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शमोएल अहमद

नमलूस का गुनाह




नमलूस आबनूस का कुन्दा था| उस पर शनि का प्रभाव था| हलिमा चाँद का टुकड़ा थी और मानो शुक्र की नन्दिनी थी| नमलूस के होंठ मोटे और शुष्क थे| हलिमा के होंठ बारीक थे| इनमें डूबते सूरज की लालिमा थी और चेहरे पर उषा का तेज था| नमलूस के दांत बेहंगम थे| बाल छोटे और खड़े-खड़े से और सिर कटोरे की तरह गोल था| ऐसा लगता था बाल सिर पर नहीं उगे, कटोरे पर रखकर जमाए गए हैं| हलिमा के बाल कमर तक आते थे| इनमें काली घटाओं का गुजर था| दांत सफेद और हम-सतह थे मानो ओस की बूंदें सीप से होकर दांतों की जगह सज गई थीं| नमलूस की आँखें छोटी थीं और पलकें भारी थीं| उसकी आँखें खुली भी रहतीं तो बंद बंद सी लगती थीं| हलिमा मृगनयनी थी| उसकी आँखों में धूप का बहुत सा उजाला था और हुकमुल्ला हैरान था|

हुकमुल्ला हैरान था कि उसका काला भुजंग बेटा किस परिस्तान से गुजरा कि हुस्न बेमिसाल से पहलूगीर हुआ|

शनि अपनी रंगत में सियाह जरूर है लेकिन इसका रचनात्मक पक्ष भी है| शनि धैर्यवान भी है और कृतज्ञ भी| ये इंसान को संत भी बनाता है| नमलूस जिस घड़ी जन्मा तो आसमान में शनि और चंद्र का योग था और इनपर बृहस्पति की नजर थी| बृहस्पति धर्म का कारक है और चंद्रमा मन है| नमलूस का दिल दिव्य-ज्ञान की कामनाओं से लबरेज था| उसकी जबान पर अल्लाह का जिक्र था और मन में संतोष का भाव था| वो कुरान पढ़ता तो आँसू झड़ते थे| नमाज़ के बाद चारो ‘कुल’ पढ़ता और जुमा की पहली घड़ी में मस्जिद जाता बुजुर्गों का कौल दोहराता कि जो पहली घड़ी में मस्जिद गया उसने गोया एक ऊंट की कुर्बानी दी|

नमलूस अपने लिए बस एक ही दुआ माँगता था|

‘या खुदा! जबतक मुझे ज़िंदा रखना है दीन बनाए रखना, जब मौत आए तो दीन की अवस्था में मारना और हश्र के दिन दीन-दुखियारों के साथ मेरा हश्र करना|’

जानना चाहिए कि हर आदमी के लिए एक शैतान है|

इंसान का दिल एक दुर्ग की तरह है और शैतान दुश्मन है कि इसके अंदर घुसकर इस पर अधिकार जमाना चाहता है| कुछ सूफियों का वक्तव्य है कि उन्होंने शैतान से पूछा कि आदमी के दिल पर तू किस वक्त हावी होता है तो उसने जवाब दिया कि क्रोध और वासना के वक्त उसको दबा लेता हूँ| मैं आँख में रहता हूँ और जहां-जहां खून फिरता है वहाँ-वहाँ मेरा गुजर है, ईर्ष्या और लोभ मेरे रास्ते हैं जिन पर चलकर मैं महाशैतान हुआ और कभी पेटभर खाना मत खाइयो चाहे हलाल का माल ही क्यों न हो कि पेट भरने से वासना का जोर होता है और वासना मेरा हथियार है|

हुकमुल्ला राहू रूप था| रंगत साँवली थी| चेहरा लंबूतरा था और दांत नुकीले थे| नमाज़ में रुचि कम थी| वो अकसर जुमा की नमाज़ भी नहीं पढ़ता था| पेटभर खाना खाता था| रेशमी लिबास पहनता था| उसकी एक छोटी सी किराने की दुकान थी| उसने नमलूस को कारोबार में लगाना चाहा लेकिन वो जब माले तिजारत से भी जकात अलग करने लगा तो हुकमुल्ला ने चिढ़ कर उसे दुकान से अलग कर दिया| नमलूस मदरसा शम्सुल हुदा में शिक्षक हो गया था और जिक्र खुदा में मग्न रहता था| हुकमुल्ला की बीवी मर चुकी थी, तब से उसकी आवारगी बढ़ गयी थी| वो देर रात घर लौटता| अकसर उसके मुंह से शराब की बू आती थी|

