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  • ललित फुलारा

घिनौड़


'पिरदा क्या हुआ?' मैंने कंधे पर हाथ रखते हुए खोई में उदास बैठे पिरदा से उनके पास बैठते हुए पूछा।

उन्होंने कान से बीड़ी निकाली और जलाते हुए जवाब दिया। 'भुला!!कल रात सपने में पहले घिनौड़ दिखा। उसे भगाने के लिए उठ ही रहा था कि अचानक उसने एक बुढ़ी औरत का रूप धर लिया। मैंने डरकर करवट बदलनी चाही, तभी पीछे से किसी ने कान में धीमे से कहा - 'मैं त्यर आम छुऊ, आम। भुल ग्ये छै पिरया (मैं तेरी दादी हूं। भूल गया पिरया)।'

पिरदा ने अंगूठे और तर्जनी से कसी बिड़ी की लंबी कश खींची और मेरे मुंह की तरफ देखते हुए कहा –‘यह सुनकर मैंने पलट कर देखा भुला, तो एक बुढ़िया-सी दिखी। चेहरा एकदम धुंधला था यार। मैंने झुंझलाकर पूछा, आमा रात में ऐसे आकर क्यों डरा रही है फिर? तू तो मेरे पैदा होने से पहले ही मर गई थी बल। पै यो रात में किले आमछ..कैअ है गो (फिर ये रात में क्यों आ रही है? क्या हुआ) क्यों भुला सही कहा ना? रात के बखत क्यों आना हुआ फिर? ये बुढ़-बाड़ी मानने वाले ही कहां हुई?’ पिरदा ने मेरी आंखों में आंखें डालकर एक ही सांस में पूरी बात कह डाली।

मैंने हां में गरदन हिलाई और कहा - ‘पिरदा यार आगे बताओ फिर क्या हुआ बल।’

पिरदा ने नाक से धुआं छोड़ा और खांसते हुए कहा - ‘क्या होने वाला ठहरा? आमा धेली की तरफ बढ़ गई और जाते-जाते जोर से चिल्ला गई। पिरया भुतकई ए रोई रे...भुतकई.. को नी पूछन रैय ...। यह सुनकर मैं उठ गया भुला, तब से नींद ही कहां आई ठहरी? गोठ से तंबाकू भरकर हुक्का फूंका और सीधे छान चले गया। आधी रात हुई ठहरी और मैं वहा गाय, भैंस और बकरी का गोबर साफ कर रहा हुआ। अब क्या बताऊं इससे आगे भुला? वो तो अच्छा हुआ रास्ते में कोई भिसौड़-विसौड़ नहीं मिला। नहीं तो काली रात में वहीं दबा देता गधरे में।‘

पिरदा ने फतुई की जेब में हाथ डालते हुए मुझसे पूछा - ‘औतर फूंकेगा भुला ...थोड़ा-थोड़ा ...बस जरा।’

मैंने कहा, ‘ना यार पिरदा .. मैं थोड़ी पिने वाला ठहरा .. तुम भी हर किसी को औतरी ही बना दो।’

पिरदा ने फतुई की जेब से हाथ बाहर निकाला और अमरूद के पेड़ की तरफ टकटकी लगाकर कहा - 'भुला! ये ही घिनौड़ था रे? ये ही था रस्साला। अब पहचान गया इसको मैं। इतने घंटे हो गए, न उड़ रहा है और न ही कुछ जवाब दे रहा है।‘ पिरदा ने जोर से हांक छोड़ी। ‘हां अ ... और मैं खोई से उठ खड़ा हुआ। अमरूद के पेड़ की तरफ अंधेरा था और एक-दो पत्ते हिलते-डुलते से दिख रहे थे।‘

