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  • स्नेह गोस्वामी

गुलमोहर के खिलने के इंतजार में



घर का यह कोना मेरा पसंदीदा कोना है । यहाँ छत पर छोटा सा बगीचा बनाया गया है जिसमें कुछ मौसमी फूल खिले हैं । गमलों में कई तरह के क्रोटन और कैक्टस के पौधे हैं । कुछ पाम भी हैं । कुछ आयताकार आकारों में पालक , मेथी, हरी मिरच ,धनिया और टमाटर महक रहे हैं । यहाँ पौधों के बिल्कुल करीब दो मूढेनुमा कुर्सियाँ भी रख दी गयी हैं जिन पर बैठकर मैं अक्सर अखबार या पत्रिका पढ़ता हूँ । इसके अलावा रेलिंग के सहारे खड़े होकर आते - जाते लोगों को देखना मेरा प्रिय शगल है । जब भी मैं ऊपर छत पर आता हूँ , दस पंद्रह मिनट अपनी पसंदीदा पठन सामग्री उलटने पलटने के बाद मैं हमेशा यहाँ आकर खड़ा हो जाता हूँ । नीचे बहती नदी सी सड़क लेटी है जिसपर जन लहरें हमेशा गतिमान रहती है । कभी कोई जान पहचान का आदमी वहाँ से गुजरता है तो जोर से नमस्कार कहना मुझे जरूरी लगता है । संबोधित व्यक्ति अचानक हुई पुकार से अकबका कर ऊपर देखता है । मुझे झुका देख हाथ हिलाकर आगे बढ़ जाता है । मेरे चेहरे पर एक सुकूनभरी मुस्कुराहट आ जाती है ।

वैसे इस मुस्कुराहट का एक अन्य स्रोत है सामने का घर । सामनेवाले घर में रहता है उमेश का परिवार । परिवार में रहती हैं उमेश की माँ , पत्नी और दो प्यारे प्यारे बच्चे । लोगों की उपस्थिति का अहसास छत पर सूखते कपड़ों से होता है । कभी कभी बालकनी में कोई दिखाई दे जाता है । मेरे सामने वाली दीवार में एक खिड़की है जो हमेशा खुली रहती है । जब मैं किसी को नमस्कार बोलता हूँ ,तो कोई एक क्षण के लिए एक चमकती बिल्लौरी आँख चमक कर मुझे देखती है और मैं मुस्कुराते हुए हाथ जोड़ देता हूँ । नीचे से गुजर रहा आदमी ऊपर मेरी ओर ताकते हुए प्रत्युत्तर देता है और आगे सरक लेता है । खिड़की पर झलकी परछाई बिना कोई उत्तर दिये किनारे सरक जाती हैऔर नजरों से ओझल हो जाती है । ऐसा सप्ताह में एक आध बार ही होता है । जिस दिन हो जाता है, मैं दो दिन उस सुरुर में भीगा रहता हूँ । पत्नी इस खुशी का कारण जानना चाहती है । नहीं जान पाती तो भी खुश हो जाती है । परंपरागत भारतीय नारी की अवधारणा पर खरी उतरने वाली सती सावित्री महिला है सुनंदा जिसके लिए पति की खुशी में ही दुनिया जहान की खुशी निहित है । मैं उसका भरपूर ख्याल रखता हूँ । पाँच साल की वैवाहिक यात्रा में उसे शिकायत का कोई मौका मैंने नहीं दिया । वह भी मेरी हर जरुरत का ध्यान रखती हैं , अक्सर उसे कहने या बताने की जरुरत नहीं होती ।

शाम को हाथ मुँह धोने के बाद मैं छत पर आया था । थोड़ी देर बाद पत्नी आज की डाक में आई पत्रिका थमा गयी तो सरसरी निगाह उस पर डाली । फिर मैं यहाँ आ गया । करीब दो घंटे से मैं यहाँ छत पर रेलिंग के सहारे खड़ा हूँ । इस बीच एक बार पत्नी चाय का कप पकड़ा गयी है जो हाथ में पकड़े पकड़े ही ठंडा गयी है । छत से धूप लगभग जा चुकी है । यहाँ मुंडेर पर कतरा भर धूप बची है जो मेरे कंधों और सिर को गरमाये हुए है वरना पूरी छत इस समय ठंड के आगोश में हैं ।