मालूम होना चाहिए कि आत्मलोकन तमाम मुसलमानों पर वाजिब है| हसन बसरी फर्माते हैं कि नमलूस बाप को उपदेश दे। अगर बाप गुस्सा करे तो खामोश हो जाए, पर बाप को सख्त बात कहना मुनासिब नहीं है| मुनासिब यही है कि उसकी शराब फेंक दे और रेशमी लिबास फाड़ दे|

नमलूस दबे शब्दों में बाप से मुखातिब होता|

‘रेशमी पहनावा मर्द के लिए वर्जित है| अल्लाह को सफेद लिबास पसंद है|’

हुकमुल्ला उसे नफरत से घूरता तो वो खामोश हो जाता|

जानना चाहिए कि दिलों में ईश्वरीय रहस्य निहित होते हैं| धर्माचार्य कहते हैं कि दिल का हाल भरे बर्तन की तरह है कि जब छलकाओगे तो वही निकलेगा जो उसमें भरा है| राग दिलों के पक्ष में सच्ची कसौटी है| इश्क़ कीर्तन से बढ़ता है| जो अल्लाह के आशिक हैं और उसके दर्शन के अभिलाषी हैं कि जिस चीज पर नजर डाली उसमें दिव्य रूप देखा और जो आवाज सुनी उसको उसी के पक्ष में जाना तो ऐसे लोगों के हक में राग उनकी लालसा को उभारता है और इश्क़ व मुहब्बत को पुख्ता करता है|

नमलूस हर साल बुलंद शाह के उर्स में उनके आस्ताने पर जाता था और कीर्तन में शरीक होता था| उसके दिल पर कीर्तन चुंबकीय प्रभाव डालता| उसपर बेखुदी छा जाती और वो रौशनी के मैदान में दौड़ा चला जाता| अलौकिक रहस्य खुलने लगते लेकिन देह में कोई हरकत पैदा नहीं होती| धैर्य से काम लेता और गर्दन नीचे को डाल लेता मानो गहरी सोच में डूबा हो|

इस साल भी वो उर्स में शामिल हुआ था और वहाँ के पेश-इमाम ने उसे बेखुदी की हालत में देखा था| नमलूस में उसे एक मोमिन नजर आया| उसने नमलूस के कुल का पता किया और उसे घर खाने पर बुलाया| नमलूस भोजन हमेशा नमक से शुरू करता था और नमक पर खत्म करता था और आखिर में कहता था ‘अलहम दो लिल्लाह’| इस दौरान पैगंबरों के किस्से भी सुनाता| पेश-इमाम के साथ दस्तरख्वान पर बैठा तो हस्बमामूल पहले नमक चखा और खाने के दौरान ‘हदीस’ सुनाई|

‘हुज़ूर का इर्शाद है कि चंद लोग कयामत में ऐसे आएंगे जिन्हों ने बहुत काम किए होंगे लेकिन इन्हें दोज़ख में डाल दिया जाएगा|’

लोगों ने पूछा, ‘या रसुल-अल्लाह! क्या ये लोग नमाज़ पढ़ने वाले होंगे?’

हुज़ूर ने फर्माया, ‘नमाज़ पढ़ते थे और रोज़े रखते थे और रात में जागते थे लेकिन दुनिया के माल व दौलत पर जान देते थे|’

खाना खत्म करके नमलूस ने फिर नमक चखा और बोला ‘अलहम दो लिल्लाह!’

पेश-इमाम की जबान से अनायास निकला, ‘जजाक अल्लाह! मियां तुम्हारी माँ ने तुमको बिस्मिल्लाह पढ़ कर जना है|’

पेश-इमाम ने उसी वक्त फैसला कर लिया कि अपने जिगर के टुकड़े को नमलूस की झोली में डाल देगा| हलिमा इकलौती संतान थी और जैसी सूरत थी वैसा आचरण भी था| हलीमा के हुस्न की बहुत चर्चा थी| हर कोई उसका तलबगार था| लेकिन हलिमा इतनी मजहबी और परहेज़गार थी कि इमाम उसे किसी नाहनजार के सुपुर्द नहीं करना चाहता था| हलिमा के लिए उसे किसी मोमिन की तलाश थी और ये मोमिन नमलूस में नजर आया था| उसने अपने इरादे जाहिर किए तो नमलूस ने दबी जबान में इमाम शाफए का वक्तव्य दोहराया कि निकाह से पहले लड़की को देख लेना वाजिब है| उसने हलिमा को देखा और खुदा का शुक्र बजा लाया|