'पिरदा .. आमा से भली पूछना हैंअ,’ कहते हुए मैं नीचे चौबाटे की तरफ बढ़ गया।

पिरदा की हल्की-सी आवाज कान में सुनाई दी - 'देवता हाय भुला! देवता! आज रात पैर पकड़ कर पूछ ही लूंगा .. ये सात पीढ़ी के बाद क्यों आई ठहरी आमा?’ कहते हुए पिरदा ने कान से दूसरी बीड़ी निकाली और वहीं उकड़ू बैठकर मलबाखई की तरफ देखते हुए बीड़ी पीने लगे।


पिरदा को भांग की बुरी लत है। चेहरे में मांस कम, गढडे ज्यादा दिखाई देते हैं। शरीर में बस हड्डियां ही बची हैं। फतुई ऐसे झूलती है जैसे काया पर टांग रखी हो। दिनभर बैल और बकरियों के साथ जंगल में घूमते रहते हैं। औतर जेबों में पन्नियों में लपेटकर रखी रहती है। कितनी औतर फूंकते हैं कोई नहीं जानता! अच्छा खासा परिवार है। दो बच्चे हो गए हैं। पर पिरदा ऐसे रहते हैं जैसे विरक्त आदमी हो। किसी से कोई मतलब नहीं। जिससे बात करने लगे, तो घंटों तक करते ही रहेंगे। जब चुप्पी साध ली, तो ऐसा मौन धर लेंगे कि कोई नहीं कहेगा ये आदमी जिंदा है!

एक दिन धुर से बैलों और बकरियों को हांकते हुए गांव की तरफ आ रहे थे, तभी एक खेत किनारे बेहोश हो गए। जब शाम हुई, तो लड़का और गांव के दो-तीन सयाने पिरदा को खोजते हुए ऊपर जंगल की ओर गए। पिरदा एक खेत में अचेत पड़े हुए थे। लोगों ने काफी हिलाया, ढुलाया और झकझोरा, तब जाकर पिरदा के प्राण वापस लौटे और वो उठ बैठे। एक नजर सबको तांका और हंसते हुए फतुई की जेब से औतर निकालकर बीड़ी मांगने लगे। कान में खोंसी हुई बीड़ी टूटकर नीचे गिर गई थी। लड़के ने हाथ से औथर की पन्नी छिनते हुए नीचे बेड़ू के पेड़ की तरफ जोर से फेंक दी।

‘ये रस्साले … जा उठा कर ला। बाप के हाथ से औथर छिन रहा है। गांव वालों की सरम भी नहीं आ रही होगी।’ पिरदा ने बेटे घनू को घूरते हुए कहा। सदी बूबू भी साथ ही थे। उन्होंने जेब से बीड़ी का बंडल निकाला और दो बीड़ी जलाते हुए पिरदा के बगल में ही बैठ गए। एक बीड़ी पिरदा की तरफ बढ़ाई और दूसरी बीड़ी का कश मारते हुए बोले - ‘पिरया!! ये बता च्यैला ... तुझे नहीं आ रही सरम! पूरे गौं में हाहाकार हो गई ठहरी ... पिरया कहां है? अभी तक नहीं लौटा जंगल से ... गाय-बकरी चराकर ... और च्यैला तू साले यहां खेत में लेटा हुआ ठहरा। कच्ची तो नहीं पी तूने आज!’

पिरदा ने हंसते हुए बीड़ी फूंकी और सदी का से कहा - ‘कैसी बातें कर रहे हो यार ... काका ... कच्ची न पक्की ... भिसौड़ पिलाने आएगा क्या जंगल में? बकरियों और बैलों को हांकते हुए आ रहा था! पता नहीं कैसे ठोकर लगी और एक पत्थर लुढ़कता हुए नीचे पटो में जा गिरा ... तभी एक घिनौड़ उड़ते हुए आया और मेरे पैरों के ठीक आगे आ बैठा। अचानक उसने औरत का रूप धर लिया ठहरा। एक सुंदर औरत। उसने मुझे अंगुली दिखाते हुए कहा, पिरिया तूने मेरे बेटों को मार दिया रे ...जा तू भी ऐसे ही मरेगा। उसके बाद पता नहीं मुझे कैसे नींद जैसी आ गई।’


पिरदा की बात सुनकर सभी जोर से हंसने लगे। घनु के हाथ में छिलुक थे। उसने आधे जले छिलुक को महेश के हाथ में थमाते हुए कहा - ‘बाज्यू पागल हो गए हैं यार ...’

