ई-कल्पना पेजिज़
कविता
अकेलापन -- धर्मपाल महेंद्र जैन
“यह कविता उस निःशब्द संवाद की प्रतिध्वनि है,
जो हम सब अपने भीतर कभी न कभी सुनते हैं।”
अकेलापन यहाँ कोई दुख नहीं, बल्कि वह पर्वत है जिसके भीतर चुपचाप नदियाँ जन्म लेती हैं। पर्वत, बादल, अंधेरा - सभी मिलकर मनुष्य के मौन को प्रवाह में बदल देते हैं।
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