इमाम को बहुत उजलत थी| इस डर से कि कोई इस रिश्ते में रुकावट न बन जाए उसने तुरंत निकाह का प्रस्ताव रखा और नमलूस राजी हो गया|

नमलूस हलिमा को लेकर घर में दाखिल हुआ तो हकमुल्ला को अदब से सलाम करते हुए बोला, ‘अब्बा! ईमान के बाद नेक औरत सबसे बड़ा वरदान है| खुदा का आशीर्वाद मुझे हासिल हुआ| आस्ताना फुरकानिया के पेश-इमाम साहब ने अपनी कन्या का निकाह मुझसे पढ़ाया है|’

और हुकमुल्ला मानो सकते में था| उसकी निगाह हलिमा पर गड़ सी गई थी| उसने ये भी नहीं पूछा कि निकाह कब किया? मुझे खबर क्यों न की? वो तो बस हैरान था कि उसका काला भुजंग बेटा किस परिस्तान से गुजरा कि हुस्न बेमिसाल से.. .. !

हलिमा डर गयी| उसपर कपकपी तारी हो गयी| उसको महसूस हुआ कि हुकमुल्ला की ज़बान लपलपा रही है और आँखें सांप की तरह हीरे उगल रही हैं| हलिमा बेहोश हो गयी| नमलूस घबरा गया| हलिमा को गोद में उठाकर बिस्तर पर लाया| मुंह पर पानी के छींटे मारे| चारों कुल पढ़ा| दरूद-शरीफ पढ़कर दम किया| हलिमा को होश आया तो वो नमलूस से लिपट गयी|

‘मेरे सरताज कहाँ हैं?’

‘मैं यहाँ हूँ हलिमा. तुम्हारे पास|’

नमलूस ने हलिमा के गाल थपथपाए और सीने से लगा लिया|

‘मुझे छोड़कर नहीं जाइए|’ हलिमा कांपती हुई उसके सीने में किसी बच्चे की तरह सिमट गयी|

हुकमुल्ला की तबीयत में हैजान था| वो घर से बाहर निकल गया और उस्मान हलवाई की दुकान पर पहुंचा| उस्मान से उसकी मित्रता थी| उसको सब हाल सुनाया| हलवाई पेश-इमाम को जानता था| हलिमा के हुस्न की भी चर्चा सुनी थी|

‘गरीब को हसीन औरत नहीं सजती है हुकमुल्ला! तुम्हारा बेटा अपने लिए लानत ले आया|’

‘हुस्न राजा रजवाड़ों को सजता है या कोठे की तवायफों को|’

और मुहल्ले में शोर था ....

‘गरीब की झोली में हीरे-जवाहर ...’

‘इतनी सुंदर ... इतनी ... ’

‘कोई दोष होगा वरना पेश-इमाम इस काले-कलूटे के हवाले नहीं करता|’

‘इसको मिर्गी के दौरे पड़ते हैं| घर आते ही बेहोश हो गयी|’

‘जरूर पेट से है|’

मुहल्ले की औरतें भी लगातार चली आती थीं| मुंह पर पल्लू खींच कर खुसुर-फुसुर करतीं|

‘ये हूर-परी ... और नमलूस को देखो ... हो ... हो ... हो|’

‘लंगूर के पहलू में हूर|’

‘कोई दोष होगा बहन|’

‘पहले से पेट होगा, तब ही तो इमाम ने निबटारा कर दिया|’

‘ऐब छुपता है जी ... अल्लाह सब जाहिर कर देगा|’

मुहल्ले में पहले नमलूस की कुरूपता का जिक्र नहीं होता था| सभी उसकी इज्जत करते थे और उसकी सदाचारी का गुण-गान करते थे| अब हलिमा की चर्चा थी और नमलूस के लिए सब की ज़बान पर एक ही बात थी ... ठिगना है ... भद्दा ... बदसूरत ... काला पहाड़|