और सदी बूबू के बगल में जा बैठा। बीड़ी पीने के बाद लोगों ने पिरदा को पानी पिलाया और उठाते हुए नीचे गौं की तरफ ले गए। एक खेत पार किया था कि तभी किसी बच्चे को शरारत सूझी और उसने जोर से कहा - ‘अरे पिरदा वो सैंणी परि तो नहीं थी यार ...’

‘भांग का असर हुआ ... जो देख,’ महेश के पीछे-पीछे आ रहे दीनू ने बीड़ी नीचे फेंक पैर से मसलते हुए कहा।

यह सुनकर सभी ने जोर से ठहाके मारे।

‘भांग का असर ठहरा। घरपन घिनौड़ बुढ़ी आमा बन जाने वाली ठहरी और जंगल में खूबसूरत औरत। दै पिरया ... च्यैला तूने भी यार हद ही कर डाली ठहरी।’

पिरया का हाथ पकड़कर आगे-आगे चलते हुए सदी बूबू ने हंसी ठट्ठा किया और पिरिया को घर ले आए।


सालभर बाद मैं गौं लौटा था। घनु आकर धैली पर बैठ गया। मैंने पूछा, ‘पिरदा कैसे हैं रे घनुवा’


‘चाचा ठीक हैं अब। हल्द्वानी से इलाज चला।’ उसने बाहर चौथर की तरफ देखते हुए जवाब दिया।

ईजा ने घनु को बिस्किट और नमकीन दी और मुझसे कहा - ‘क्यों तुझे नहीं पता? छह महीने हो गए हैं उसका इलाज चलते-चलते। अब तो वो ठीक हो गया है।‘

मैंने घनु के कंधे में हाथ डालते हुए उसके पैकेट से बिस्किट निकाला और चौथर को देखते हुए सोचने लगा। पिरदा से पूछूंगा ...आमा घिनौड़ बनकर अब भी सपने में आ रही है क्या?


 

ललित फुलारा - परिचय







उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले के सुदूर स्थित छोटे से गाँव 'पटास' में 15 अक्टूबर 1989 को पैदा हुए।प्राथमिक शिक्षा गाँव की प्राइमरी पाठशाला में संपन्न हुई। माध्यमिक शिक्षा के लिए गॉंव की दहलीज लांघी और उधम सिंह नगर ज़िले के सितारगंज कस्बे में स्थित 'दि किसान सहकारी चीनी मिल' आ गये। जहां बारहवीं तक की पढ़ाई सरस्वती विद्या मंदिर से पूरी की। इसके बाद पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में ग्रेजुएशन किया और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के नोएडा परिसर से पत्रकारिता में एम.ए किया।


पत्रकारिता करियर की शुरुआत 'दैनिक भास्कर' भोपाल से हुई। उसके बाद 'ज़ी न्यूज़ ', 'राजस्थान पत्रिका' और 'न्यूज़18', अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम किया। वर्तमान में ज़ी मीडिया में चीफ-सब एडिटर के पद पर कार्यरत हैं । विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, संस्मरण और कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 2022 में कैंपस और यूथ आधारित नॉवेल 'घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी' प्रकाशित हुआ है.


सम्पर्क: एफ-107, एस एस्पायर, ग्रेटर नोएडा वेस्ट, यूपी- 201306

ललित फुलारा

चीफ-सब एडिटर (अमर उजाला)

मोबाइल नंबर- 9555751267



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