इन सड़क पर किनारे किनारे उगे गुलमोहर के पेड़ों का पत्ता पत्ता किर चुका है । कलियाँ और फूल लापता हो गये हैं । पत्र विहीन टहनियों वाले पेड़ इस समय बेहद उदास लग रहे हैं । जनवरी में अमूमन ऐसा ही होता है । हर साल पतझड़ इन पेड़ों का सब कुछ छीनकर इन्हें कंगाल बना देता है । कोहरे में लिपटे ये पेड़ इसी तरह चुपचाप खड़े अपनी बेबसी पर आँसू बहाते दिखाई देते रहते हैं । मानो किसी त्योहार पर नये कपड़ों का इंतजार करते करते बच्चे उदास होकर कोने में बैठ गये हो । और वह कोने में उगी नीम मुझे अधफटे कपड़े पहने ठंड में ठिठुरती , हर मंगल को मंदिर के सामने भीख मांगने के लिए खड़ी हुई भिखारिन जैसी लगती है जिसकी मुट्ठी एकदम खाली है । सड़क इस समय सुनसान हो चली है । कोई इक्का दुक्का वाहन गुजरता है तो रोशनी का अनार फूटता है फिर वही अँधेरा छाने लगता है ।

मैं चोर दृष्टि से सामने वाले घर की खिड़की पर नजर डालता हूँ । वहाँ अभी रोशनी की कोई किरण दिखाई नहीं दे रही । न ही कोई हलचल हो रही है । यह मेरी दसवीं कोशिश है । करीब एक घंटा पहले सुहासिनी अपने दोनों बच्चों के साथ आटो से उतरी थी । सामान उठाकर भीतर जाती हुई उसकी मात्र पीठ ही दिखाई दी थी । सब एकदम चुप । बेआवाज । नीरव । बड़े तो बड़े , बच्चे भी हँसना खिलखिलाना भूल गये हैं । पहले यही घर सुबह से शाम तक ठहाकों और कहकहों से गुलजार रहता था । खिड़कियाँ हरदम खुली और रोशनचिराग । बच्चे भागते दौड़ते दिखाई देते । सुहासिनी इधर से उधर कुछ न कुछ करती रहती । सुहासिनी के माथे पर मैहरुन रंग की बङी सी रुपया साइज बिंदिया , होठों पर गहरे मैरुन रंग की लिपिस्टिक , दिपदिप करती सीमांतरेखा और एक से एक दामी साड़ियाँ । काँच की हाथ भर चूड़ियाँ खनखनाती रहती । फूलों सा चेहरा चमकता रहता । प्यारा सा हँसता खेलता परिवार जिसके सौभाग्य से किसी को भी ईर्ष्या हो जाती ।

और सचमुच किसी की नजर लग ही गयी । एक दिन दफ्तर से लौटते हुए उमेश की कार अचानक जा टकराई थी पेड़ से और मिनटों में सब खत्म हो गया । सड़क पर चल रहे लोगों ने ऐक्सीडैंट देखा तो मदद के लिए दौड़े । फटाफट ऐम्बुलैंस मंगवाई गयी । उसे उठाकर अस्पताल भी ले जाया गया । पर सब व्यर्थ । थोड़ी सी औपचारिक जाँच के बाद डाक्टरों ने उसे ब्राट डैड घोषित कर दिया । परिवार को सूचित किया गया । सुहासिनी जैसे पत्थर हो गयी । न रोई , न चिल्लाई । रुलाने की सारी कोशिश बेकार । सूनी सूनी आँखें लिए बैठी रहती । माँ ने रो रोकर आसमान सिर पर उठा लिया था । ह्रदयविदारक विलाप । जो सुनता , बेबसी में रोये बिना न रहता । पर सुहासिनी पर कोई असर होता न लगता । वह तो बस चुप हो गयी । बिंदी सेंदुर ,चूड़ी सब पीछे छूट गये । तेरह दिन बीते । करमकाण्ड निभाकर सब रिश्तेदार विदा हुए तो भाई जिद करके उसे और बच्चों को अपने साथ ले गया था । बच्चे इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से सहम गये थे । ऐसे में मामा के घर से ज्यादा सुरक्षा उन्हें सुरक्षा कहाँ मिलती ।

सुहासिनी ने कोई विरोध नहीं किया था , वह चुपचाप मायके जाने के लिए तैयार हो गयी थी । तब से बंद था यह घर । पूरे दस दिन बाद लौटी है सुहासिनी । पर कहाँ है , कैसी है , दिखाई ही नहीं दे रही । पूरे दो घंटे बीतने के बाद भी । मैं बस उसकी एक झलक देखना चाहता हूँ । न जी न , कोई उल्टी सीधी बात अपने मन में न लाइएगा । मैं तो महज एक सह्रदय पड़ोसी के नाते उसे देख भर लेना चाहता हूँ । आप मेरी नियत पर शक कर रहे हैं । सच कहता हूँ , आप विश्वास करें या न करें । यह आपकी मरजी । पर कोई वासना छोड़ , कोई लालसा भी मेरे मन में नहीं । सुहासिनी हमेशा इस समय उमेश के इंतजार में दरवाजे पर खड़ी मिलती थी तो देख लेता था । हर रोज के नित्यकर्म जैसा था यह कार्य । बिना प्रयोजन , बिना प्रयास । कभीकभीर हाय हैलो भी हो जाती थी । आज भी हमेशा की तरह उसी तरह देखना चाहता हूँ । बीबी इस बीच चाय – नाश्ते के लिए कई बार पुकार चुकी है । पर जा ही नहीं पा रहा । न मन जाना चाह रहा है ,न पैर साथ दे रहे हैं । चाय की तलब लगी है , पर मैं अवहेलना किए जा रहा हूँ । पुकार सुनकर भी अपसुना कर रहा हूँ । निगाहें सड़क पार टिकी हुई है ।