और काला पहाड़ चाँदनी में सराबोर था और शुक्र के पहलू से पहलू सजाता था| हर दिन ईद था और हर रात शबे बरात थी| नमलूस हलिमा से खेलता और हलिमा नमलूस से खेलती| शुक्र का शनि से समागम था, चूड़ियों की खनक थी, मद्धिम-मद्धिम से कहकहे थे और फिजा में नशा था|

बीवियों से विनोद करना सुन्नत है| नमलूस घर में लूडो ले आया था| दोनों खाली वक़्तों में लूडो खेलते| पहले सांप और सीढ़ी का खेल खेलते थे| हलिमा सीढ़ियाँ चढ़ती तो खुश होती और सांप काटता तो ठनकती, ‘ऊं ... ऊं ... ऊं... सांप ... सांप ... सांप!’

नमलूस मुस्कराता और हलिमा को दिलासा दिलाता, ‘देखो ... देखो ... आगे सीढ़ी है ... फिर चलो ... सीढ़ी पर चढ़ जाओगी|’

लेकिन सांप नमलूस को भी काटता तो इसी तरह ठनकती ‘अल्लाह जी ... आप को भी काट लिया कमबख्त ने|’

वो नमलूस से सट जाती| वो अपने कंधों पर हलिमा की छातियों का नरम स्पर्श महसूस करता| उसको हलिमा की ये अदा अच्छी लगती| एक बार 98 पर नमलूस पहुँच गया था| 2 नंबर लाता तो गोटी लाल थी| लेकिन 1 नंबर आया और सांप ने 99 पर डस लिया| वो सीधा 5 पर पहुँच गया| हलिमा के मुंह से चीख निकली| वो नमलूस से लिपट गयी|

‘मेरे सरताज!’

नमलूस ने भी उसे बाँहों में कस लिया और उसकी मखमली पलकों पर अपने होंठ अंकित कर दिए|

‘क्यों डरती हो? झूठ-मूठ का तो सांप है|’

‘मुझे ये खेल पसंद नहीं है|’ हलिमा उसकी बाहों में कसमसाई|

‘अच्छी बात है| दूसरा खेल खेलेंगे|’

नमलूस उसको बाजुओं में लिए रहा| हलिमा भी बाहों में सिमटी रही और पलकों पर होंट अंकित रहे … और नशा छाता रहा और फिजा गुलाबी होती रही|

वो चारो गोटी से होम होम खेलते रहे|

सांप वाला खेल उन्हों ने बंद कर दिया था लेकिन कुदरत नहीं करती| वो सांप और सीढ़ी का खेल खेलती रहती है| हर आदमी के मुकद्दर में एक सांप है|

हलिमा को मोतीचूर के लड्डू बहुत पसंद थे| नमलूस जब भी बाजार जाता मोतीचूर के लड्डू लाता| एक ही लड्डू से दोनों खाते| हलिमा एक टुकड़ा नमलूस के मुंह में डालती तो नमलूस कहता|

‘पहले तुम|’

‘नहीं आप|’

‘नहीं तुम|’

‘आप सरताज हैं|’

‘तुम मलिका हो|’

हलिमा खिलखिला कर हंस देती लेकिन मुंह पर हाथ भी रख लेती| नहीं चाहती थी हंसी की आवाज दूर तक जाए| हलिमा हुकमुल्ला के सामने जल्दी नहीं आती थी| हलिमा को उसकी आँखों से डर लगता था| खाना मेज पर काढ़ कर अलग हट जाती| वो पानी माँगता तो नमलूस पानी ढाल कर देता था| कभी कभी उसके मुंह से शराब की बू आती थी| नमलूस भी चाहता था हलिमा उससे पर्दा करे| नमलूस जब घर में नहीं होता तो हलिमा खुद को कमरे में बंद रखती थी| खिड़की तक नहीं खोलती थी| हुकमुल्ला को एहसास होने लगा था की घर अब उसका नहीं है| घर नमलूस का है जिसपर हलिमा का शासन है और वो अपने ही घर में अजनबी होता जा रहा है| जब नमलूस कमरे में मौजूद होता तो वो उनकी नकल व हरकत जानने की कोशिश करता| दरवाजे को ताकता रहता| दरवाजा बंद रहता तो करीब जाकर उनकी बात चीत सुनने की कोशिश करता|

