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ई-कल्पना 'कहानी' ... नई सीरीज़

ई-कल्पना


ई-कल्पना की नई ‘कहानी’ सीरीज़ इस अंक से शुरू होती है.



साधारतः एक अंक में हमने केवल एक ही रचना (और वो भी कहानी की विधि में) प्रकाशित करना निर्धारित किया था. लेकिन टोरौंटो निवासी श्री धर्मपाल जैन की कविताओं ने हमारा ध्यान खींच लिया. इनकी लाइनों –

“मैं इस समय से ऊब गया हूँ ... मुझे नया समय चाहिये …” ने मुझे चौंका दिया. इस तरह के विचार तो मेरे आसपास भी घूम रहे थे ...

तो चलिये, इस अंक में धर्मपाल जी की कविता को बोनस मानें! 


दूसरी रचना है, मौन पर.


मौन! यह अवस्था उस दोस्ती की तरह है जो आपको बचा कर रखती है, आपके राज़ नहीं खुलने देती.

ये एक काला कंबल है, जो आपसे लिपट कर आपके डर को कसके दबोच कर अंदर रखता है.

ये मेरी बिल्ली है, जो दिन भर के काम दबे पैरों से करती है और किसी अजनबी के घर आ जाने पर घंटों किसी अंधियारे कोने में छिपी बैठी रहती है. कितनी बार मैं उससे कह चुकी हूँ, तुम बोल सकती हो – बोलती क्यों नहीं? पर वो एक छोटा सा म्याऊँ भी नहीं करती.

मौन हार की अवस्था है, शब्दों के आगे हत्यार डाल देने वालों की अवस्था है. पिटे हुए इंसान की अवस्था है. नाइंसाफी की जीत की अवस्था है. हमारे यहाँ कई औरतों की अवस्था है.

मौन, ई-कल्पना की ‘कहानी’ सीरीज़ में पहली कहानी - डॉ किरण द्विवेदी की कहानी का शीर्षक है.


अंत में, यह कहना ज़रूरी समझ रही हूँ – अगर हम लिखते रहें, तो बहुत खुश रहेंगे. आपके पास यदि आपकी लिखी कथाओं के सुंदर ‘तीर’ हैं, तो भेजिये, हम सखुशी ग्रहण करेंगे. लेकिन यदि हमने उन्हें नकारा, तो भगवान के लिये सम्पादक से नाराज़ होने के बजाय, उसे जाहिल करार करने के बजाय, इन तीरों की नोंक तेज़ कीजिये जिससे हम मना ही न कर पाएं.

-    मुक्ता सिंह-ज़ौक्की

सम्पादक, ई-कल्पना


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