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डॉ रमाकांत शर्मा की कहानी

"भैरवी" 

जब वह साथ होती है तो लगता है, मैं हवा में उड़ रहा हूं। मेरा यह अहसास जब शब्दों में ढलने लगता है तो वह हंस देती है, कहती है, “ज्यादा हवा में मत उड़ो. जमीन पर उतर आओ”।

“आ जाओ ना, साथ-साथ उड़ते हैं”, मैं कहता हूं।

“बिलकुल नहीं, पता नहीं तुम उड़ाकर कहां ले जाओ।“

“बस, दूर कहीं सुरम्य घाटियों में ले चलूंगा जहां तुम्हारे और मेरे सिवाय और कोई न हो”।

“अब तो तुम सचमुच हवा में उड़ने लगे। तुम्हारे साथ मैं किसी निर्जन जगह में क्यों जाने लगी?” ...

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