हज़रत ईसा फरमाते हैं कि ताकने से बचते रहो कि इससे वासना के बीज पैदा होते हैं| हज़रत यहिया से किसी ने पूछा कि बलात्कार की घटना कहां से शुरू होती है तो फरमाया देखना और ललचाना| गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या को इन्द्र दूर से देखता था| आखिर गौतम का भेस बदल कर उनकी कुटिया में आया| अहल्या इन्द्र को गौतम समझ कर हम-बिस्तर हुई| ऋषि को मालूम हुआ तो अहल्या उनके अभिशाप का निशाना बनी| ऋषि ने क्रोध में आकर अहल्या को पत्थर बना दिया|

एक दिन अचानक हुकमुल्ला बदल गया| रेशमी वस्त्र फाड़ डाले| घर का कोना पकड़ लिया| रुदन करने लगा|

‘या अल्लाह! मैं पापी हूँ| मुझे माफ कर| मुझे सीधे रस्ते चला!’

और नमलूस ने देखा पिता श्री मस्जिद जाने लगे हैं| नमलूस हैरान हुआ| और हुकमूल एकांत में चला गया| कुरान का पाठ करता| पहली घड़ी में मस्जिद जाता| गुस्ल से पहले तीन बार वज़ू करता| फिर तीन बार बाएं ओर पानी उझालता। तीन बार दाएं ओर पानी उझालता और आखिर में ला-इलाहा पढ़ते हुए सिर पर पानी डालता| वो अब सादा लिबास पहनता था और लोग-बाग हैरत से देखते थे| एक बार किसी ने टोक दिया|

‘आजकल फटे पुराने कपड़ों में नज़र आते हो?’

हुकमुल्ला अनायास बोल उठा, ‘उस आदमी का लिबास क्या देखते हो जो इस दुनिया में मुसाफिर की तरह आया और जो सृष्टि की रंगीनियों को क्षणभंगुर समझता है| जब दो जहां के मालिक इस दुनिया में मुसाफिर की तरह रहे और कुछ माल व जर इकट्ठा नहीं किया तो मेरी क्या बिसात है?’

हलिमा को अब हुकमुल्ला से पहले की तरह खौफ महसूस नहीं होता था| वो सामने आने लगी थी और खाना भी परोसती थी और नमलूस की खुशियों का ठिकाना नहीं था|

राहू वक्री होता है, पीछे की तरफ खिसकता है – धीरे-धीरे, चुपके-चुपके| चंद्रमा से इसकी दुश्मनी है| चाँदनी इससे देखी नहीं जाती| जब सूर्य चंद्रमा के ठीक सामने होता है तो चाँदनी शबाब पर होती है| राहू अगर ऐसे में चाँद के करीब पहुँच गया तो उसको जबड़े में कस लेगा और चाँद को ग्रहण लगा देगा|

वो घड़ी आ गयी| चंद्रमा रोहनी नक्षत्र से गुजर रहा था| नमलूस तबलिगी जमात के साथ दूसरे शहर में चला गया| राहू ने अपनी चाल चलते हुए वृषभ राशि में प्रवेश किया| हुकमुल्ला घर से बाहर निकला| उस्मान की दुकान से मोतीचूर के दो लड्डू लिए जो उसने खास तौर पर बनवाए थे| शाम को घर पहुंचा| लड्डू हलिमा को देकर नजरें झुकाए हुए बोला, ‘ये नियाज़ के लड्डू हैं| खाने के साथ खा लेना| इन्हें बासी नहीं खाया जाता|’

और फिर अपने कमरे में आया और जोर जोर से कुरान का पाठ करने लगा| रात खाने के वक्त बाहर निकला| नजरें नीची रखीं| हलिमा ने खान परोसा| हुकमुल्ला ने खामोशी से खाया और कमरे में बंद हो गया लेकिन वो खिड़की खुली रखी जो हलिमा के कमरे की ओर खुलती थी| थोड़ी देर बाद उसने खिड़की से झांक कर देखा| हलिमा ओसारे में बैठी खाना खा रही थी| उसने एक लड्डू खाया| फिर दूसरा भी खाया लेकिन पानी नहीं पी सकी| मूर्छित हो गयी| राहू वृषभ के अंतिम अंश पर था|

हुकमुल्ला ने हलिमा को छू कर देखा| वो गहरी गहरी सांसें ले रही थी| गोद में उठाकर बिस्तर तक लाया| हलिमा ने एकबार आँखें खोलने की कोशिश की लेकिन पपोटे भारी हो रहे थे|

‘पानी ... पानी!’ हलिमा ने होंठों पर ज़बान फेरी| हुकमुल्ला ने सहारा देकर उठाया और होंठों से पानी का ग्लास लगाया| हलिमा ने कुछ देखने की कोशिश की लेकिन आँखें खुलतीं और बंद हो जातीं| प्रतिरोध की ताकत नहीं थी|

राहू के साए गहरे हो गए| धरती पर सबसे कुरूप मंज़र छा गया!

