मिले खुशी देता ही है। शांति ने जल्दी-जल्दी उस गमछे को खोला. सामने दूधिया सफेद ताजमहल चमक रहा था। गोकुल के सुघड़ हाथों ने चीनी का कितना सुंदर ताजमहल बनाया था।
"कहा था न तुझसे ...तेरे लिए ताजमहल बनवाऊँगा। कैसा लगा बता…"
माधव आज बहुत खुश था। यह ताजमहल उस संगमरमरी ताजमहल जैसा कीमती तो नहीं था पर खूबसूरत था। आज दूधिया चाँदनी रात में एक नहीं, दो-दो ताज चमक रहे थे एक संगमरमर से बना ताजमहल और एक चीनी से बना, जो अपनी मिठास उनके रिश्तों में घोल रही थी।
लेखिका परिचय - डॉ. रंजना जायसवाल
विधायें - लेख,लघु कथा,कहानी,बाल कहानी,कविता,संस्मरण और व्यंग्य
पुरस्कार- अरुणोदय साहित्य मंच से प्रेमचंद पुरुस्कार
भारत उत्थान न्यास मंच से विशिष्ट वक्ता पुरुस्कार
गृहस्वामिनी अंतराष्ट्रीय और वर्ल्ड राइटर्स फोरम द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार
श्री हिन्द पब्लिकेशन द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में तृतीय स्थान
दिल्ली एफ एम गोल्ड ,आकाशवाणी वाराणसी,रेडियो जक्शन और आकाशवाणी मुंबई संवादिता से लेख और कहानियों का नियमित प्रकाशन,
पुरवाई,लेखनी,सहित्यकी, साहित्य कुंज, मोमसप्रेशो,सिंगापुर संगम, अटूट बन्धन,मातृभारती और प्रतिलिपि जैसी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ऐप पर कविताओं और कहानियों का प्रकाशन,
साझा उपन्यास-हाशिये का हक
साझा कहानी संग्रह-पथिक,
ऑरेंज बार पिघलती रही,
द सूप,
सागर की लहरें
पल पल दिल के पास
कथरी
चदरिया झीनी रे झीनी
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गली के मोड़ पर सूना सा एक दरवाजा
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डॉ. रंजना जायसवाल
लाल बाग कॉलोनी
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मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश
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