समय अपनी रफ्तार से चल रहा है । हवा में ठंडक बढ रही है । सात बजनेवाले हैं ।अब तो पैरों से सरदी चढनी शुरु हो चुकी है । नीचे जाना ही होगा । मैं बेमन से नीचे जाने के लिए मन को तैयार कर रहा हूँ । मुड़ने से पहले एक बार फिर बंद खिड़की को देखता हूँ । खिड़की अभी भी बंद है ।

अचानक नीचे से पत्नी की किसी से बातें करने की आवाजें सुनाई देने लगी हैं । लगा , मैं इस आवाज को पहचानता हूँ । ऊपर का दरवाजा बंद कर सीढियाँ उतर रहा हूँ । आवाजें अब स्पष्ट होने लगी हैं । मन में एक किलक सी उठी – अरे जिसे मैं वहाँ खोज रहा था , वह मेरे किचन में । अपने आप को यथासंभव संयत रखते हुए लपक कर नीचे उतरता हूँ । तब तक वह जा चुकी है । मैं चुपचाप अंदर चला आया हूँ और समाचार सुनने के लिए टी. वी. चला लिया है । रिमोट उठा लेता हूँ । मनपसंद चैनल लगाने के लिए बार – बार ऊपर नीचे नम्बर बदल रहा हूँ ।

पत्नी चाय का कप थमाती हुई सूचना देती है – सुहासिनी लौट आई है । दूधवाले के लिए पूछने आई थी । सुबह उसे दूध भिजवाना है । उसे कल दफ्तर जाना है । कुछ चैक वैक का चक्कर है । थोड़े पैसे मिल जाएंगे तो सहारा हो जाएगा । शायद उमेश वाली नौकरी भी मिल जाए ।

मैं भावशून्य चेहरा लिए यह सब सुन रहा हूँ । कल्पना में देखने की कोशिश कर रहा हूँ कि श्रृंगार के अभाव में कल सुहासिनी कैसी दिखेगी ।

अचानक सुनंदा की नजर मेरे चेहरे पर पड़ी – आप भी न , कुछ ज्यादा ही सैंटी हो जाते हो । पतझड़ में गुलमोहर के पत्ते झड़ ही जाते हैं । देखना , महीने भर में पहले जैसे हो जाएंगे । फिर से खिल उठेंगे गुलमोहर और अमलतास ।

“ पर पहले वाले पत्ते तो गये ...” ।

“ कुछ कहा आपने “ ?

“ मैंने ! नहीं तो “ ।

मैं चाय का कप थामे अपनी स्टडी की ओर मुड़ गया हूँ क्योकि कुछ बातों का कोई जवाब नहीं होता । कुछ बातों का कोई मतलब नहीं होता ।


 

लेखक परिचय - स्नेह गोस्वामी


जन्मतिथि – 26 जून 1959

जन्मस्थान – फरीदकोट (पंजाब )

प्रकाशित पुस्तकें - स्वप्नभंग ( काव्य संग्रह )अयन प्रकाशन से , उठो नीलांजन ( कथा संग्रह )समदर्शी प्रकाशन से , वह जो नहीं कहा (लघुकथा संग्रह )साहित्यभूमि से , तुम्हे पहाङ होना है (कहानी संग्रह ) राजमंगल प्रकाशन , होना एक शहर का ( लघुकथा संग्रह देवशीला प्रकाशन से प्रकाशन अधीन ) , कथा चलती रहे ( लघुकथा संग्रह बोधी प्रकाशन से प्रैस में ) तीन ई उपन्यास मातृभारती पर प्रकाशित ।

बीस बाईस साझा संग्रहों में रचनाएं शामिल ।

स्नेह गोस्वामी का रचना संसार नाम से यू टयूब चैनल ।


आकाशवाणी बठिंडा , एफ. एम बठिंडा और आकाशवाणी जालंधर से रचनाएँ समय समय पर प्रसारित ।

सम्मान – शब्द साधक पुरुस्कार भाषा विभाग पटियाला से , लघुकथा सेवी पुरुस्कार हरियाणा लघुकथा अकादमी से , निर्मला स्मृतिहिंदी साहित्य गौरव सम्मान निर्मला स्मृति साहित्यिक समिति एवं अन्य कई सम्मान ।

9054958004

sneh goswamisneh@gmail.com

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