हुकमुल्ला ने सुबह सुबह मस्जिद पकड़ ली | एक कोने में बैठ गया|

नमलूस घर आया तो हलिमा बेसुध पड़ी थी| देह पर जगह जगह नीले दाग थे| हलिमा कुछ बोलती नहीं थी| वो रोती भी नहीं थी| उसकी ज़बान गुंग थी| नमलूस घबरा गया| पड़ोस की औरतें जमा हो गयीं| हलिमा फिर भी चुप रही| एक औरत ने नमलूस की कसम देकर पूछा तो हलिमा के सीने से दिल चीरने वाली चीख निकली और वो फफक फफक कर रो पड़ी|

जग जाहिर हो गया|

‘हुकमुल्ला तो नमाज़ी हो गया है|’

‘यही छिनाल है|’

पंचायत हुई|

काजी ने फैसला सुनाया|

हलिमा नमलूस के लिए हराम करार दी गयी|

‘और हुकमुल्ला?’

‘दो मोमिन गवाह चाहिए|’

‘हुकमुल्ला के लिए मुल्क का कानून निर्णय करेगा|’

नमलूस की आँखों में गहरी धुंध थी| वो सजदे में चला गया|

‘या अल्लाह! मैंने ऐसा कौन सा गुनाह किया था कि तू ने मुझसे मेरी हलिमा को छीन लिया?’

नमलूस कुछ देर सजदे में पड़ा रहा| फिर मानो कोई उसके कानों में धीरे से फुसफुसाया|

नमलूस उठा| उसका चेहरा दिव्य-कान्ति से चमक रहा था| उसने बुलंद आवाज से पंचायत से खताब किया|

‘ये फतवा इस्लाम के उसूलों पर आधारित नहीं है| इससे व्यक्तिगत द्वेष की गंध आती है|’

‘पंचायत ने बलात्कारी की सजा क्यों नहीं निर्धारित की जबकि इस्लाम में बलात्कारी की सजा संग-सारी है|’

‘हलिमा हराम क्यों? वो बेगुनाह और मासूम है| उसको नशा मिली मिठाई खिलाकर बेहोश कर दिया गया और उसके साथ बलात्कार किया गया| मैं बलात्कारी को सारी दुनिया की औरतों पर हराम करार देता हूँ और हर वो बात मानने से इनकार करता हूँ जो इस्लाम के आचरण के विरुद्ध है|’

पंचायत को काठ मार गया|

नमलूस ने हलिमा का हाथ पकड़ा और बस्ती से निकल गया|


 


शमोएल अहमद

जन्म ; 4 मई 1943

जन्म स्थान ; भागलपुर , बिहार

कुछ प्रमुख कृतियाँ ; सिंगारदान, नदी, महामारी , चमरासुर , ऐ दिले आवारा , गिर्दाब , 21 श्रेष्ठ कहानियाँ

प्राप्त सम्मान ; मजलिस फरोग़ उर्दू दोहा-क़तर के अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार से सम्मानित । उत्तर प्रदेश उर्दू अकाडमी एवं बिहार उर्दू अकाडमी के पुरुस्कार |

जीवन परिचय ; हिन्दी एवं उर्दू में समान अधिकार से लेखन | बोल्ड, साहसिक , सेक्स एवं मनोविज्ञान केंद्रित विषयों के लिए सूप्रसिद्ध , कहानियों में इतिहास, दर्शन, यथार्थ और व्यंग का अजीब मिश्रण | कहानियाँ अनेक भारतीय भाषाओं में अनूदित , अंग्रेजी में उपन्यास ‘’ रीवर ‘’ और कहानी संग्रह ‘’ द ड्रेसिंग टेबुल ‘’ जस्ट फिक्शन जर्मनी द्वारा प्रकाशित।|

सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक । बिहार सरकार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग में मुख अभियंता के पद से सेवा निवृत और अब स्वतंत्र लेखन |

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